Bihar Chunav: जहां कभी गरजती थीं बंदूकें, वहां अब लोकतंत्र का जयघोष
कभी नक्सलियों के आतंक से त्रस्त चरकापत्थर में अब लोकतंत्र की नई सुबह है। सुरक्षा बलों की सक्रियता और प्रशासनिक प्रयासों से यहां विकास हुआ है। जहां कभी लाल झंडे फहराते थे, वहां अब तिरंगा लहराता है। युवा कलम और तिरंगा थाम रहे हैं और गांव लोकतंत्र के उत्सव में शामिल हो रहे हैं।
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई फाइल फोटो। (जागरण)
संवाद सूत्र, सोनो (जमुई)। एक समय था जब चरकापत्थर और उसके आसपास का इलाका भय का पर्याय माना जाता था। लाल सलाम के नारे और गोलियों की गूंज यहां की पहचान बन चुकी थी। नक्सली अपने फरमान से गांवों की धड़कनें रोक देते थे। चुनाव आते ही पूरा इलाका सन्नाटे में डूब जाता था।
प्रत्याशियों के लिए यहां आना मतलब मौत को दावत देना था। साल 2009 के लोक सभा चुनाव में गंडा पहाड़ी के पास पेट्रोलिंग पार्टी पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला कर दिया था। दो साल बाद 2011 के पंचायत चुनाव में मरियम पहाड़ी के समीप मतदान कर्मियों के वाहन को विस्फोट से उड़ा दिया गया।
उस दर्दनाक घटना में वाहन चालक की मौत हो गई थी और मतदान कर्मियों का अपहरण कर लिया गया था, जिन्हें बाद में सुरक्षा बलों की अदम्य साहस और तत्परता से मुक्त कराया गया। इन घटनाओं ने इलाके में दहशत की ऐसी लकीर खींच दी थी जो वर्षों तक लोगों की यादों में जिंदा रही।
2006 से 2020 तक चरकापत्थर क्षेत्र के चार दर्जन से अधिक मतदान केंद्र नक्सल दहशत के प्रतीक बन चुके थे। रात होते ही गोलियों की तड़तड़ाहट, धमाकों की गूंज और भय का सन्नाटा लोगों की दिनचर्या का हिस्सा थी, लेकिन अब तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। चरकापत्थर थाना की स्थापना और एसएसबी व सीआरपीएफ के कैंपों ने इलाके की किस्मत बदल दी।
सुरक्षाबलों ने भय के साम्राज्य को उखाड़ फेंका
सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई, प्रशासनिक सक्रियता और जनसहभागिता ने उस भय के साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंका। जहां कभी लाल झंडे फहराते थे, वहीं अब तिरंगे के प्रति आस्था और गर्व दिखता है।
धमनी, बंदरमारा, रजौन, बिशनपुर, दुधनिया, भलसुमिया, चरैया, छाताकरम, सरकंडा, भगवाना और लालीलेवार जैसे सुदूरवर्ती गांव जो कभी विकास और लोकतंत्र से कटे हुए थे, आज उजाले से भर उठे हैं। जिन पगडंडियों पर पहले सुरक्षा बलों के कदम डरते थे, अब वहीं लोकतंत्र के गीत गूंजते हैं।
प्रशासन की विकासपरक पहलों रोजगार प्रशिक्षण, सिलाई-कटाई केंद्र, खेलकूद प्रतियोगिताएं और स्वास्थ्य शिविरों ने ग्रामीणों में नई उम्मीदें जगाई हैं। युवा अब हथियार नहीं, कलम और तिरंगा थाम रहे हैं। कई कुख्यात नक्सली मारे गए, सैकड़ों ने आत्मसमर्पण किया और कई जेल की सलाखों के पीछे हैं।
आज वही इलाका जो कभी ‘लाल गलियारा’ कहलाता था, लोकतंत्र के उत्सव में पूरे जोश और उमंग के साथ शामिल हो रहा है। मतदान केंद्रों पर उमड़ती भीड़, महिलाओं और युवाओं का उत्साह इस बात का सबूत है कि चरकापत्थर अब डर नहीं, बल्कि लोकतंत्र की नई सुबह का प्रतीक बन चुका है।
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