Bihar Politics: 6 दशक से 2 परिवारों के बीच घूमती रही चकाई की चुनावी धुरी, इस बार इनके बीच होगी फाइट
जमुई जिले के चकाई विधानसभा क्षेत्र में पिछले छह दशकों से चुनावी राजनीति दो परिवारों - नरेंद्र सिंह और फाल्गुनी यादव - के बीच केंद्रित रही है। कुल 15 चुनावों में से 13 बार इन्हीं परिवारों का दबदबा रहा है। इस बार भी फाल्गुनी यादव की पत्नी सावित्री देवी और नरेंद्र सिंह के पुत्र सुमित कुमार सिंह के बीच मुकाबला होने की संभावना है।

अरविंद कुमार सिंह, जमुई। बिहार और झारखंड की सीमा पर अवस्थित नदियां, जंगलों, पहाड़ों और जलाशयों से आच्छादित चकाई विधानसभा क्षेत्र में छह दशक से दो परिवार के बीच चुनावी धूरी घूमती रही है। बीच में एक बार कांग्रेस के दिग्गज चंद्रशेखर सिंह की एंट्री हुई थी, अन्यथा वहां पक्ष और विपक्ष की राजनीति पर नरेंद्र सिंह एवं फाल्गुनी यादव के परिवार का ही दबदबा रहा है।
गौर करने लायक बात है कि कुल 15 चुनाव में 13 बार इन्हीं दोनों परिवारों के हाथ में चकाई का प्रतिनिधित्व मिला। इस बार भी चुनाव में कई कोण अवश्य बनेंगे, लेकिन फाल्गुनी यादव की पत्नी सावित्री देवी और नरेंद्र सिंह के पुत्र सुमित कुमार सिंह के बीच मुकाबला होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
वैसे चकाई के चुनावी इतिहास में 1969 से ही तीसरा कोण बनने का सिलसिला शुरू हो गया था। अब तो यहां की लड़ाई बहुकोणीय होती है। पिछली बार भी कुछ ऐसी ही लड़ाई में पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के पुत्र सुमित कुमार सिंह कांटे की टक्कर में कामयाब हुए थे। चकाई विधानसभा क्षेत्र से नरेंद्र सिंह के पिता श्रीकृष्ण सिंह पहली बार 1967 में विधायक चुने गए थे।
1969 के चुनाव में श्रीकृष्ण सिंह के सामने फाल्गुनी प्रसाद यादव चुनाव मैदान में आ गए थे। हालांकि, तब उन्हें तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा था। दूसरी बार 1972 में कांग्रेस के दिग्गज चंद्रशेखर सिंह एवं श्री कृष्ण सिंह के बीच लड़ाई हुई, लेकिन मामूली वोटों से पीछे फाल्गुनी यादव भी तीसरा कोण बनाने में कामयाब रहे थे। तब चंद्रशेखर सिंह को जीत मिली थी।
दो चुनाव से संघर्ष कर रहे फाल्गुनी प्रसाद यादव को पहली बार 1977 में सफलता हाथ लगी। लगातार 80 में भी उन्होंने जीत दर्ज कराई। 1985 में श्री कृष्ण सिंह के पुत्र नरेंद्र सिंह ने चकाई की राजनीति में धमाकेदार एंट्री की और 53 हजार वोट हासिल कर पिता की हार का हिसाब चुकता कर लिया। 1990 के चुनाव में भी नरेंद्र सिंह ने वापसी की, लेकिन 1995 में लालू प्रसाद के सामाजिक न्याय के रथ पर सवार नरेंद्र सिंह को फाल्गुनी यादव से हार का सामना करना पड़ा था।
वर्ष 2000 में नरेंद्र सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 58000 वोट हासिल कर विजय का परचम लहराया तो इस बार भी सामने फाल्गुनी प्रसाद यादव ही थे। 2005 में नरेंद्र सिंह के पुत्र अभय सिंह चुनाव मैदान में उतरे तब भी उनकी टक्कर फाल्गुनी प्रसाद यादव से हुई और जीत अभय सिंह की हुई थी। 2005 अक्टूबर के चुनाव में अभय सिंह ने जमुई विधानसभा का रुख कर लिया, लेकिन नरेंद्र सिंह ने अर्जुन मंडल को चुनाव मैदान में उतारा जहां फाल्गुनी यादव के सामने उन्हें शिकस्त मिली।
2010 के चुनाव की बात करें तो यहां नरेंद्र सिंह के दूसरे पुत्र सुमित कुमार सिंह के माथे जीत का सेहरा बंधा तो 2015 में फाल्गुनी प्रसाद यादव की पत्नी सावित्री देवी लालटेन का लौ जलाने में कामयाब हुई। 2020 के चुनाव में एक बार फिर से सुमित कुमार सिंह संपूर्ण बिहार में इकलौता निर्दलीय उम्मीदवार चुन लिए गए फिलहाल वह नीतीश कुमार की कैबिनेट में शामिल हैं।
वर्ष | विधायक का नाम |
---|---|
1962 | लखन मूर्मू |
1967 | श्रीकृष्ण सिंह |
1969 | श्रीकृष्ण सिंह |
1972 | चंद्रशेखर सिंह |
1977 | फाल्गुनी यादव |
1980 | फाल्गुनी प्रसाद यादव |
1985 | नरेंद्र सिंह |
1990 | नरेंद्र सिंह |
1995 | फाल्गुनी प्रसाद यादव |
2000 | नरेंद्र सिंह |
2005 फरवरी | अभय सिंह |
2005 अक्टूबर | फाल्गुनी प्रसाद यादव |
2010 | सुमित कुमार सिंह |
2015 | सावित्री देवी |
2020 | सुमित कुमार सिंह |
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