निर्धारित करें प्रतिदिन का लक्ष्य और ईमानदारी से करें कार्य तो जरूर मिलेगी सफलता
जहानाबाद। बड़े लक्ष्य के बजाय छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें और उसपर ईमानदारी से कार्य करें। प्रतिदिन का लक्ष्य खुद अपने से निर्धारित कर लें।
जहानाबाद। बड़े लक्ष्य के बजाय छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें और उसपर ईमानदारी से कार्य करें। प्रतिदिन का लक्ष्य खुद अपने से निर्धारित कर लें। जब आप यह सुनिश्चित कर लेंगे कि मुझे अमुख दिन इस विषय के इस अध्याय को पूरी तरह से मनन कर लेना है तो निश्चित ही उसपर आप एकाग्रचित होकर अपने आपको समर्पित कर पाएंगे। अभी आपलोग बच्चे हैं। अभी आपका लक्ष्य विद्यालय की कक्षाओं में पढ़ाए जाने वाले विषय वस्तु का विस्तृत अध्ययन करना है ताकि स्कूल की परीक्षा में अव्वल स्थान हासिल कर सकें। आपलोगों के बीच कई ऐसे बच्चे हैं जो बचपन से ही डॉक्टर, इंजीनियर तथा आईएएस बनने का सपना सहेजते हैं। यह अच्छी बात है लेकिन जरूरत इस बात की है कि बड़े लक्ष्य के बजाय टुकड़ों में इसका निर्धारण करें। जैसे पहले कक्षा की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त करना, उसके बाद 10वीं फिर 12वीं तथा इसी तरह अनवरत परीक्षाओं में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का लक्ष्य यदि बनाते हैं तो निश्चित ही आप उस मुकाम पर पहुंच जाएंगे जहां से आप अपने आपको डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस तथा अन्य किसी भी क्षेत्र में जाने का लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं। यह बातें जिलाधिकारी नवीन कुमार ने दैनिक जागरण द्वारा आयोजित बाल संवाद कार्यक्रम में प्रतिभा पल्लवन मेमोरियल स्कूल के बच्चों के बीच अपने अनुभवों को साझा करते हुए कही। उन्होंने कहा कि जीवन में अनुशासन का बड़ा महत्व होता है। बिना अनुशासित हुए कोई भी कार्य संभव नही है। हमलोग अनुशासन का मतलब सिर्फ संस्थागत नियमों के पालन को ही मानते हैं जबकि इसका व्यापक दायरा है। अपने आपमे एक ऐसी अनुशासनिक क्षमता विकसित करनी है जिसके नियंत्रण में आप खुद रहें। उन्होंने कहा कि यदि आप यह तय करते हैं कि इस दिन हमे यह कार्य करना है तो हमारे अंदर का अनुशासन उस कार्य से हमे विचलित होने से रोकता है और जो लोग खुद के अनुशासन का अनुपालन करने में सक्षम हो जाते हैं वे सफल व्यक्ति के श्रेणी में स्वत: चले आते हैं। जिलाधिकारी ने बच्चों को समय निर्धारण के महत्व को बताते हुए कहा कि मनुष्य के जीवन में इसका बड़ा महत्व होता है। जब हम समय की पाबंदी को समझेंगे तो निश्चित ही हमारा हर एक कार्य व्यवस्थित तरीके से होगा। वर्तमान समय में स्मार्ट फोन बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय है। कई ऐसे बच्चे भी हैं जो पढ़ाई के साथ-साथ अपने पास मोबाईल भी रखते हैं। मोबाईल के कार्य के साथ-साथ पढ़ाई के कार्य भी करते हैं। ऐसे में विषय