गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नम:
कैमूर। गुरुर ब्रम्हा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर:। गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरूवे नम:। गु
कैमूर। गुरुर ब्रम्हा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर:। गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरूवे नम:। गुरु एक परिवर्तनकारी बल है। जहां गुरु की कृपा है वहां विजय है। गुरु शिष्य का संबंध तर्क के बजाय आस्था श्रद्धा और भक्ति पर केन्द्रित होता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु पूजा का विधान है। आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहा जाता है। उक्त बातें ज्योतिषाचार्य डा. सीता रमण पांडेय ने गुरु की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कही। उन्होंने जागरण को बताया कि गुरु के बिना संस्कार नहीं मिलता। गु शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान)और रु शब्द का अर्थ है प्रकाश। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रम्ह स्वरूप प्रकाश है वह गुरु है। गुरु प्रकाश है जो हमें अज्ञान से ज्ञान, अनीति से नीति, दुर्गुण से सदगुण, विनाश से कल्याण, शंका से संतुष्टि, घमंड से विनम्र बनाने का मार्ग दिखाता है। आज तक जितने भी महा पुरूष हुए हैं उनके जीवन को संवारने में श्रेष्ठ गुरुओं का महत्वपूर्ण योगदान हैं। गुरु शिष्य की आंखे खोल कर विघ्नों से बचाते हुए लक्ष्य तक पहुंचता है। गुरु और ईश्वर में कोई भेद नहीं होता। गुरु चरण के नख की ज्योति मणि के समान है। कबीर दास ने गुरू की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये । भगवान शिव ने स्वयं कहा है कि यो गुरु: स: शिव: प्रोक्तो य: शिव: स गुरू स्मृत:। अर्थात जो गुरू है वही शिव है। जो शिव है वही गुरू है। वही ज्योतिषाचार्य डा. आर्चा शंकर ने कहा की वैसे तो दुनिया में बहुत विद्वान हुए हैं। परंतु चारो वेदों के प्रथम व्याख्याता व्यास ऋषि थे। जिनकी आज के दिन पूजा होती है। वेद व्यास ने सभी विचारों का संकलन करके हमारी संस्कृति को ज्ञान कोष के रूप में महाभारत ग्रंथ दिया। इसे पांचवें वेद की उपाधि मिली है। शास्त्रों में कहा गया है कि सभी तीर्थो में स्नान करने से जितना फल मिलता है वह फल गुरू के चरणामृत की एक बूंद से प्राप्त होने वाले फल का एक हजारवां हिस्सा मात्र है। संत शिरोमणि तुलसीदास ने राम चरित मानस की रचना करने से पहले गुरू के चरणों की वंदना की है। बिना गुरू के भव सागर पार करना मुश्किल है। गुरु पूर्णिमा का स्मरण चरण वंदन एवं चरणामृत पान कर अपने को शिष्य धन्य समझता है।
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