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    मैं वाणावर बोल रहा हूं... मेरे दर्शन के लिए पधारिए, पहाड़ की चोटी पर है देश का सबसे पुराना शिवमंदिर

    By dheeraj kumarEdited By: Yogesh Sahu
    Updated: Fri, 29 Sep 2023 09:51 AM (IST)

    बिहार के जहानाबाद में देश का सबसे पुराना शिव मंदिर है। इसका निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था। यह पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां चट्टान में बनी सात गुफाएं हैं। यहां मगध के महान सम्राट अशोक के समय के शिलालेख भी हैं। पटना से यहां सड़क मार्ग से पहुंचने में तीन से चार घंटे का समय लगता है।

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    मैं वाणावर बोल रहा हूं... मेरे दर्शन के लिए पधारिए, पहाड़ की चोटी पर है देश का सबसे पुराना शिवमंदिर

    जासं, जहानाबाद। मैं वाणावर बोल रहा हूं। वैसे तो लोग मुझे कई विशेषणों से नवाजते हैं। कोई वाणावर कहता है तो कोई बराबर। खैर छोड़िये, नाम में क्या रखा है। जहां तक मैं जानता हूं मेरे अस्तित्व का विस्तार उस समय हुआ था जब मौर्य सम्राट की स्थापना हुई थी।

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    मगध के महान सम्राट अशोक के समय के शिलालेख को मैं आज भी अपने अंदर सहेजे हुए हैं। ब्राह्मी लिपि में लिखे यह अभिलेख हजारों साल के इतिहास का जीवंत प्रमाण हैं।

    भगवान बुद्ध के पांव भी हमारी चौखट पर पड़े थे। पहाड़ी श्रृंखलाओं के सबसे ऊंचे पहाड़ की चोटी पर देश के सबसे पुराने शिवमंदिर में से एक सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर है।

    हमारे बगल में राजगीर, दूसरा बोधगया और तीसरा पावापुरी है। मैं न केवल पहाड़ और जंगल के लिए प्रसिद्ध हूं बल्कि औषधीय पौधे और लौह अयस्क के भी यहां भंडार हैं।

    गया प्रमंडल मुख्यालय से 30 किमी उत्तर-पूरब और जहानाबाद जिला मुख्यालय से 25 किमी दक्षिण-पूरब में मखदुमपुर में अवस्थित हूं। भारत के अमूल्य पौराणिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों का संगम भी हूं।

    यहां की पहाड़ी राक पेंटिंग का अद्भूत नमूना है। हमारे सौंदर्यीकरण को लेकर कई कार्य किए गए हैं। सुरक्षा के लिहाज से अब यहां पुलिस थाने की भी स्थापना कर दी गई है।

    बौद्ध सर्किट से जोड़े जाने के साथ-साथ हर वर्ष यहां वाणावर महोत्सव का भी आयोजन होता है। 24 करोड़ की लागत से पहाड़ की चोटी तक सुगमता पूर्वक पहुंचने को लेकर चार किमी में रोपवे का निर्माण कार्य चल रहा है।

    हमारा परिचय-मगध का हिमालय है बराबर का पहाड़

    100 फीट ऊंचे पहाड़ को मगध का हिमालय भी कहा जाता है। यह देश के बेहद पुराने पहाड़ों में से एक है। बराबर की पहाड़ियों पर कुल सात गुफाएं हैं, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

    इनमें चार बराबर पहाड़ियों पर और तीन पास में ही नागार्जुन की पहाड़ियों पर है। पहाड़ों को सावधानी से काट कर हजारों साल पहले इंसान ने बेहद सुंदर गुफाओं को बनाया है।

    इनमें से कई गुफाओं की दीवारों को देखकर आप दंग रह जाएंगे। इसकी चिकनाई आज के समय में लगाई जाने वाली टाइल्स से कम नहीं हैं। मौर्य काल की यह स्थापत्य कला पर्यटकों को आश्चर्य से भर देती है।

    इनका निर्माण सम्राट अशोक के आदेश पर आजीवक संप्रदाय के बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए करवाया गया था। इसमें कर्ण चौपर, सुदामा और लोमस ऋषि गुफा अपनी स्थापत्य कला के लिए देश और दुनिया में प्रसिद्ध हैं।

    गुफाओं के प्रवेश द्वार पर ही अशोक के द्वारा खुदवाए गए अभिलेखों को पढ़ना रोमांचक अनुभव देता है।

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    मौर्य कालीन रॉक कटिंग लोमस ऋषि की गुफा।

    सातवीं सदी में बनाया गया था बाबा सिद्धनाथ का मंदिर

    बराबर के पहाड़ की चोटी पर अवस्थित बाबा सिद्धनाथ मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में गुप्ता काल के दौरान कराया गया था।

    हालांकि, इसे लेकर दंतकथाओं में यह भी प्रचलित है कि राजगीर के महान राजा जारसंध द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था।

    यहां से गुप्त मार्ग राजगीर किले तक पहुंचा था। जिस रास्ते से राजा पूजा अर्चना करने के लिए मंदिर में आते थे। पहाड़ी के नीचे विशाल जलाशय पातालगंगा में स्नान कर मंदिर में पूजा अर्चना की जाती थी।

    राजधानी पटना से कैसे पहुंचे बराबर

    पटना से सड़क के जरिये यहां तीन से चार घंटे में पहुंच सकते हैं। पटना-गया राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 83 से होते हुए मखदुमपुर में जमुने नदी के पुल को पार करने पर पूरब की ओर सड़क जाती है।

    जो सीधे पर्यटक स्थल बराबर तक पहुंचती है। ट्रेन से आने वाले लोग बराबर हाल्ट पर उतर कर सवारी गाड़ी के माध्यम से भी यहां पहुंच सकते हैं।

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    यहां पर्यटकों की सुविधा के लिए जिला प्रशासन की ओर से कई इंतजाम किए गए हैं, सुरक्षा के लिए पुलिस रहती है वहीं खान-पान और ठहरने की सुविधा भी आसानी से मिल जाती है।

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