वस्तु पर एकाग्रचित होना संभव नही हो पाता है। इसके लिए हमे यह निर्धारण करना होगा कि किस समय में पढ़ाई करनी है और किस समय में मोबाईल या अन्य कार्यों में व्यस्त रहना है। उन्होंने कहा कि आपलोग जो भी कार्य करें उसे पूरी तन्यता के साथ करें। यदि खेलने का समय हो तो पूरे मन के साथ उस कार्य में लगें। जिलाधिकारी ने बच्चों को सोंच और कर्म में सामंजस्य स्थापित करने की सीख देते हुए कहा कि जिस अनुरूप आप सोंचते हैं उसी तरह का कार्य भी करें। सभी की ईच्छा वरीय अधिकारी बनने की होती है। लेकिन सफल वे लोग ही होते हैं जो इस ईच्छा के अनुरूप अपना कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि असफलता से विचलित होने के बजाय बारिकी से उसके कारणों को ढूंढे़ और उसे दूर करें। उन्होंने कहा कि एक बार मैं संस्कृत की परीक्षा में फेल हो गया था। तबसे मैने उस विषय में विशेष अध्ययन का संकल्प लिया। लेकिन संस्कृत के शिक्षक ट्यूशन नही करते थे फिर भी मैं उनसे आग्रह कर उनके घर जाता था और पढ़ाई करता था। आपलोगों को भी मैं यह कहता हूं कि जिस विषय में आप कमजोर हैं उसपर विशेष ध्यान दें। उससे यदि दूर होते जाएंगे वह धीरे-धीरे आपके लिए और भी कलिस्ट होता जाएगा। यदि आप ऐसा करेंगे तो कलिस्ट विषय भी आसान हो जाएगा। बाल संवाद कार्यक्रम में बच्चों ने जिलाधिकारी से कई सवाल किए। उन सवालों का उन्होंने बेबाक जवाब भी दिया। यहां प्रस्तुत है बच्चों के उन सवालों के प्रमुख अंश:- प्रश्न- सर, आपको सबसे ज्यादा प्यार पापा करते थे या मम्मी।
रवि राज
यह सर्वविदित है कि मां से ज्यादा प्यार कोई नही कर सकता। हालांकि पापा भी हमे बहुत प्यार करते थे। लेकिन मां की बात ही कुछ और थी। लेकिन मां से डांट भी अधिक मिलती थी। दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि जब मैं 11 वर्ष का था तब मेरी मां का निधन हो गया था। उसके बाद से हमलोगों की परवरिश में पूरी भूमिका पापा की ही रही। हालांकि मेरी बड़ी बहन भी हमलोगों का पूरा ख्याल रखती थी। लेकिन वह हमसे एक क्लास ही आगे पढ़ती थी। ऐसे में एक साथ ही विद्यालय आना-जाना होता था। प्रश्न-सर, आपको स्कूल में कभी शिक्षकों से डांट खानी पड़ी थी।
सेजल शर्मा
मुझे तो स्कूल में डांट खानी नही पड़ी लेकिन मेरे एक मित्र को एक गलती के लिए सजा मिली थी जो मुझे आज भी याद है। मैं क्रिश्चियन स्कूल में पढ़ता था। अंग्रेजी के तीन पोएम याद कर लाने का होमवर्क मिला था। मेरा एक मित्र यह कार्य नही कर सका। उसे शिक्षक ने दंड देते हुए घूटने के बल बैठने का निर्देश दिया था जो काफी पीड़ादायक था। वर्तमान समय में इस शैली में परिवर्तन आया है। अब इस तरह के दंड का प्रावधान नही है। प्रश्न-सर, आपका पसंदीदा विषय कौन सा था।
पूजा कुमारी
