पराली जलाने पर सख्ती: कैमूर में 208 किसानों का निबंधन लॉक, सरकारी योजनाओं और अनाज खरीद से वंचित
कैमूर जिले में पराली जलाने वाले 208 किसानों का निबंधन लॉक कर दिया गया है। कृषि विभाग ने सेटेलाइट से निगरानी कर इन किसानों को चिन्हित किया है, जिसके बा ...और पढ़ें

पराली जलाने पर सख्ती
जागरण संवाददाता, भभुआ। जिले में खेतों में पराली यानी फसल अवशेष जलाने वाले किसानों के खिलाफ प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया है। कृषि विभाग द्वारा सेटेलाइट के माध्यम से की गई निगरानी में अब तक 208 किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन की अनदेखी करते हुए चिन्हित किया गया है। इन सभी किसानों का निबंधन लॉक कर दिया गया है, जिसके चलते अब वे कृषि विभाग की किसी भी कल्याणकारी योजना का लाभ नहीं ले सकेंगे। साथ ही इन किसानों से धान और गेहूं की सरकारी खरीद भी नहीं की जाएगी।
कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह कार्रवाई लगातार बढ़ रही पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के उद्देश्य से की गई है। रबी और खरीफ फसल की कटाई के बाद खेतों में बचे डंठलों को जलाने से जहां एक ओर मिट्टी की उर्वरता पर प्रतिकूल असर पड़ता है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को भी गंभीर नुकसान पहुंचता है। इसके बावजूद कई किसान पराली जलाने की प्रवृत्ति से बाज नहीं आ रहे हैं।
विभागीय आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2024 में जिले में 2453 फायर प्वाइंट की पहचान की गई थी। इसके आधार पर 495 किसानों का निबंधन लॉक किया गया था और एक किसान पर प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी। चालू वर्ष 2025 में अब तक 208 किसानों पर इसी तरह की कार्रवाई की जा चुकी है, जिससे साफ है कि प्रशासन इस मुद्दे पर किसी भी तरह की ढिलाई बरतने के मूड में नहीं है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, फसल अवशेष जलाने से मिट्टी को भारी नुकसान होता है। इससे 100 प्रतिशत नाइट्रोजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश और करीब 60 प्रतिशत सल्फर नष्ट हो जाता है। मिट्टी की संरचना प्रभावित होने से पोषक तत्वों का सही तरीके से स्थानांतरण नहीं हो पाता और जल धारण क्षमता भी घट जाती है। इसके अलावा, खेत की ऊपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट, केंचुए और सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जो प्राकृतिक रूप से मिट्टी की उर्वरता बनाए रखते हैं।
मानव स्वास्थ्य पर भी पराली जलाने के गंभीर दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं। इससे निकलने वाला धुआं अस्थमा और दमा जैसी सांस संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देता है। सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण आंखों में जलन, त्वचा रोग और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन बीमारियों के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
पर्यावरणीय दृष्टि से भी फसल अवशेष जलाना बेहद नुकसानदायक है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ता है, जो ग्लोबल वार्मिंग को तेज करता है। साथ ही ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचता है। आग की चपेट में आकर खेतों के किनारे मौजूद पेड़-पौधे भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
जिला कृषि पदाधिकारी विकास कुमार ने बताया कि किसानों को पराली नहीं जलाने के लिए लगातार जागरूक किया जा रहा है। प्रखंड स्तर पर प्रचार वाहनों के माध्यम से किसानों को इसके दुष्परिणाम बताए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कृषि विभाग द्वारा फसल अवशेष को चारे के रूप में उपयोग करने के लिए अनुदानित दर पर कृषि यंत्र भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसके बावजूद नियमों का उल्लंघन करने वाले किसानों के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी।
वर्ष 2025 में प्रखंडवार निबंधन लॉक किए गए किसानों में भभुआ में 43, चांद में 35, रामपुर में 25, मोहनियां में 26 और नुआंव में 32 किसान शामिल हैं। वहीं वर्ष 2024 में सबसे अधिक कार्रवाई भभुआ (125) और चांद (101) प्रखंड में की गई थी। प्रशासन का साफ संदेश है कि पराली जलाने वालों के खिलाफ आगे भी सख्त कदम उठाए जाएंगे।

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