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    Chakai Assembly: NDA खेमे में तीन धुरंधर आमने-सामने, महागठबंधन में भी उलझन

    Updated: Sun, 31 Aug 2025 08:30 AM (IST)

    चकाई विधानसभा सीट पर 2025 के चुनाव में सियासी घमासान मचा है। एनडीए में मंत्री सुमित कुमार सिंह समेत कई नेता टिकट के लिए जोर लगा रहे हैं तो महागठबंधन में भी राजद और झामुमो के बीच खींचतान है। कई अन्य स्थानीय नेता भी मैदान में हैं जिससे मुकाबला बहुकोणीय हो गया है।

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    चकाई विधानसभा सीट पर बढ़ा सियासी घमासान

    संजय कुमार सिंह, जमुई। चकाई विधानसभा सीट का राजनीतिक समीकरण हमेशा से उलझा रहा है। कभी यहां जातीय समीकरण निर्णायक साबित होते हैं तो कभी उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि। यही वजह है कि हर बार चकाई का चुनाव पूरे प्रदेश का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है।

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    2025 का चुनाव भी इससे अलग नहीं दिख रहा। इस बार सियासी पारा पहले से कहीं ज्यादा चढ़ा हुआ है, क्योंकि एक ही सीट पर कई धुरंधर नेता अपनी किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतरने को तैयार हैं।

    2020 में निर्दलीय चुनाव जीतकर नीतीश सरकार को समर्थन देने वाले मौजूदा मंत्री सुमित कुमार सिंह एनडीए का आधिकारिक उम्मीदवार बनने के लिए जोर-शोर से कोशिश कर रहे हैं।

    मंत्री बनने के बाद उनकी साख और प्रभाव दोनों बढ़े हैं, लेकिन उनके सामने एनडीए के भीतर ही कड़ा मुकाबला है।

    पूर्व एमएलसी संजय प्रसाद, जिन्होंने पिछली बार जदयू से चुनाव लड़ा था, इस बार अपने पुराने वोट बैंक और संगठनात्मक पकड़ के दम पर टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। उनके समर्थकों का कहना है कि 2020 में लोजपा के प्रत्याशी की वजह से समीकरण बिगड़े थे, वरना जीत सुनिश्चित थी।

    वहीं लोजपा के प्रदेश महासचिव संजय मंडल भी कम नहीं हैं। पिछली बार भले ही वे चुनाव हारे हों, लेकिन बीस हजार से ज्यादा वोट हासिल कर उन्होंने अपनी ताकत दिखाई थी। अब संगठन में उनकी स्थिति मजबूत है और वे लगातार क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाकर टिकट के सबसे बड़े दावेदार के रूप में उभरे हैं।

    राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लोजपा इस बार चकाई विधानसभा पर अपनी दावेदारी कर रही है। अगर सफल हुई तो चंदन फाउंडेशन के चंदन सिंह और संजय मंडल लोजपा दरबार में अपनी जुगाड़ बैठाने में लगे हुए हैं।

    यानी साफ है कि एनडीए खेमे में इस बार सीधी जंग टिकट बंटवारे को लेकर है। तीनों नेताओं के समर्थक पूरी ताकत झोंक रहे हैं और यही अंदरूनी टकराव चकाई की राजनीति को और दिलचस्प बना रहा है।

    उधर महागठबंधन खेमे में भी तस्वीर साफ नहीं है। राजद से पूर्व विधायक सावित्री देवी और उनके पुत्र विजय शंकर यादव गांव-गांव घूमकर समर्थकों को सक्रिय कर रहे हैं। यादव वोट बैंक पर उनकी पकड़ हमेशा से मजबूत रही है।

    चर्चा है कि बांका सांसद गिरधारी यादव भी अपने पुत्र को यहां से राजद के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं। दूसरी ओर झामुमो भी यहां अपनी दावेदारी छोड़ने के मूड में नहीं है। पार्टी का मानना है कि चकाई में उनका आधार मजबूत है और यदि गठबंधन के तहत सीट मिली तो जीत आसान होगी।

    इसके अलावा जन सुराज के राहुल सिंह और मुखिया संघ के जिलाध्यक्ष जमादार सिंह भी चुनावी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं। राहुल सिंह पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं और अनुभव के दम पर अपने पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं।

    जमादार सिंह भी काफी प्रभावशाली माने जाते हैं, जबकि चंदन सिंह वर्षों से समाज सेवा में सक्रिय रहकर धीरे-धीरे अपनी राजनीतिक पकड़ बना रहे हैं।

    बता दें कि चकाई विधानसभा क्षेत्र में यादव,भूमिहार, कोयरी, महादलित और आदिवासी वोटरों की बड़ी संख्या है। यही वजह है कि हर दल इन वर्गों को साधने की कोशिश कर रहा है।

    2020 में यहां मतदाताओं ने समीकरणों से हटकर निर्दलीय को जिताया था, लेकिन इस बार क्षेत्रीय मुद्दे सड़क, रोजगार, शिक्षा और पलायन भी अहम भूमिका निभा सकते हैं।

    इस तरह एनडीए में जहां मंत्री सुमित कुमार सिंह, पूर्व एमएलसी संजय प्रसाद और लोजपा महासचिव संजय मंडल आमने-सामने हैं, वहीं महागठबंधन में राजद और झामुमो के बीच भी खींचतान साफ दिख रही है।

    साथ ही स्थानीय नेताओं की सक्रियता ने मुकाबले को और बहु-कोणीय बना दिया है।अब देखना होगा कि टिकट बंटवारे में किसे मौका मिलता है और जनता किस पर भरोसा जताती है।

    जो भी हो इतना तो तय है कि 2025 का चकाई का चुनावी रण सिर्फ जमुई ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति की निगाहें अपनी ओर खींचने वाला है।