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बीबी कमाल के दरगाह का है अतिप्राचीन इतिहास

जहानाबाद-एकंगर सराय राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-110 पर प्रखंड मुख्यालय पर अवस्थित हजरत।

By JagranEdited By: Published: Fri, 08 Sep 2017 03:04 AM (IST)Updated: Fri, 08 Sep 2017 03:04 AM (IST)
बीबी कमाल के दरगाह का है अतिप्राचीन इतिहास
बीबी कमाल के दरगाह का है अतिप्राचीन इतिहास

जहानाबाद। जहानाबाद-एकंगर सराय राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-110 पर प्रखंड मुख्यालय पर अवस्थित हजरत बीबी कमाल के मजार का काफी पुराना इतिहास है। पिछले चार साल से प्रतिवर्ष इस मजार पर सूफी महोत्सव का आयोजन हो रहा है। सरकार ने इसे सूफी सर्किट का दर्जा दिया है। शुक्रवार को यहां बड़े ही धूमधाम के साथ सूफी महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। लोगों का कहना है कि वर्ष 1174 में बीबी कमाल अपनी बेटी दौलती बीबी के साथ काको आई थी। यहां आने के बाद से ही वह काको की ही रह गई। उन्हें देश की पहली महिला सूफी संत होने का गौरव हासिल हुआ है। उनके मजार पर शेरशाह तथा जहांआरा जैसे मुगल शासक भी चादरपोशी कर दुआएं मांगी थी। बीबी कमाल के मजार पर आज भी लोग रूहानी ईलाज के लिए आते हैं और मन्नत मांगते हैं। जनानखाना से दरगाह शरीफ के अंदर लगे काले रंग के पत्थर को कड़ाह कहा जाता है। दरगाह कमेटी के सदस्य ताबिश बारसी के अनुसार यहां जो लोग सच्चे मन से इबादत करते हैं उनकी मनोकामना पूरी होती है। वैसे मानसिक रूप से ग्रसित लोग भी यहां आते हैं। लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस मजार में काफी शक्ति है। दरगाह के अंदर दरवाजे के समीप सफेद व काले पत्थर पर लोग अंगुली को घिसकर आंख पर लगाते हैं तो उसकी रौशनी बढ़ जाती है। इस मजार के समीप एक अतिप्राचीन कुंआ भी है। मानना है कि इस कुएं के पानी का उपयोग कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए फिरोज शाह तुगलक ने किया था। हजरत बीबी कमाल के दरगाह की चर्चा आइने अकबरी में भी की गई है। उनका मूल नाम मकदुमा बीबी हटिया उर्फ बीबी कमाल है। उर्स के मौके पर यहां बिहार के अलावा उतर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा झारखंड सहित देश के अन्य हिस्से से लोग यहां आते हैं और मजार पर चादरपोशी कर अमन चैन एवं समृद्धि की दुआ मांगते हैं।


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