Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    एपीजे अब्दुल कलाम पुस्तकालय को उद्धारक की तलाश

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 06 Jun 2022 10:25 PM (IST)

    पुस्तकालय को ज्ञान का आसान साधन माना जाता है। जहां विद्यार्थी बैठकर एक छत के नीचे जरूरत की विभिन्न किताबों का अध्ययन कर सकते हैं। अगर पुस्तकालय की उपेक्षा हुई तो व्यवस्था पर सवाल खड़ा होना वाजिब है अनुमंडल मुख्यालय के डाक बंगला परिसर स्थित एपीजे अब्दुल कलाम पुस्तकालय वर्षों से बंद पड़ा है। इसे उद्धारक की तलाश है।तत्कालीन जल संसाधन तथा वन एवं पर्यावरण मंत्री बिहार सरकार व राजद के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने डाक बंगला परिसर मोहनियां में पुस्तकालय निर्माण का ताना-बाना बुना था।

    Hero Image
    एपीजे अब्दुल कलाम पुस्तकालय को उद्धारक की तलाश

    मोहनियां, कैमूर। पुस्तकालय को ज्ञान का आसान साधन माना जाता है। जहां विद्यार्थी बैठकर एक छत के नीचे जरूरत की विभिन्न किताबों का अध्ययन कर सकते हैं। अगर पुस्तकालय की उपेक्षा हुई तो व्यवस्था पर सवाल खड़ा होना वाजिब है अनुमंडल मुख्यालय के डाक बंगला परिसर स्थित एपीजे अब्दुल कलाम पुस्तकालय वर्षों से बंद पड़ा है। इसे उद्धारक की तलाश है।तत्कालीन जल संसाधन तथा वन एवं पर्यावरण मंत्री बिहार सरकार व राजद के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने डाक बंगला परिसर मोहनियां में पुस्तकालय निर्माण का ताना-बाना बुना था। जगजीवन सभागार के मुख्य द्वार के बाई तरफ पुस्तकालय भवन का निर्माण किया गया। एक जुलाई 2001 को तत्कालीन मंत्री जगदानंद सिंह ने पुस्तकालय भवन का उद्घाटन किया। इस मौके पर तत्कालीन जिलाधिकारी मिहिर कुमार सिंह एवं मोहनिया के अनुमंडल पदाधिकारी सुदर्शन प्रसाद सिंह मौजूद थे। तब शिक्षा प्रेमियों एवं मोहनिया वासियों को काफी खुशी हुई थी। अनुमंडल मुख्यालय में एक पुस्तकालय की स्थापना की काफी चर्चा हुई। जगदानंद सिंह के विधायक फंड से उपलब्ध राशि से पुस्तकालय को संसाधन संपन्न बनाया गया। अच्छी-अच्छी किताबें खरीद के रखी गई। देश पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के निधन के बाद इस पुस्तकालय का नामकरण उनके नाम पर किया गया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पुस्तकालय के संचालन के लिए बनी थी समिति-

    जगदानंद सिंह के निर्देश पर एपीजे अब्दुल कलाम पुस्तकालय के संचालन के लिए अनुमंडल स्तर पर व्यवस्था बनाई गई। जिसमें अनुमंडल पदाधिकारी मोहनियां को पुस्तकालय का पदेन अध्यक्ष मनोनीत किया गया। शारदा ब्रजराज उच्च विद्यालय के तत्कालीन अध्यापक चंद्रजीत सिंह को सचिव बनाया गया। शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विशेष रूचि रखने के कारण ये जगदानंद सिंह की पसंद बने थे। प्रोन्नति के बाद इन्हें उच्च विद्यालय बसहीं का प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया। मोहनियां के बीडीओ को समिति का सदस्य बनाया गया। शुरू में पुस्तकालय सुचारू रूप से चला। चंद्रजीत सिंह ने शिक्षा प्रेमियों से चंदा एकत्रित कर पुस्तकालय की व्यवस्था को सु²ढ़ किया। बैंक में पुस्तकालय के नाम पर खाता खोलकर एकत्रित राशि को जमा किया गया। आवश्यकता पड़ने पर राशि का उपयोग होता था। विद्यार्थी एवं शिक्षा प्रेमी पुस्तकालय में अध्ययन करते थे।

    कई बार शिक्षक दिवस के मौके पर हुआ कार्यक्रम-

    शिक्षक दिवस के मौके पर कई बार यहां कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। वर्ष 2016 में पुस्तकालय में आयोजित कार्यक्रम में तत्कालीन जिलाधिकारी राजेश्वर प्रसाद सिंह उपस्थित थे। यहां की व्यवस्था देखकर उन्होंने कहा था कि जिला प्रशासन इसकी देखरेख करेगा। इसके लिए उन्होंने मातहतों को निर्देश भी जारी किया। लेकिन उनका आदेश ठंडे बस्ते में ही पड़ा रह गया।

    उपेक्षा के कारण पुस्तकालय की व्यवस्था पर लगा ग्रहण-

    उद्घाटन के बाद सुचारू रूप से पुस्तकालय चला। इसी बीच मोहनियां में एसडीएम के पद पर कैसर सुल्तान पदस्थापित हुए। समिति के नियमानुसार एसडीएम के हस्ताक्षर के बाद ही पैसा निकासी हो सकती है। उनके पास जब सचिव चंद्रजीत सिंह पुस्तकालय से संबंधित पैसा निकालने के लिए पहुंचे तो उन्होंने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि पुस्तकालय की व्यवस्था से उनका कोई लेना देना नहीं है। इसके बाद पुस्तकालय की व्यवस्था पर ग्रहण लग गया। आज भी पुस्तकालय के नाम पर बैंक में लाख रुपये से ऊपर जमा होगा।

    मुख्यमंत्री तक पहुंचा है पुस्तकालय से संबंधित मामला-

    एक शिक्षा प्रेमी ने जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम में पहुंचकर नितीश कुमार से एपीजे अब्दुल कलाम पुस्तकालय का उद्धार कराने की मांग की। इसके आलोक में जांच पड़ताल शुरू हुई। मोहनिया के प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी द्वारा रिपोर्ट तैयार कर सरकार को भेजी गई है। इस संबंध में चंद्रजीत सिंह ने बताया कि वे पुस्तकालय समिति के सचिव पद से त्यागपत्र दे चुके हैं। पहले भी एक बार उन्होंने व्यवस्था से क्षुब्ध होकर त्याग पत्र दिया था। लेकिन शिक्षा प्रेमियों के दबाव पर उन्हें अपना फैसला बदलना पड़ा। अब लोगों की पुस्तकालय में रुचि नहीं रह गई है। जगजीवन सभागार के बगल में विवाह मंडप बना है। जहां शादी विवाह होता है। सारी गंदगी पुस्तकालय के चारों तरफ फेंक दी जाती है। एक दो बार उनके द्वारा मना भी किया गया। इस पर लोग उन पर बरस पड़े। इससे काफी दु:ख हुआ। शिक्षा एवं पुस्तकालय के प्रति उनका बहुत प्रेम है। अगले महीने वे पुन: उक्त पुस्तकालय को खुलवाने की दिशा में पहल शुरू करेंगे। नगर के शिक्षाविदों एवं जन प्रतिनिधियों से संपर्क कर उनसे विचार विमर्श किया जाएगा।