Bihar farmers: कैमूर के ये किसान सब्जी की खेती से लिख रहे नई इबारत, 25 साल पहले गरीबी से थे परेशान, आज कर रहे लाखों की कमाई
बिहार के कैमूर में अंसी दैतरा बाबा स्थान का इलाका हरियाली के लिए जाना जा रहा है। यह हरियाली पेड़-पौधों की नहीं बल्कि सब्जी के लहलहाते पौधों की है जिसमें भटौली के 200 परिवार इस खेती से जुड़े हुए हैं। सब्जी की खेती ने गांव के 200 परिवारों की जिंदगी बदल दी। सब्जी की खेती की बदौलत उनकी पहचान पूरे बिहार में हो रही है।
संवाद सूत्र, रामगढ़ (कैमूर)। बिहार के कैमूर में रामगढ़ बाजार से कुछ ही दूर पर स्थित अंसी दैतरा बाबा स्थान का इलाका हरियाली के लिए जाना जा रहा है। यह हरियाली किसी पेड़ पौधे की नहीं बल्कि सब्जी के लहलहाते पौधों की है।
भटौली गांव के दो सौ परिवार इस सब्जी की खेती से जुड़े हुए हैं। सब्जी की खेती ने इन दो सौ परिवारों की जिंदगी बदलकर रख दी। सब्जी की खेती की बदौलत उनकी पहचान दूर प्रदेश तक भी हो रही है। यहां अब सब्जी की खेती से समृद्धि की बयार बह रही है। भटौली के ग्रामीणों ने मेहनत की नई परिभाषा गढ़ डाली है।
25 वर्ष पहले इस गांव में गरीबी से थी परेशानी
भटौली गांव में 25 वर्ष पहले गरीबी कूट-कूट कर भरी हुई थी। आज गरीबी इनसे पनाह मांगने लगी है। रामगढ़-मोहनियां रोड पर पनसेरवां नदी पुल के पश्चिम और पूर्वी छोर पर लगभग सौ एकड़ के विस्तार में हरियाली छाई है।
यह हरियाली सब्जी के लहलहाते पौधों की है। जिसकी आमदनी से इनके विकास की राह आसान हो गई है। डहरक ,अंसी व रामगढ़ मौजा में सब्जी की खेती करने वाले भटौली के दो सौ परिवार के लोग इसमें जुड़े हुए हैं।
सभी लोगों का नाता खेती से है। सूर्योदय से सूर्यास्त तक लोगों का नदी किनारे ही जीवन बीतता है। महिला पुरुष दोनों घर के इस लहलहाते सब्जी के पौधे के देखभाल में लगे रहते हैं।
5 लाख 50 हजार रुपये भूमि का देते हैं किराया
भटौली गांव के किसान इस सब्जी की खेती के लिए किराए पर खेत लिए हैं। जिसका किराए के रूप में साढ़े पांच लाख रुपया सालाना देते हैं। दरअसल भटौली के लोग मोहनिया प्रखंड के है। लेकिन लगाव इनका रामगढ़ से अधिक है।
दिन भर बैंगन, लौकी, नेनुआ , परवल, करेला, टमाटर, तरबूज, खरबूज आदि के पौधो की निगरानी में सारा परिवार लगा रहता है। यहां सड़क पर सब्जी मंडी का रुप भी दिया गया है। जहां से प्रतिदिन 50 से 60 हजार रुपये की सब्जी मोहनिया व रामगढ़ मंडी में उनके द्वारा भेजी जाती है । यहां से बाहर भी सब्जी जाती है।
सब्जी के बीज भी करते हैं तैयार
सब्जी की खेती में पारंगत हो खुद वे सब्जी का बीज भी तैयार करते हैं। शुरुआती दौर में ये लोग पंतनगर व पुसा से बीज ले आकर खेती करते थे। अब वे खुद ही बीज तैयार करते हैं।
यहां तक कि हाइब्रिड बीज को भी तकनीकी विधि से उपार्जन कर रहे हैं। इतना सबकुछ के बाद इन किसानों को कोई सरकारी मदद खेती के लिए नहीं प्राप्त हुई।
सिंचाई के लिए पर्याप्त साधन भी नहीं
इन तीनों मौजा में सब्जी की खेती करने वाले किसानों को एक सरकारी ट्यूबवेल अंसी मौजा में स्थापित है। अन्य दो मौजा में कोई सरकारी नलकूप नहीं होने से नदी में डीजल पंप चलाकर पौधों की सिंचाई करते हैं।
इसके लिए करीब 40 डीजल पंप नदी में लगे हुए हैं। जो अनवरत चलते रहते हैं। यहां की मिट्टी सिगता है। बरसात का मौसम छोड़ अन्य मौसम में हमेशा पानी की दरकार होती है।
भटौली के अलावा पनसेरवां के लोग भी हैं शामिल
सब्जी की खेती में भटौली के 40 मल्लाह परिवार, 20 पासवान परिवार, 8 कुशवाहा परिवार व 5 अनुसूचित जाति परिवार, 8 कुम्हार तथा 5 गिरी परिवार व 8 यादव तथा पांच साव परिवार जुड़े है। इसके अलावा पनसेरवां के बद्री यादव, सुध्रमा यादव, लाल बिहारी राम, बेचू राम भी सब्जी के खेती करते हैं।
भटौली के रामजी साह, संजय कुशवाहा, मनोज कुशवाह, प्रमोद चौधरी, रामबिलास चौधरी, रामायण पासवान, रघुवर पासवान, बलिराम राम , जज्गन कुमार, हृदया चौधरी, लल्लन गिरी आदि शामिल हैं।
यहां से टोकरी में भी पैकिंग होती है सब्जी
रामगढ़ मोहनियां पथ पर दो किलोमीटर से अधिक की दूरी में किसान टोकरी में सब्जी के पैकिंग में व्यस्त रहते हैं। ट्रक व जीप में सब्जी की टोकरियां लादी जाती है।
संजय चौधरी, देवंती देवी व सुधरमा यादव बताते है कि सब्जी के पौधों की सिंचाई में एक साल में एक लाख रुपये का डीजल जल जाता है। मिट्टी सिगता है। हमेशा पानी की आवश्यकता होती है।
पुल के पूर्वी छोर में तो बिजली की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन पश्चिमी छोर पर बिजली की सुविधा नहीं है। इतने साल से वे परिवार खेती कर रहे हैं, लेकिन आजतक कोई सरकारी सुविधा नहीं मिली। बैंकों ने भी इन्हें ऋण नहीं दिया।
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