Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ग्रामीण क्षेत्र से कुएं विलुप्त, नई पीढ़ी इससे अनजान

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 24 Apr 2021 05:35 PM (IST)

    कभी प्रेमचंद्र जैसे उपन्यासकारों के कहानियों के मुख्य शीर्षक रहे ठाकुर का कुआं जो उस समय के ग्रामीण परिवेश के संस्कृति का मुख्य धरोहर था। आज वही कुआ व ...और पढ़ें

    Hero Image
    ग्रामीण क्षेत्र से कुएं विलुप्त, नई पीढ़ी इससे अनजान

    हुलासगंज, जहानाबाद। कभी प्रेमचंद्र जैसे उपन्यासकारों के कहानियों के मुख्य शीर्षक रहे 'ठाकुर का कुआं' जो उस समय के ग्रामीण परिवेश के संस्कृति का मुख्य धरोहर था। वही कुआं पिछले दो दशक में देखते देखते ग्रामीण परिवेश से भी विलुप्त हो गए हैं। सिचाई से लेकर पेयजल तक आम आदमी की निर्भरता जिस कुएं पर रहती थी, उसका स्थान सबमर्सिबल और गहरे बोरवेल ने ले लिया। कहीं गांव में जहां एक कुआं जरूर होता था, वही बदलते परिवेश ने घर-घर में हैंडपंप और सबमर्सिबल स्थापित कर दिया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पूजा पाठ हो या कोई धार्मिक अनुष्ठान कुएं का पानी दुर्लभ हो गया है। जिस कुआं के पनघट पर महिलाओं का झुंड होती था। बदलते परिवेश ने लोगों को एकांकी बना दिया है। जलचरों और जैव विविधता के पोषक कुएं के लुप्त होने से जैव संरक्षण को भी काफी नुकसान हुआ है। जल संरक्षण के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जाने वाले कुएं के लुप्त होने से पेयजल की समस्या गांव में भी देखने को मिल रही है। शहरी परिवेश का अनुसरण करती ग्रामीण जनता धीरे धीरे कर अपनी मूल संस्कृति को भूल रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब आने वाले पीढ़ी को कुएं के बारे में कुछ ज्ञात नहीं होगा। कई बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि 1967 के अकाल के समय में जब खाद्यान्न और पेयजल का संकट हुआ था तो बड़ी संख्या में गांव में कुएं खोदे गए थे। लेकिन 40 वर्षों के इस अंतराल में तेजी से कुएं का अस्तित्व सिमटता गया। स्थिति है कि धीरे धीरे कर कुएं का अस्तित्व समाप्त हो गया है। गांव में भी अब लोग कुएं की कोई जरूरत नहीं समझते।