मेरा पसंदीदा विषय गणित और विज्ञान था। हालांकि मुझे भूगोल विषय से भी काफी लगाव था। आज ही मध्य विद्यालय बैना में गया था। वहां के बच्चों को भूगोल से संबंधित कई जानकारी दी। खासकर इस विषय में मैप की जानकारी हासिल करने में मुझे काफी दिलचस्पी थी। मैं हमेशा मैप से विभिन्न स्थानों, शहरों तथा देशों को खोजा करता था। मुझे बचपन से ही गणित तथा विज्ञान में अच्छे नंबर प्राप्त होते रहे। प्रश्न-सर, आपने कभी सोचा था कि आपको आईएएस बनना है।
स्वाति कुमारी
स्वाति कुमारी
मैने पहले ही बताया कि अपने लक्ष्य को टूकड़े में ही निर्धारित करें। हमारे जमाने में सायंस कॉलेज पटना का नाम काफी प्रसिद्ध हुआ करता था। लोग यह मानते थे कि यदि सायंस कॉलेज में नामांकन हो गया तो फिर भविष्य संवर गया। इसलिए मैने पहला लक्ष्य इस कॉलेज में नामांकन को ही बनाया। जिसके कारण गणित तथा विज्ञान विषय का विशेष अध्ययन किया।परिणामस्वरूप इस कॉलेज में नामांकन प्राप्त कर लिया। इसके बाद इंजीनियरिग की तब बचपन के उस याद को हकीकत में बदलने में जुट गया। जब मैं बचपन में बेतिया के एक स्कूल में पढ़ता था तो वहां मेरे ही हमनाम के जिलाधिकारी नवीन कुमार निरीक्षण को आए थे। उनको देखकर मैं काफी प्रभावित था और आईएएस बनने की ईच्छा पाल रखी थी। जिसके कारण ही इंजीनियर बनने के बाद इसकी तैयारी करने लगा और सफलता मिली।
प्रश्न-सर, एक ओर जल बचाने की मुहिम चल रही है तो दूसरी ओर अभी भी लोग पानी को बर्बाद कर रहे हैं इसके लिए आप क्या करिएगा।
सूरज कुमार
आपका सवाल बिल्कुल सही है। लोगों में इसे लेकर जागरूकता का अभाव है। लेाग समझते हैं कि पृथ्वी के अंदर असीमित जल है। लेकिन ऐसी बात नही है। इसे लेकर आपलोग भी मुहिम चलाएं। बच्चों की टीम बनाकर लोगों को प्रेरित करें कि जल संचय किस कदर जरूरी है। हालांकि विभागीय स्तर से इसके लिए पहल किया जा रहा है लेकिन बिना समाज के सहयोग के यह कार्य संभव नही है। सूरज कुमार
यह आपका अच्छा सवाल है। हमलोग जल जीवन हरियाली कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाने की मुहिम चला रखे हैं। पृथ्वी के अंदर जल का एक सीमित भंडार है। लेकिन सिर्फ नियम बनाने से इसका संरक्षण संभव नही है। इसके लिए यह जरूरी है कि सभी लोगों को जागरूक होना होगा। आप सभी बच्चे टोली बनाएं जहां भी खुले नल देखें उसे बंद करें और लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। जब तक लोग अपने व्यवहार में परिवर्तन नही लाएंगे तब तक इस तरह की मुहिम सफल नही होगी। प्रश्न- सर, आपको डीएम बनने की प्रेरणा कैसे मिली।
आरोही कुमारी
देखिए, मैं आपको पहले ही बता दिया कि एक जिलाधिकारी को देख मेरे अंदर इसकी प्रेरणा मिली। लेकिन इसके पीछे एक बड़ा कारण यह था कि बचपन से ही मुझे समाज के वंचित लोगों को मदद करने की आदत थी। यह कार्य सामाजिक स्तर से भी किया जा सकता था लेकिन सामाजिक स्तर पर इस कार्य को करने के लिए आय के स्त्रोत को भी विकसित करना जरूरी था। मुझे लगा कि जिलाधिकारी के कार्य क्षेत्र में वे सभी कार्य आते हैं जिससे समाज की रूपरेखा बदली जा सकती है। इस मिशन पर आज भी कार्य कर रहा हूं और मेरा उद्?देश्य है कि जन-जन तक विकास योजनाओं का लाभ पहुंचाउं ताकि उनलोगों का जीवन स्तर बेहतर हो सके।
