5 हजार रुपये से शुरू किया काम; अब कमा रहीं 50 हजार रुपये महीना, हुनर सीखकर स्वावलंबन की ओर बढ़ रही आधी आबादी
कभी महिलाओं की दिनचर्या घरों तक ही सिमटी रहती थी लेकिन बीते कुछ सालों में महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। विशेष कर रोजी रोजगार के साथ शिक्षा के क्षेत्र में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रही हैं। सरकारी आंकड़े भी यह बताते हैं कि जिले में इस समय तीन हजार से अधिक महिलाओं का समूह संचालित हो रहा है।
मिथिलेश तिवारी, गोपालगंज। विजयीपुर प्रखंड के छितौना गांव की जया सिंह ने कृषि विज्ञान केंद्र छपरा तथा कृषि विज्ञान केंद्र सिपाया से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लेकर इसकी खेती शुरू की।
आज ये स्वावलंबी हैं और इनसे प्रेरणा लेकर छितौना व आसपास के गांव की महिलाएं मशरूम की खेती कर स्वावलंबी बनने की राह पर आगे बढ़ रही हैं।
इन्हीं की तरह बरौली प्रखंड के बखरौर जदी गांव निवासी विश्वनाथ श्रीवास्तव की पुत्री रेखा कुमारी शादी होने के बाद मनी छापर गांव में बहू बनकर ससुराल आईं।
इंटर तक पढ़ी-लिखीं रेखा कुमारी के पति अश्वनी कुमार भारतीय जीवन बीमा निगम में काम करते हैं। ऐसे में घर में खाली बैठने की जगह इन्होंने खुद स्वावलंबी बनने का रास्ता चुना।
इन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल कृषि विश्वविद्यालय पूसा से मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण लेकर अपने घर के खाली कमरों में इसकी खेती शुरू की।
पांच हजार रुपये लागत से शुरू की गई मशरूम की खेती से अब रेखा कुमारी को प्रति माह 50-60 हजार रुपये की आय हो रही है।
जिले में मशरूम की खेती करने में महिलाएं अब पुरुषों से आग निकल गई हैं। इसी प्रकार मांझा की सरस्वती देवी, पंचदेवरी की निर्मला देवी जैसी कई महिलाओं ने खुद को स्वावलंबी बनाकर आसपास के लोगों के लिए नजीर भी बनी हैं।
कभी महिलाओं की दिनचर्या घरों तक ही सिमटी रहती थी, लेकिन बीते कुछ सालों में महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।
विशेष कर रोजी रोजगार के साथ शिक्षा के क्षेत्र में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रही हैं।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जिले में इस समय तीन हजार से अधिक महिलाओं का समूह संचालित हो रहा है।
इस समूह से जुड़ी महिलाएं न सिर्फ अपना काम धंधा कर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को आगे बढ़ा रही हैं।
बल्कि इनके प्रयास से ग्रामीण इलाके की अन्य महिलाएं भी रोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।
कई निजी विद्यालयों का संचालन रह रही आधी आबादी
शिक्षा के क्षेत्र की बात करें तो इस क्षेत्र में भी आधी आबादी ने अपनी पहचान को स्थापित किया है।
अब तो महिलाएं शिक्षा के मंदिर की दशा सुधारने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
जिले में एक दर्जन से अधिक निजी स्कूलों का संचालन महिलाएं कर रही हैं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी निभा रहीं भूमिका
स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली आशा व ममता आज जागरूकता की कड़ी के रूप में काम कर रही हैं।
महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में इनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
सरकार से मिलने वाली प्रोत्साहन की राशि के एवज में ये समाज को न केवल जागरूक कर रही हैं। बल्कि समाज को अधिकार व कर्तव्य का पाठ भी पढ़ा रही हैं।
गर्भवती माता के टीकाकरण का मामला हो या किसी मरीज को अस्पताल तक लाने की जिम्मेदारी, ये महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
सरकारी योजनाओं से मिली ताकत
सरकार से संचालित योजनाओं से भी महिलाओं को काफी ताकत मिली है। आरक्षण ने जहां इनमें राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया है।
वहीं, शिक्षा के क्षेत्र में आधी आबादी की योजनाओं से विद्यालयों में छात्राओं की संख्या बढ़ी है। अब छात्राएं पढ़ाई के क्षेत्र में छात्रों को टक्कर देने लगी हैं।
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