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    फल्गु का सीना चीर, खेतों को दिया नीर

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 15 Mar 2021 11:03 PM (IST)

    जहानाबाद। फल्गु नदी का सीना चीर कर अन्नदाताओं के खेतों को नीर पहुंचाना सरकार के लिए भी आसान काम नहीं था। ...और पढ़ें

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    फल्गु का सीना चीर, खेतों को दिया नीर

    जहानाबाद। फल्गु नदी का सीना चीर कर अन्नदाताओं के खेतों को नीर पहुंचाना सरकार के लिए भी आसान काम नहीं था। कुदाल और हल-बैल के बूते जमीन की जुताई होती थी। करीब दर्जन भर गांवों के किसानों ने फल्गु नदी की धारा को बालू से बांधकर करीब करीब दर्जन भर गांवों के लिए आहर और पइन का निर्माण श्रमदान से पूरा किया। 1962 में गंधार आहर पूर्वज की देन आज अतिक्रमण से अस्तित्व खो रहा है। इस आहर के कारण 1966-67 में सुखाड़ और अकाल किसानों के हौसले के आगे घूटने टेक दिया।

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    हम बात कर रहे हैं जहानाबाद जिले के गंधार पंचायत की। पंचायत के मुखिया रहे केसरी नंदन शर्मा ने सन् 1962 में किसानों से आहर निर्माण के लिए दान में जमीन मांगी। फिर किसानों के नेतृत्व में फल्गु नदी से गंधार पंचायत के हर गांव और खेतों तक फल्गु की धारा पहुंचाई थी। उन दिनों गांवों में शिक्षा की रोशनी नहीं पहुंची थी। पंचायत के जनप्रतिनिधियों के पास विकास योजनाओं का कोई फंड नहीं होता था। अधिकतम साइकिल की सवारी कुछ लोगों के पास ही थी। जहानाबाद जिले के मोदनगंज प्रखंड क्षेत्र के गंधार पंचायत के किसानों का भूमि और श्रमदान की सिर्फ निशानी बच गई है।

    -- टूटता गया संयुक्त परिवार --

    सिंचाई के परंपरागत कंधार आहर के मृत होने की कई वजह बताई जाती है। संयुक्त परिवार टूटता चला गया। किसानों की जोत घटने लगी। आधुनिकता की होड़ और लाल सलाम के नारे से गांव विरान होते चला गया। धूर-धूर जमीन के लिए लोग मेड़ काटर प्लॉट का आकार बढ़ाते गए और आहर-पइन विलुप्त होते चला गया। जलस्त्रोत को लोग अपने खेतों का हिस्सा बनाते चले गए।

    -- अकाल भी नहीं बिगाड़ सका --

    किसान के कुदाल चलते थे तब धरती की प्रकृति बदल जाती थी। मिट्टी पर अन्नदाता के पसीने की बूंद खुशहाली का इबादत लिखता चला गया। आहर की खुदाई में श्रमदानियों को कभी थकान नहीं महसूस हुआ। किसानों की यह मेहनत रंग लाई। 1966 और 67 में पूरे प्रदेश में भयंकर सूखा पड़ा था। तब न तो डीजल पंपसेट और नहीं बिजली पंपसेट होता था। कुएं तक सूख चुके थे। मवेशियों को पीने के पानी तक नसीब नहीं हो रहा था। ऐसे में इस इलाके के आधा दर्जन पईन आवश्यक कार्य के लिए पानी का स्त्रोत बना रहा। फसल भी सुरक्षित रह गए।

    -- आहर-पइन का हुआ था निर्माण --

    1. पासेव पइन का खुदाई गंधार आहर से केवल अहरिट तक किया गया था। जिसकी लम्बाई एक किलोमीटर है।

    2 रघुवरी आहर-पइन वहियारा तक सवा किलोमीटर।

    3. नुरपुर मौजा में गंधार निसिगेन से नुरपुर मढी तक लंबाई एक किलोमीटर।

    4. सवाजपुर नदी टट से गंधार आहर तक पइन साढ़े तीन किलोमीटर।

    -- एक हजार बिघा सिंचाई क्षमता --

    इन छोटे -छोटे पईन के माध्यम से एक हजार बीघा से ज्यादा भूमि की सिचाई की जाती है।कुछ पईन की उड़ाही नहीं होने के कारण नदी में अधिक पानी आने पर हीं इसमें फिलहाल पानी पहुंच रहा है।इन पईन की चौड़ाई दस से बारह फिट के आसपास है। समय समय मनरेगा योजना उड़ाही भी होती है।