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    Bihar Politics: 'राहुल का गांधी ठीक, लेकिन पीके का पांडे होना गलत'; सवर्ण एकता मंच ने जताई आपत्ति

    Updated: Tue, 29 Jul 2025 06:19 PM (IST)

    सवर्ण एकता मंच ने प्रशांत किशोर को जाति के आधार पर मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर करने की आलोचना की है। मंच ने कहा कि अगर राहुल गांधी का गांधी होना स्वीकार्य है तो प्रशांत किशोर का पांडेय होना क्यों आपत्तिजनक है? मंच ने जाति के आधार पर राजनीतिक भूमिका को सीमित करने को लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ बताया।

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    राहुल का गांधी ठीक, लेकिन पीके का पांडे होना गलत : सवर्ण एकता मंच

    संवाद सहयोगी, जमुई। सवर्ण एकता मंच ने उन नेताओं पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जो प्रशांत किशोर को उनकी जाति के आधार पर मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर बताने की बात कर रहे हैं। मंच ने इस प्रकार की सोच को जातिवादी मानसिकता करार देते हुए कहा है कि अगर राहुल गांधी का गांधी होना स्वीकार्य है, तो प्रशांत किशोर का पांडेय होना क्यों आपत्तिजनक माना जा रहा है?

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    मंच के जिला संयोजक मंटू पांडेय ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जिन नेताओं ने एक ब्राह्मण राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जी-जान लगा दिया था, वही अब प्रशांत किशोर के ब्राह्मण होने पर आपत्ति जता रहे हैं, जबकि दोनों जातीय रूप से एक ही वर्ग से आते हैं।

    मंच के उपाध्यक्ष राजीव सिंह ने कहा कि संगठन आम तौर पर दलीय राजनीति से दूरी बनाए रखता है, लेकिन जब किसी योग्य और मेहनती व्यक्ति को सिर्फ सवर्ण होने के कारण अयोग्य ठहराने की कोशिश की जाती है तो संगठन को विरोध करना पड़ता है।

    कोषाध्यक्ष दिनकर चौधरी ने कहा कि प्रशांत किशोर न तो अपने को ब्राह्मण नेता कह रहे हैं और न ही ब्राह्मण हित की कोई विशिष्ट राजनीति कर रहे हैं। फिर उनके उपनाम पांडेय को उछालकर उन्हें राजनीतिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश क्यों की जा रही है?

    मीडिया प्रभारी अभिषेक श्रीवास्तव ने सवाल किया कि जब राहुल गांधी, मनोज झा, जगदानंद सिंह, शिवानंद तिवारी जैसे नेताओं के उपनामों पर कोई आपत्ति नहीं है, तो फिर सिर्फ प्रशांत किशोर के पांडेय उपनाम पर क्यों परेशानी जताई जा रही है? 

    'जो बिहार हित की बात करेगा, वही शासन करेगा'

    मंच के नेताओं ने एक स्वर में कहा कि बिहार के हितों की बात करने वाला कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी जाति का हो, शासन करने का अधिकारी हो सकता है। जाति के आधार पर किसी की राजनीतिक भूमिका को सीमित करना लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ है।