By rakesh kumarEdited By: Prateek Jain
Updated: Tue, 25 Jul 2023 11:19 PM (IST)
Bihar News सरकार की ओर से काफी पहले टोला सेवक की बहाली की गई थी। पिछले साल इनके नाम में बदलाव कर शिक्षा सेवक कर दिया गया। सरकार के नियोजित कर्मी की तरह इन्हें भी मानदेय दिया जाता है। पर कार्य के नाम पर कुछ खास जिम्मेदारी नहीं होने के कारण लोग शिक्षा सेवक शब्द से भी अपरिचित हैं।
जागरण संवाददाता, जहानाबाद: सरकार की ओर से काफी पहले टोला सेवक की बहाली की गई थी। पिछले साल इनके नाम में बदलाव कर शिक्षा सेवक कर दिया गया। सरकार के नियोजित कर्मी की तरह इन्हें भी मानदेय दिया जाता है। पर कार्य के नाम पर कुछ खास जिम्मेदारी नहीं होने के कारण लोग शिक्षा सेवक शब्द से भी अपरिचित हैं।
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इन दिनों शिक्षा विभाग अपनी व्यवस्था को दुरुस्त करने की मुहिम में जुटा है। इस मुहिम के तहत शिक्षा सेवकों पर भी सख्ती शुरू हो गई है, जिस टोले से विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति 90 प्रतिशत से कम रहेगी, उन टोला सेवकों, नया नाम शिक्षा सेवक के मानदेय में कटौती की जाएगी।
नए आदेश के बाद सक्रिय हुए शिक्षा सेवक
नए आदेश के बाद शिक्षा सेवक सक्रिय हो गए हैं। गांव के लोगों को इस नए पद के बारे में जानकारी मिलने लगी है। दरअसल, टोला सेवकों की नियुक्ति दलित परिवार के बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से की गई थी।
अभिभावकों को जागरूक करते हुए बच्चों के पढ़ाने के लिए स्कूलों में नामांकन कराने की जिम्मेदारी टोला सेवकों को दी गई थी। इसके बदले में उन्हें प्रतिमाह 12 हजार रुपए मानदेय दिया जाता है, लेकिन टोला सेवक ग्रामीण इलाकों में किसी खास मौके पर ही नजर आते थे।
विभागीय स्तर पर भी इन पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता था। नियोजन के तहत वेतन तो लेते थे, लेकिन कार्य के नाम पर जमीनी स्तर पर कुछ भी नजर नहीं आता था।
अब व्यवस्था को दुरुस्त करने की मुहिम में इन लोगों को भी अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन का निर्देश प्राप्त हुआ है। वेतन में कटौती के डर से वे लोग अब दलित परिवार के बीच जाकर बच्चों को स्कूल तक लाने के कार्य में जुट गए हैं।
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