जमुई में निर्मित खादी कपड़ों की देशभर में बढ़ी मांग, लोगों को मिल रहा है रोजगार
जमुई में बना खादी कपड़ा देश भर में अपनी पहचान बना रहा है। यहां खादी के साथ तसर और कटिया सिल्क की मांग भी बढ़ रही है। पिछले आठ सालों से यहां कपड़े बनाए जा रहे हैं और खादी मेलों में भेजे जा रहे हैं। सरकार की मदद से नए चरखों से धागा बनता है और बुनकर कपड़े बनाते हैं।

डॉ. विभूति भूषण, जमुई। जिले में तैयार होने वाला खादी का कपड़ा जमुई के साथ-साथ बिहार के अलावा देश के अलग-अलग हिस्सों में भी धूम मचा रहा है। यहां निर्मित होने वाले खादी के कपड़ों के साथ साथ तसर और कटिया सिल्क के भी कपड़ों की मांग बदलते हुए समय के साथ घटने के बदले बढ़ती चली जा रही है।
जिले में विगत आठ वर्षों से न केवल खादी और तसर समेत कटिया सिल्क के कपड़ों को तैयार किया जा रहा है, बल्कि उसे राज्य के अलग-अलग हिस्सों में मांग के अनुरूप भेजने का काम भी किया जा रहा है।
देश के अलग-अलग राज्यों में लगने वाले खादी मेला, खादी माल के साथ-साथ पूरे बिहार, बंगाल, उड़ीसा, झारखंड और उत्तर प्रदेश में भी अपना जलवा बिखेर रहा है।
यहां भारत सरकार और बिहार सरकार के सहयोग से नए मॉडल के चरखा से धागा तैयार करने के बाद करघा से कपड़ा तैयार किया जाता है। इसके लिए हाजीपुर स्थित खादी कमीशन के स्लाइवर प्लांट से कच्चा माल की खरीद की जाती है।
कपड़ा तैयार करने के बाद बुनकर के सहायता से उससे शर्ट, गमछा, धोती, चादर और लूंगी तैयार किया जाता है। इसके अलावा यहां तसर और कटिया सिल्क से भी कपड़ा तैयार किया जाता है।
इसके लिए चाईबासा से कोकून को लाकर उसे उबालकर धागा तैयार किया जाता है और फिर उस धागा से तसर तथा कटिया सिल्क का साड़ी, शर्ट और कुर्ता तैयार किया जाता है।
सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाता है वार्षिक बजट
विकास समिति प्रबंधक महावीर पंडित ने बताया कि खादी बोर्ड और खादी आयोग की निगरानी में इस कार्य का संचालन हो रहा है। यहां खादी और सिल्क कपड़ा के उत्पादन के लिए भारत सरकार द्वारा एक करोड़ रुपये का वार्षिक बजट दिया जाता है, जिसके अनुरूप कपड़े का उत्पादन किया जाता है।
खादी कपड़ा तैयार करने के लिए सूत काटने और कपड़ा तैयार करने में कुल 35 कारीगर को लगाया गया है। तसर और कटिया सिल्क का कपड़ा तैयार के लिए भी 35 कारीगरों को लगाया गया है।
बजट के अनुरूप लक्ष्य पूरा करने पर प्रत्येक वर्ष बजट में 10 से 20 फीसदी की केंद्र सरकार द्वारा की जाती है। सरकार द्वारा मिलने वाले वार्षिक अनुदान से कारीगर के मानदेय का भुगतान किया जाता है। इसके अलावा कच्चा माल की भी खरीद की जाती है।
खादी का कपड़ा बिल्कुल ही टैक्स फ्री है। इस उद्योग के माध्यम से सरकार के निर्देश से रोजगार उपलब्ध कराने का भी काम किया जा रहा है।
जिला प्रशासन की देखरेख में विकास समिति द्वारा खादी और सिल्क के कपड़ों का उत्पादन किया जा रहा है। इसका संचालन खादी बोर्ड और खादी आयोग के मापदंड के अनुरूप किया जा रहा है। --नवीन, जिलाधिकारी,जमुई।
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