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    भागवत का प्राण है रासलीला: डॉ. पुंडरीक

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 14 Nov 2017 03:06 AM (IST)

    नगर के जगजीवन स्टेडियम में डॉ. किरण ¨सह द्वारा आयोजित भागवत कथा में सोमवार को रामानुजाचार्य भागवत भूषण डॉ. पुंडरीक जी महाराज ने श्रद्धालुओं को कथामृत ...और पढ़ें

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    भागवत का प्राण है रासलीला: डॉ. पुंडरीक

    कैमूर। नगर के जगजीवन स्टेडियम में डॉ. किरण ¨सह द्वारा आयोजित भागवत कथा में सोमवार को रामानुजाचार्य भागवत भूषण डॉ. पुंडरीक जी महाराज ने श्रद्धालुओं को कथामृत पान कराया। जिसमें कृष्ण लीलाओं के साथ भगवान श्री कृष्ण द्वारा इंद्र का अभिमान चूर करना, प्रलंभासुर का उद्धार, ग्वाल बालों को दावाग्नि से बचाने, शरद पूर्णिमा के दिन गोपियों से भगवान की रासलीला इत्यादि प्रसंग शामिल था। डॉ. पुण्डरीक ने कहा कि शुकदेव जी ने भगवान कृष्ण की लीलाओं का मनोहारी वर्णन किया है। शरद ऋतु आने के बाद बालकृष्ण अपनी मित्र मंडली व गाय बछड़ों के साथ वृंदावन में प्रवेश करते हैं। यहां जब भगवान अपनी बंसी की तान छेड़ते हैं तो गाय घास चरना भूल जाती हैं। गोप-गोपी, बाल- गोपाल अपने कर्तव्य भूल जाते हैं। सभी कर्म को भूलकर प्रभु में लीन हो जाते हैं। इससे जाहिर होता है की परमात्मा साक्षात इस संसार में लीला करने आए थे। वैसी लीला कर मानव को दिखलाया। शास्त्र में बतलाया गया है कि गायें, गोप-गोपियां आदि सभी देवता के हीं अंश से प्रकट हुए। सभी प्राय: गोपी स्वरुप में बने थे। गोपी का अर्थ होता है सहजता से प्रभु में तन्मय रहना। जो सभी इंद्रियों एवं अंगों को प्रभु से जोड़ लें। सभी इंद्रियों से गो¨वद रस का पान करना। इंद्रिय सहित मन बुद्धि को प्रभु में तन्मय करना। भक्ति या ¨चतन की पराकाष्ठा ही गोपी होना है। रासलीला भागवत का प्राण है। रासपंचध्यायी कथा को श्रीमद् भागवत महापुराण से अलग कर दिया जाए तो इसके फल को अच्छी तरह प्राप्त नहीं किया जा सकता। रास का मतलब होता है जो सारे संसार का ईश्वर है। रस या रहस्य है। यही प्रकाश या वैभव है।रास ही ज्ञान है। ऐसे रास को करने से जो आनंद की अनुभूति होती है वही रासलीला है। यानि अपने ही ज्ञान, वैभव, रहस्य, तेज,प्रकाश या रस में कीड़ा करना या खेलना एवं रमण करना रास है। रस का अर्थ ब्रम्ह होता है। भागवत भूषण ने कहा की वास्तव में रास का मतलब है आनंद और आनंद का मतलब है श्रीकृष्ण। यानि आनंदों वै कृष्ण:। प्रभु श्री नारायण जो श्रीकृष्ण हैं उनमें ही आनंद की अनुभूति करना रास है। वास्तव में जब जीवात्मा या परमात्मा एक साथ रहतें है तो इस संसार में किसी को कुछ करने का मौका ही नहीं मिलता है। गोपियां जीवात्मा हैं। भगवान परमात्मा हैं। जीव व ब्रम्ह का मिलन ही रास है। जो मनुष्य रास पंचध्यायी का श्रवण करता है उसका ह्रदय निर्मल हो जाता है। उसे भगवान श्रीकृष्ण का सान्निध्य प्राप्त होता है।

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