बचपन नमाज अदा करते बीता, अब रामजाप में बीत रहा जीवन
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धीरज कुमार, जहानाबाद :
शिव मंदिर में शीश नवाते ही अररिया डीएम इंटरनेट मीडिया पर छा गई थीं। इधर, जहानाबाद में एक मुस्लिम सदीक अब सिद्धेश्वर दास दशकों से रामजाप में लीन हैं। प्रभु श्रीराम से इनकी यारी अनोखी है। बचपन नमाज अदा करते बीता, अब रामजाप में जीवन बीत रहा है। हर दिन एक लाख बार राम नाम का जाप करते हैं। प्रभु श्रीराम का दर्शन करने अयोध्या तक पैदल यात्रा कर चुके हैं। राम मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के जज के नाम सैकड़ों चिठ्ठी लिख चुके हैं। भगवान श्रीराम के प्रति इनकी साधना ने इन्हें हिदू समाज में महान संत के रूप में स्थापित कर दिया है। सालों से लाखों लोगों की आस्था इन पर टीकी है। सुख हो, दुख हो, सभी मौके पर हर वर्ग के लोग इनका आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। वह देश की आजादी के आंदोलन में शरीक होकर जेल भी जा चुके हैं। स्वतंत्रता सेनानी का पेंशन लेने से यह कहते हुए मना कर दिया था कि अभी देश की माली हालत अच्छी नहीं है। अभी भी सरकार से किसी तरह की मदद नहीं लेते हैं। अब उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं। 102 वर्ष के हो गए पर भगवान श्रीराम के प्रति साधना में कोई कमी नहीं आई है। हर दिन सुबह उठकर पचास हजार बार राम नाम का जाप करने के बाद अल्पाहार ग्रहण करते हैं। इनका वर्तमान स्थान शहर से आठ किमी दूर चातर गांव में हनुमानगढ़ से प्रचलित मंदिर में है। मूल निवास गया जिले के खिजरसराय प्रखंड अंतर्गत सिसवर है। अपनी जीवनी पर हिदी में किताब भी लिख चुके हैं, जिसमें भारत व पाकिस्तान के बीच बंटवारे के समय हुए दंगे का जिक्र है। दंगे में माता और बड़े भाई को इन्होंने खो दिया था। तब इनकी उम्र महज 18 के आसपास थी।
रामनाम का कीर्तन और भक्त प्रहृलाद की कथा ने डाला प्रभाव
वैष्णव संत सिद्धेश्वर दास बताते हैं कि मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के पांच साल बाद भी मेरा झुकाव भगवान श्रीराम के प्रति हो गया। सन 1934 में अपने गांव सिसवर में तब जहानाबाद के केउर गांव के शिक्षक सूरज शर्मा स्कूल में बच्चों को पढ़ाने आते थे। तुलसी जी की माला जपते हुए हर दिन एक घंटे तक रामनाम का कीर्तन कराते और भक्त प्रहृलाद जी की कथा सुनाते थे। तब मैं कक्षा चार का विद्यार्थी था। उसी समय से मैं राम नाम का जाप करने लगा। मांस-मछली खाना छोड़ दिया। तुलसी की माला भी बनाने लगा। इसी दौरान जहानाबाद के हाटी में आयोजित अखंड राम नाम नवाह कीर्तन में शामिल होने पहुंच गया। वहां श्री अनंत श्री मुनिजी महाराज के दर्शन बाद उसके सानिध्य में चला गया। पढ़ाई जारी रखते हुए प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन हो गया। टेकारी राज हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद 1946-47 में गया कालेज गया से इंटर की परीक्षा पास की। हर वर्ग में जिला टापर होने के कारण नौ वर्षों तक स्कालरशिप का लाभ मिलता रहा। 1936 में पहली बार स्कालरशिप मिला। तब वे चौथी कक्षा में पढ़ते थे।
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शिक्षक से पांच रुपये लेकर निकल गए थे अयोध्या
सन 1940 में चैत रामनवमी के अवसर पर सदीक एक शिक्षक से पांच रुपये लेकर अयोध्या में प्रभु श्रीराम से दर्शन करने निकल गए थे। उस वक्त टेकारी राज स्कूल में आठवीं कक्षा के छात्र थे। टेकारी से पैदल ही कोंच, गोह होते हुए रफीगंज स्टेशन पहुंचे। वहां से रेलवे लाइन धरकर पावरगंज स्टेशन आ गए। वहां से जीटी रोड होते हुए पश्चिम की ओर बढ़ने लगे। हर दिन दस से बाहर कोस चलते थे। रात में सड़क किनारे किसी के मकान के बरामदे में सो जाते थे। चार दिन की पैदल यात्रा कर काशी पहुंचे। वहां मउ टेकारी के बेदेही शरण जी मिल गए, जो उन्हें ट्रेन से साथ लेकर अयोध्या ले गए। वहां प्रभु श्रीराम समेत संत महात्माओं का दर्शन किया। सदीक अब सिद्धेश्वर दास का पूरा जीवन मठ-मंदिरों में ही बीता। बीत पांच साल से चातर में हैं।

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