गोपालगंज में 7 साल बाद सासामुसा चीनी मिल फिर शुरू होने की उम्मीद, लोगों में खुशी की लहर
बिहार के गोपालगंज जिले में स्थित सासामुसा चीनी मिल, जो सात साल से बंद है, उसकी चिमनी से धुंआ निकलने की उम्मीद जगी है। मिल के पुनरुद्धार की संभावना से ...और पढ़ें

मनोज कुमार राय, कुचायकोट (गोपालगंज)। कुचायकोट प्रखंड के सासामुसा बाजार स्थित ऐतिहासिक चीनी मिल मिल हुए भीषण हादसे के बाद पिछले सात वर्षों से बंद है। अब जबकि बिहार सरकार (Bihar Goverment) ने पंद्रह बंद पड़े चीनी मिलो के जीर्णोद्धार के बाद पुनः संचालन की घोषणा की है। इस सूची में सासामुसा चीनी मिल का भी नाम देख कर किसानों को उम्मीद की किरण दिखी है।
मिल संचालन को लेकर किसानों ने भी कमर कस ली है। इसके लिए किसान मिल के गेट पर आगामी 14 दिसंबर को धरना प्रदर्शन करने वाले हैं। एक समय क्षेत्र की आर्थिक धुरी मानी जाने वाली यह मिल अब जर्जर खंडहर में बदल चुकी है।
मिल बंद होने से कुचायकोट, पंचदेवरी, कटेया समेत आधा दर्जन प्रखंडों के किसानों और मजदूरों की आजीविका चरमरा गई है। गंडक किनारे बसे गांवों से लेकर यूपी सीमा से लगे इलाकों तक के किसान कभी गन्ने की खेती को अपनी सबसे भरोसेमंद फसल मानते थे, लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं।
1932 से चल रही परंपरा 2018 की दुर्घटना के बाद टूटी
साल 1932 में स्थापित यह निजी शुगर मिल 2015 तक सामान्य रूप से संचालित हो रही थी। मगर प्रबंधन में बढ़ती खींचतान और वित्तीय अव्यवस्थाओं ने धीरे-धीरे इसकी रफ्तार रोक दी। 2015 के बाद किसानों का बकाया लगातार बढ़ता गया और दिसंबर 2018 की भीषण दुर्घटना हुई। इसमें सात मजदूरों की मौत हुई।
इस घटना ने मिल को घुटनों पर ला दिया। हादसे के बाद 2019 में मिल महज 15 दिनों के लिए अस्पष्ट रूप से चलाई गई और फिर पूरी तरह बंद कर दी गई।
40 करोड़ से अधिक का बकाया, हजारों परिवार प्रभावित
मिल बंद हुई तो सबसे बड़ा झटका उन किसानों को लगा जिन्होंने वर्षों तक मिल पर भरोसा करके गन्ना उगाया। वर्तमान में किसानों का 40 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान बकाया होने का अनुमान है। मिल के स्थायी कर्मचारी, दैनिक मजदूर और आसपास के कारोबारियों की आमदनी पूरी तरह चौपट हो गई है।
कई परिवार बेरोजगारी और कर्ज के बोझ तले दबते जा रहे हैं। गन्ने के सहारे चलने वाली परिवहन व्यवस्था और छोटे-मोटे व्यवसाय भी प्रभावित हुए हैं।
बैठकें बहुत हुईं, समाधान नहीं निकला
सासामुसा चीनी मिल चलाने को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर जिला प्रशासन तक सभी ने मिल संचालक और राज्य सरकार के गन्ना व उद्योग विभाग के अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकों में समाधान निकालने की कोशिश की।
अधिकारियों ने हर बार मिल संचालन में सहयोग का आश्वासन दिया, लेकिन प्रबंधन आंतरिक और पारिवारिक विवादों का हवाला देकर उत्पादन बहाल करने में असमर्थ रहा।
नतीजतन, क्षेत्र के हजारों किसान, श्रमिक और उनके परिवार आज भी अनिश्चितता और आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। लोग अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शायद किसी दिन मिल की चिमनी फिर धुआं उगले और इलाके की रौनक वापस लौट आए।

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