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    त्रेता व द्वापर युग से जुड़ा है जहानाबाद का इतिहास, अब विकास के साथ कदमताल करने की कोशिश

    Updated: Tue, 16 Dec 2025 03:11 PM (IST)

    जहानाबाद का इतिहास त्रेता और द्वापर युग से जुड़ा है। यह शहर प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। माना जाता है कि इस क्षेत्र में कई पौराणिक घटनाएं घटी ...और पढ़ें

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    राकेश कुमार, जहानाबाद। जहानाबाद शहर का इतिहास अतिप्राचीन, गौरवशाली और उतार–चढ़ाव से भरा रहा है। प्राचीन काल में यह मांडवी नगर के नाम से जाना जाता था, जिसका संबंध पौराणिक कथाओं में भगवान श्रीराम के भाई भरत की पत्नी मांडवी से था, बाद में मुगल काल में यह नाम बदलकर जहांआरा बेगम के नाम से जहानाबाद हो गया।

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    महाभारत काल में यहां संगम घाट स्थित माता मांडेश्वरी मंदिर में पांडवों ने पूजा-अर्चना की थी। यह नगर धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक चेतना और सभ्यता का केंद्र रहा है। समय के साथ इतिहास ने करवट बदली। मुगल काल में यह क्षेत्र नए स्वरूप में सामने आया।

    मुगल शासक शाहजहां की पुत्री जहांआरा जहानाबाद आई थीं। आगमन के बाद यहां मंडियों का विकास हुआ, व्यापारिक गतिविधियों को गति मिली, जिसके बाद मांडवी नगर का नाम जहांआरा बेगम के नाम से जहांआराबाद और फिर जहानाबाद पड़ा।

    उद्योग क्षेत्र में जहानाबाद शहर की थी पहचान

    तकरीबन 25 वर्ष पहले जहानाबाद शहर औद्योगिक गतिविधियों के लिए भी जाना जाता था। उस समय यहां चमड़ा शोधन इकाइयां, बल्ब निर्माण कारखाने, बाल्टी उद्योग, हथकरघा जैसे कुटीर उद्योग सक्रिय थे। इन उद्योगों से न केवल शहर बल्कि आसपास के ग्रामीण इलाकों के लोगों को भी रोजगार मिलता था।

    कारीगरों की मेहनत से बाजार चलते थे और युवाओं को अपने ही शहर में काम के अवसर उपलब्ध थे। समय के साथ विभिन्न कारणों से अधिकांश उद्योग धंधे बंद हो गए। पूंजी की कमी,आधुनिक तकनीक का अभाव, सरकारी सहयोग न मिलना और बेहतर अवसरों की तलाश में कुशल श्रमिकों का पलायन, इन सबने जहानाबाद की औद्योगिक पहचान को कमजोर कर दिया।

    उद्योग बंद होने का सबसे बड़ा असर युवाओं पर पड़ा, जिन्हें रोजगार के लिए बाहर के शहरों और राज्यों की ओर पलायन करना पड़ा। आज आवश्यकता है कि जहानाबाद को फिर से एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाए। इसके लिए छोटे और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देना, स्थानीय कारीगरों को प्रशिक्षण देना और नई तकनीक से जोड़ना जरूरी है।

    नक्सली गतिविधियों ने किया था बदनाम

    जहानाबाद ने कई कठिन दौर देखे हैं। विशेष रूप से 1990 के दशक में यह शहर नक्सली गतिविधियों के कारण राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहा। नक्सली तांडव, हिंसा और अस्थिरता ने शहर की पहचान को गहरे रूप से प्रभावित किया।

    इसका सबसे भयावह उदाहरण 13 नवंबर 2005 की रात देखने को मिला,जब जहानाबाद जेल ब्रेक की घटना ने पूरे देश और दुनिया का ध्यान इस शहर की ओर खींच लिया। इस एक घटना के बाद जहानाबाद की गिनती नक्सल प्रभावित और बदनाम क्षेत्रों में होने लगी थी, जिससे यहां का विकास कई वर्षों तक बाधित रहा।

    अब विकास के साथ कदमताल करने की कोशिश

    समय के साथ परिस्थितियां बदलीं। वर्तमान समय में जहानाबाद विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है और अपनी पुरानी छवि से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है। शहर के बाहर बाईपास का निर्माण किया गया है, जिससे यातायात व्यवस्था में सुधार हुआ है। शहर के अंदर सड़कों का चौड़ीकरण किया जा रहा है, जिससे जाम की समस्या कम हुई।

    मॉडल रेलवे स्टेशन के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है, जो भविष्य में शहर को बेहतर रेल संपर्क प्रदान करेगा। सदर अस्पताल के लिए बड़े भवन का निर्माण जारी है, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की संभावना है। इन सभी विकास कार्यों से यह स्पष्ट है कि जहानाबाद अब विकास के साथ कदमताल करने की कोशिश कर रहा है।

    कई बुनियादी सुविधाओं की कमी

    शहर आज भी कई बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहा है। मामूली बारिश होते ही शहर के विभिन्न मोहल्लों में जलजमाव की गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है। नालियों की उचित व्यवस्था और जल निकासी की कमी के कारण आम जनजीवन प्रभावित होता है।

    शहर में सार्वजनिक शौचालयों की सुविधा लगभग न के बराबर है, जिससे महिलाओं, बुजुर्गों और बाहर से आने वाले लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। स्वच्छता, पेयजल व्यवस्था, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और सार्वजनिक परिवहन जैसी मूलभूत सुविधाओं की भी अभी व्यापक आवश्यकता है।

    केवल सड़कों और भवनों का निर्माण ही विकास नहीं कहलाता, बल्कि नागरिकों के दैनिक जीवन को आसान और सुरक्षित बनाना ही सच्चा विकास है। जब तक ये बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होंगी, तब तक शहर की सुंदरता और विकास अधूरा ही रहेगा।