भूत बंगले में तब्दील भारत पुस्तकालय
जहानाबाद । हुलासगंज प्रखंड क्षेत्र के रघुनाथपुर गांव में लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य स
जहानाबाद । हुलासगंज प्रखंड क्षेत्र के रघुनाथपुर गांव में लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से अंग्रेजी हुकूमत के दौरान करीब 1835 ई. में भारत क्लब की स्थापना की गयी थी। यह क्लब उस समय अपनी सही कार्यशैली से युवा वर्ग के दिलो दिमाग पर छा गया और इसकी लोकप्रियता समाज में कायम हो गयी लेकिन 1950 ई. के करीब भारत क्लब का विघटन कर सर्वसम्मति से इस क्लब के सदस्यों व सचिव ने इसका नाम बदलकर 1951 ई. में भारत पुस्तकालय की स्थापना की थी। 1959-60 के लगभग पुस्तकालय के अध्यक्ष स्व. भागीरथ सिंह व सदस्य मुंद्रिका सिंह द्वारा पचास प्रतिशत सहयोग राशि उपलब्ध कराया जाता था। सरकार द्वारा इस पुस्तकालय के भवन का निर्माण हेतु दो डिसमिल जमीन गांव के बीच में उपलब्ध कराय गया था। उस समय इस पुस्तकालय के सचिव स्व. बालेश्वर शर्मा थे जिनके कुशल प्रबंधन में यह दिन दुनी रात चौगुनी गति से विकास किया। कुछ ही समय में यहां करीब छह सौ पचास पुस्तकें लोगों को पढने के लिए उपलब्ध हो गयी। सरकार की तरफ से लोगों को देश विदेश का समाचार सुनने के लिए माईक्रोफोन की व्यवस्था करायी गयी थी। इस माईक्रोफोन द्वारा जब समाचार का समय पर प्रसारण किया जाता था तो बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होकर देश विदेश की खबर सुनते थे। ग्रामीण बुजुर्ग व सदस्य मुंद्रिका शर्मा ने इस पुस्तकालय की महत्ता को याद करते हुए कहते हैं कि इसकी काफी उपयोगिता है। उन्होंने बताया कि साठ के दशक में जब लोगों के बीच अशिक्षा व अज्ञानता का माहौल कायम था उस समय यह पुस्तकालय लोगों को नई दिशा, आयाम व विचारधारा से अवगत कराया था। उस समय यहां आर्यावर्त पेपर के अलावे मासिक पत्रिका भी नियति रुप से आता था। सोलह जनवरी 1972 ई. को तत्कालीन एमपी ने इस पुस्तकालय का निरीक्षण किया था और व्यवस्था को देखकर काफी खुशी जाहिर की थी। साथ ही पुस्तकालय के विकास के लिए लोगों से वायदा भी किया था। यह केन्द्र लोगों के बीच ज्ञान का दीप जलाने में 1985-86 ई. तक कायम रहा लेकिन इसके उपरांत इस ज्ञान के केन्द्र पर कुछ असामाजिक तत्वों की कुदृष्टि पड़ गई जिससे यह तबाह हो गया। इसका भवन भूत बंगला में तब्दील हो गया। आज असामाजिक तत्वों द्वारा इस संपदा को अतिक्रमित कर लेने से इसका अस्तित्व पूरी तरह से संकट में पड़ा हुआ है। केवल यादगार के रुप में कुछ दीवारें ही शेष रह गयी है।
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