'मां' है जो कभी खफा नहीं होती
ब्रजेश कुमार, भभुआ 'लबो पर उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक मां है जो कभी खफा नहीं होती' मुनव् ...और पढ़ें

ब्रजेश कुमार, भभुआ
'लबो पर उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक मां है जो कभी खफा नहीं होती'
मुनव्वर राना का यह पंक्तियां बताती हैं कि 'मां' को ममता का सागर क्यों कहा जाता है। शायद इसीलिए मां को समर्पित मदर्स डे मनाने की परंपरा का विस्तार पूरे विश्व में होते जा रहा है। मई के दूसरे रविवार को अब मां के लिए समर्पित दिवस के रूप में मनाया जाता है। अपने देश में भी महानगरों, नगरों के बाद मदर्स डे छोटे शहरों व कस्बों तक में मनाया जा रहा है। मां को इस दिन बच्चे फूल व अन्य उपहार दे आभार जताते हैं। सोशल मीडिया फेसबुक आदि पर भी मदर्स डे की धूम है।
1908 में शुरू हुयी परंपरा
मदर्स डे की परंपरा 1908 में अमेरिका में अन्ना जेर्विक नामक समाजसेवी महिला की प्रेरणा से शुरू हुयी थी। इसका उद्देश्य अपनी मा, मातृत्व संस्था, मातृत्व बंधन, समाज में मां के प्रभाव के प्रति आभार जताना था। 1914 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन ने मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। तब से अधिकांश देशों में मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है। अब इसी दिन भारत, अमेरिका समेत विश्व के अधिकांश देशों में इसे समारोह पूर्वक मनाया जाता है। कई देशों में मई के पहले सप्ताह में भी इसे मनाया जाता है।
मातृ देवोभव की है परंपरा
भारत वर्ष में मां सदा से पूजनीय रही है। धर्म-संस्कृति के जानकार वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. नंद किशोर तिवारी कहते हैं कि हमारी संस्कृति में मातृ पूजन की परंपरा रही है। सिंधु सभ्यता में मातृ देवी की मूर्ति से ले वैदिक साहित्य, पुराण में भी मातृ पूजा के प्रमाण मिलते हैं। परंपरागत साहित्य में मां की महिमा का बखान मिलता है। हमारे यहां तो मां नित्य पूजक है एक दिवस विशेष की क्या आवश्यकता है। साहित्यकार आलोचक मृत्युंजय सिंह कहते हैं कि मातृ संस्था का सम्मान हर देश व संस्कृति में है। ग्लोबलाइजेशन के दौर में कई परंपराएं पश्चिम से हमारे देश में आयी है। मदर्स डे हमारी संस्कृति के अनुकूल है, नई पीढ़ी इसे मनाना चाहती है तो इसमें हर्ज ही क्या है।
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साहित्य में मां की महिमा
भभुआ: हिंदी साहित्य, उर्दू साहित्य से ले विश्व साहित्य में भी कई रचनाएं मां को समर्पित हैं। डा. नंद किशोर तिवारी कहते हैं कि पांडेय बेचन शर्मा उग्र की कहानी 'उसकी मां' को कौन भूल सकता है। मां को समर्पित कवि केदार नाथ सिंह की कविता 'पिछले साठ बरसो में', सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता 'मां की याद' समेत कई कविताएं मां को समर्पित है। रूसी लेखक मक्सिम गोर्की के महान उपन्यास 'मां' आज भी दुनिया का बेस्ट सेलर है।
क्षेत्र के चर्चित शायर शोयब रूमी कहते हैं कि उर्दू साहित्य में मशहूर शायर मुनव्वर राना ने 'मां' शीर्षक से कई शायर लिखे है, जो काफी लोकप्रिय है। निदा फाजली ने भी मां पर कई शायर व गजल लिखे हैं। आधुनिक उर्दू गजल में 'मां' को केंद्रीय स्थान प्राप्त है।
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'मां' तू सबसे प्यारी है
जासं भभुआ (कैमूर): ' मां तू सबसे अच्छी है ,मां तू सबसे प्यारी है '। बच्चों के लिए मां सर्वस्व होती है। मदर्स डे को ले बच्चों में उत्साह भी है। वे अपनी मां को इस अवसर पर गिफ्ट भी देना चाहते है। यद्यपि अभी कई बच्चे मदर्स डे के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते परन्तु बताने समझने पर उत्साह से भर जाते है। जागरण ने मदर्स डे को लेकर जब कुछ बच्चों से बात की तो मां के प्रति उनकी श्रद्धा एवं मातृ दिवस के प्रति उनका उत्साह नजर आया।
