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    Bihar News: कभी गोली-बम की आवाज से थर्राता था बिहार का यह नक्सल प्रभावित इलाका, इस बार धूमधाम से मनेगा लोकतंत्र का पर्व

    Updated: Thu, 18 Apr 2024 05:13 PM (IST)

    कभी नक्सलियों के गढ़ रहे जमुई के चरकापत्थर थाना क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांव में अब लोकतंत्र की बहार नजर आ रही है। 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले तक यहां की हालत बेहद खराब थी। इन गांवों में लाल आतंक की धमक दिखाई देती थी। इस इलाके में बम और गोलियों की आवाज सुनाई देना आम बात थी लेकिन अब समय बदल चुका है।

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    जमुई के नक्सल प्रभावित जिलों में होगा शांतिपूर्ण मतदान। (सांकेतिक फोटो)

    संवाद सूत्र, सोनो(जमुई)। कभी नक्सलियों के गढ़ रहे जमुई के चरकापत्थर थाना क्षेत्र के सुदूरवर्ती गांव धमनी, बंदरमारा, रजौन, बिशनपुर, दुधनिया, भलसुमिया, चरैया, छाताकरम, सरकंडा, भगवाना, लालीलेवार आदि में अब लोकतंत्र की बहार नजर आ रही है।

    2015 के विधानसभा चुनाव के पहले तक यहां की स्थिति बेहद खराब थी। इन गांवों में लाल आतंक की धमक दिखाई देती थी। ग्रामीणों में भय ऐसा कि घरों में ही दुबके रहते थे।

    मतदान केंद्र तक जाना और मताधिकार का प्रयोग करना सपने जैसा था, लेकिन अब परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी है। यहां के मतदाताओं में मतदान को लेकर खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। नक्सलियों को लेकर उनके मन में बिठा डर धीरे-धीरे सिमट रहा है।

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    हाल के वर्षों में सुरक्षा बलों के प्रभावी अभियानों के बाद यह इलाका नक्सलियों से मुक्त हो चुका है। कई बड़े नक्सली मार गिराए गए और बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया है तो कईयों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है।

    दिन में भी जाने में डरते थे प्रत्याशी

    इन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार करना किसी चुनौती से कम नहीं था। रात की बात कौन करे, दिन में भी इन इलाके में डरे-सहमे लोगों की आवाजाही होती थी। पहाड़ी और नक्सली क्षेत्र में प्रत्याशी डर के मारे चुनाव प्रचार को नहीं पहुंचते थे। नक्सली चुनाव बहिष्कार का नारा देते थे।

    इतना ही नहीं, चुनाव के लिए इन इलाकों में जिन मतदान कर्मियों की ड्यूटी लगती थी, उनकी सांसें अटक जाती थी। चुनाव कराकर सकुशल वापसी तक उनके साथ ही उनका परिवार सहमा रहता था।

    2009 के लोकसभा चुनाव में पेट्रोलिंग पार्टी पर हुआ था हमला 

    गौरतलब हो कि 2009 के लोक सभा चुनाव में नक्सलियों ने गंडा पहाड़ी के समीप पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला किया था तो वहीं 2011 के पंचायत चुनाव में मरियम पहाड़ी के समीप मतदान कर्मियों के वाहन को विस्फोट से उड़ा दिया। इस घटना में वाहन चालक की मौत हो गई।

    इसी घटना में सभी मतदान कर्मियों अपहरण कर लिया गया। बाद में पुलिस व सुरक्षा बलों की तत्परता के बाद मतदान कर्मियों को छोड़ा गया था, लिहाजा वर्ष 2006 से लेकर 2015 तक चरकापत्थर क्षेत्र के तकरीबन चार दर्जन से अधिक मतदान केंद्रों पर चुनाव के समय भय व दहशत का माहौल व्याप्त हुआ करता था।

    नक्सलियों की चलती थी समानांतर सरकार

    इस दौरान वहां नक्सलियों की समानांतर सरकार चला करती थी। इस इलाके के लोग मतदान करने से दूर भागा करते थे। मतदान केंद्र पर आने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे लेकिन चरकापत्थर थाने की स्थापना व वहां सशस्त्र सीमा बल की तैनाती सहित महेश्वरी में सीआरपीएफ की तैनाती के बाद इस इलाके में परिवर्तन की लहर दौड़ गई।

    यहां की जनता ने लंबे अरसे बाद क्षेत्र में प्रशासनिक उपस्थिति देखी। सीएमपीएफ व जिला प्रशासन के सहयोग से यहां रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण, खेलकूद, सिलाई-कटाई, स्वास्थ्य शिविर आयोजित कर यहां के लोगों को नई दिशा दिए जाने का काम निरंतर जारी है।

    यही वजह है कि यहां के वासियों में पुलिस-प्रशासन के प्रति सकारात्मक सोच विकसित होने लगी। धीरे-धीरे यहां की आम जनता नक्सली गतिविधियों में संलिप्त लोगों से दूर होने लगी। अपनी आजीविका की ओर बढ़ चलने का संकल्प लिया।

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