मिनी शिमला के नाम से मशहूर है बिहार का यह शहर, आलीशान कोठियां रही है इसकी पहचान
सिमुलतला अपनी विशिष्ट जलवायु के कारण 'मिनी शिमला' के रूप में प्रसिद्ध है, पर इसे पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिला है। स्वामी विवेकानंद भी यहां आ चुके हैं और इसकी जलवायु को सर्वोत्तम बताया था। यहां रामकृष्ण मठ भी है, जो अब संकट में है। युवाओं का कहना है कि पर्यटन स्थल बनने से यह क्षेत्र फिर से विकसित हो सकता है, पर जनप्रतिनिधियों के वादे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं।

सिमुलतला का राजवाड़ी और लट्टू पहाड़। (जागरण)
संवाद सूत्र, सिमुलतला(जमुई)। अपनी विशिष्ट जलवायु और स्वास्थ्यवर्धक आबोहवा के कारण सिमुलतला को लंबे समय से लोग मिनी शिमला के नाम से जानते हैं। बावजूद इसके, यह प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण क्षेत्र अब तक पर्यटन केंद्र का दर्जा पाने से वंचित है।
यहां आज भी सैलानियों के सैकड़ों पुराने बंगले मौजूद हैं जो इस बात का प्रमाण हैं कि कभी यह स्थल पर्यटकों का प्रमुख ठिकाना रहा होगा। यहां की वायु ही नहीं, बल्कि जल भी अत्यंत शुद्ध और औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।
स्थानीय बुजुर्ग निरंजन सिंह और आजाद सिंह बताते हैं कि सिमुलतला की जलवायु इतनी प्रभावशाली रही है कि स्वामी विवेकानंद स्वयं उदर रोग से राहत पाने के लिए अपने जीवनकाल में दो बार यहां पधारे थे।
उन्होंने यहां की जलवायु को विश्व की सर्वोत्तम जलवायुओं में से एक बताया था। स्वामी विवेकानंद की इच्छा थी कि सिमुलतला में एक विश्वव्यापी मठ की स्थापना हो। उनके इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए स्वामी ब्रह्मानंद महाराज ने वर्ष 1916 में आनंदपुर श्रीरामकृष्ण मठ की स्थापना की थी जो आज भी स्वामी जी के आदर्शों और इस भूमि की आध्यात्मिक गरिमा का प्रतीक है।
दुर्भाग्यवश, उचित रखरखाव के अभाव में यह मठ अब अस्तित्व संकट से जूझ रहा है। यहां के नोलढेगा राजवाड़ी, लट्टू पहाड़ और हल्दिया झरना जैसी प्राकृतिक सुंदरताएं सिमुलतला की शोभा में चार चांद लगाती हैं।
स्थानीय युवा आशीष राज, अनुज कुमार, विशाल कुमार, संजय चौधरी, विभूति आनंद और संतोष यादव कहते हैं कि 90 के दशक में यहां भारी संख्या में पर्यटक पहुंचते थे, जिससे स्थानीय रोजगार और व्यापार को गति मिलती थी।
युवाओं का कहना है कि यदि सरकार सिमुलतला को पर्यटन स्थल का दर्जा दे दे तो यह क्षेत्र एक बार फिर गुलजार हो सकता है। कई जनप्रतिनिधियों ने वर्षों से यह आश्वासन तो दिया, लेकिन वास्तविकता आज भी वही ढाक के तीन पात बनी हुई है।
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