1. फोटो फाइल 09 बीएचयू 05
कैप्शन- अदिति कुमारी
पांचवे वर्ग की छात्रा अदिति कहती है कि मां के स्नेह एवं आशीर्वाद से ही बच्चे जीवन में आगे बढ़ते है। मां को हम जीवन भर भूल नहीं सकते है। क्योंकि उसी ने हमें जीवन दिया है।
2. फोटो फाइल 09 बीएचयू 04
कैप्शन- समृद्धि कुमारी
पांचवे वर्ग की छात्रा समृद्धि कुमारी कहती है मदर्स डे के बारे में हमें नहीं पता परन्तु मां के बारे में कुछ भी कहना बहुत कम है। हम तो यहीं जानते है कि जब कसी से डांट पड़ती है तो मां का आंचल ही आंसू पोंछने के काम आता है।
3. फोटो फाइल 09 बीएचयू 06
कैप्शन- शुभम कुमार
आठवें वर्ग के छात्र शुभम कुमार कहते है कि मदर्स डे मां के लिए स्पेशल डे होता है । मां आस्था विश्वास का स्रोत, ममता की खान एवं प्रेरणा स्वरूप है। हम जीवन में जो भी प्राप्त करेंगे उसके आशीर्वाद से।
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फोटो फाइल 09 बीएचयू 15
कैप्शन- मां गीता देवी के साथ एसडीजेएम अजीत कुमार सिंह
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मां की डांट ने बनाया न्यायिक पदाधिकारी
मां गीता देवी (56 वर्ष) सचमुच अपने नाम को सार्थक करती है। अनुशासन , अध्ययन एवं लक्ष्य के प्रति समर्पण हमारी मां ने ही सिखलाया। ज्यादा पढ़ी लिखी ना होने के बावजूद मां पढ़ाई पर सबसे ज्यादा जोर देती थी। पिता भीम सिंह पुलिस सेवा में है। स्वभाविक है वे बच्चों पर कम ध्यान दे पाते थे। ऐसे में लालन पालन से ले व्यक्तित्व विकास में मां का महत्वपूर्ण योगदान रहा। बचपन से ही पढ़ाई पर इतना जोर देती थी कि उनकी डांट लगते ही हम पढ़ने बैठ जाते थे। तब दादी मजाक में कहती थी कि लागता कि पढ़ा के अभिये जज बना देबु। दादी की मजाक में कही बात आज सही सिद्ध हो गई। आज मां के ही प्रेरणा से ही मै न्यायिक अधिकारी हूं। स्कूल और कालेज में बेहतर करने के बाद मै विधि की पढ़ाई करने दिल्ली विश्व विद्यालय चला गया। जहां से एलएलएम तक की पढ़ाई की। नेट की परीक्षा उत्तीर्ण की । लेकिन मां के बड़े अफसर बनने की प्रेरणा को नहीं भूला और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर वर्ष 2007 में बिहार न्यायिक सेवा की परीक्षा में सफल हुआ। मां के साथ एवं आशीर्वाद से कैरियर में और नई ऊचांईयां छूऊंगा ।
अजीत कुमार सिंह
एसडीजेएम व्यवहार न्यायालय भभुआ
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फोटो फाइल 09 बीएचयू 11,12,13
कैप्शन- गंगोत्री देवी, संजीव पांडेय , संजय पांडेय
मां ने दिया संघर्ष करने का हौसला
मां गंगोत्री देवी अपने नाम के अनुरूप ममता का अथाह स्रोत है। हमने जबसे होश संभाला तब से उनके संस्कार एवं संबल से हम आगे बढ़ते गये। पिता की नौकरी में आर्थिक कठिनाईयों के बावजूद मां ने खुद तो संघर्ष किया हीं हमें भी संघर्ष का हौसला दिया। मां तो पढ़ी लिखी नहीं है परन्तु हम बच्चों को खूब पढ़ाई करने को प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा से ही मै बीएचयू में विधि की पढ़ाई करने गया। लॉ करने के बाद न्यायिक सेवा की तैयारी शुरू की। बिहार न्यायिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण कर न्यायिक अधिकारी बना । फिलहाल मै आरा में न्यायिक पदाधिकारी के पद पर तैनात हूं। जबकि मेरे भाई संजय कुमार पांडेय जीआरपी में पुलिस अधिकारी है। दोनों भाई ये मानते है कि अगर मां हमे पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करती तो हम इतनी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।
संजीव कुमार पांडेय
न्यायिक पदाधिकारी
वार्ड नम्बर सात भभुआ

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