प्रश्न- डीएम बनने के पश्चात जो पहली कमाई हुई उसे आपने कैसे खर्च किया।
राधिका शर्मा
डीएम बनने के बाद मेरी पहली कमाई सुखद एहसास दे रहा था। सबसे पहले तो घर में पूजा अर्चना का आयोजन किया गया। पहले वेतन से पिताजी के लिए शुट बनवाया। हालांकि मेरे पिताजी चिकित्सक थे इसलिए शुट की उन्हें कोई कमी नही थी फिर भी अपने वेतन से यह बनाना मुझे सुखद एहसास दे रहा था। अपने पूरे परिवार के लिए नए कपड़ों की खरीददारी की। मुझे इस तरह की खरीददारी करने में काफी आनंद आता था। छात्र जीवन में छात्रवृति की राशि को भी मैं अपनी बड़ी बहन के सामाग्रियों की खरीददारी में ही खर्च कर देता था।
प्रश्न- सर, डीएम के रूप में चयनित होने के बाद का अपना अनुभव बताएं।
ऋषु राज
मुस्कराते हुए, अनुभव बहुत सुखद रहा। इस पद पर आते ही अपने उन उद्देश्यों की प्राप्ति में लग गया जिसे मैं पूरा करना चाहता था। सरकार की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाना मेरा कर्तव्य बनता है। इस कर्तव्य का निर्वहन करने लगा। इतना ही नही उनलोगों को योजनाओं का लाभ कैसे मिले जो अब तक इससे वंचित रह रहे हैं। इसके लिए विशेष पहल मेरे स्तर से किया जाने लगा। हालांकि मैं अपने कार्य से संतुष्ट जरूर हूं लेकिन इसका प्रयास आगे अनवरत जारी रहेगा।
प्रश्न- सर,काम नही करने वाले कर्मियों को कैसे दंडित करते हैं।
अंजली शर्मा
अंजली शर्मा
देखिए, काम नही करने वाले कर्मियों को दंडित करने का अपना सरकारी प्रावधान है। बड़ी गलती के लिए नौकरी से बर्खास्त तक किया जाता है। तो मामूली गलती के लिए चेतावनी भी दी जाती है। हमलोग पहले यह आकलन करते हैं कि गलती किस आधार पर हुई है। यदि जान बूझकर बड़ी चुक की जाती है तो इसके लिए कठोर दंड का निर्धारण किया जाता है। वरीय पदाधिकारी होने के नाते मेरा कर्तव्य अपने कर्मियों को कार्यों के लिए प्रशिक्षित करते हुए प्रेरित करना भी है। इस दिशा में सरकार के द्वारा कई योजनाएं बनाई जा रही है। प्रशिक्षण सत्र का आयोजन होता है। जिसमें कार्यों के बारे में विस्तार से समझाया जाता है।
प्रश्न- सर, आप उन शिक्षकों से जब मिलते हैं तो कैसा महसूस करते हैं जिन्होंने आपको बचपन में पढ़ाए थे।
अनोखी कुमारी
अनोखी कुमारी
शिक्षक भगवान के समकक्ष होते हैं। बचपन में पढ़ाने वाले शिक्षक जब मिलते हैं तो उनके प्रति इस कदर असीम श्रद्धा उत्पन्न होती है कि अपने आपही सिर झूक जाता है। एक वाक्या है कि बचपन के शिक्षक फादर टीम जोसेफ से मुलाकात हुई। उनसे मिलकर इस कदर खुशी की अनुभूति हुई जिसका मैं वर्णन शब्दों में नही कर सकता हूं। कई मायनों में शिक्षक माता-पिता से भी बड़े होते हैं। मैं आपलोगों को भी यह कहता हूं कि शिक्षकों के आदर में कोई कमी नही करें। शिक्षक का सम्मान करेंगे तो कई तरह के गुण अपने आप विकसित होंगे।
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