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    Gopalganj News: आस्था की प्रतीक 8 में से 6 नदियां बदहाल, लंबे समय से कर रहीं उद्धार का इंतजार

    Updated: Sat, 11 Oct 2025 01:58 AM (IST)

    गोपालगंज जिले में आस्था की प्रतीक छह नदियाँ बदहाल हैं, जिनके उद्धार का इंतजार है। छाड़ी नदी के सौंदर्यीकरण की योजनाएँ फाइलों में दबी हैं, जबकि अन्य नदियाँ अतिक्रमण और गाद से ग्रस्त हैं। नदियों में कचरा डाला जा रहा है, जिससे उनकी स्थिति और खराब हो रही है। सोना नदी सूख रही है, और घोग्हारी, धमई और स्याही नदियाँ अस्तित्व की जंग लड़ रही हैं।

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    आस्था की प्रतीक आठ में से छह नदियां बदहाल। फोटो जागरण

    मिथिलेश तिवारी, गोपालगंज। आस्था की प्रतीक जिले की आठ में से छह नदियों को उद्धार का इंतजार है। लंबी अवधि से इन नदियों को उनके पुराने स्वरूप में लौटाने की योजना फाइलों में ही दबी हुई है। 

    दो दशक पूर्व जिला मुख्यालय से होकर गुजरने वाली छाड़ी नदी के सुंदरीकरण व नौका विहार की व्यवस्था करने की योजना बनी थी। दूसरी बार तीन साल पूर्व अतिक्रमण हटाने की योजना तैयार की गई। दोनों योजनाएं कागज से आगे नहीं बढ़ सकीं। 

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    अब जल संसाधन विभाग की मदद से नदी को उसके पुराने स्वरूप में लाने के लिए 78 करोड़ की लागत से योजना तैयार की गई है। दो साल बाद भी यह नदी योजना 'सुस्ती में फंसी' ही नजर आ रही है।

    गोपालगंज जिले से होकर गंडक, खनुआ, वाणगंगा, सोना, छाड़ी, धमई, स्याही तथा घोघारी नदियां बहती हैं। तीन दशक पूर्व तक नदियों के कारण जलस्तर भी बेहतर स्थिति में था। 

    समय के साथ नदियों में गाद भरने लगी तथा इसके किनारों पर अतिक्रमण प्रारंभ हो गया। इसका नतीजा सामने आने लगा है। जिले की पांच नदियों में अतिक्रमण का आलम यह कि दाहा, सोना, छाड़ी, धमई, स्याही, वाणगंगा तथा घोघारी नदियां संकरी हो चुकी हैं। 

    ऊपर से गाद की समस्या भी यहां गंभीर बनती जा रही है। गंडक व खनुआ नदी भी गाद में फंसी हुई है। यहीं कारण है के प्रत्येक वर्ष गर्मी की शुरुआत में ही जिले से होकर गुजरने वाली आठ में से छह नदियों का पानी सूख जाता है।

    नदियों के किनारों तक बन गए मकान

    शहर से होकर गुजर रही छाड़ी नदी के अलावा दाहा उर्फ वाणगंगा नदी के दोनों किनारों पर मकान का निर्माण करा दिया गया है। 

    मकानों का निर्माण करते वक्त कई लोगों ने छाड़ी नदी की जमीन पर भी कब्जा जमा लिया गया है। इस बात की जानकारी जिला प्रशासन को है। इसके बाद भी अतिक्रमण को हटाने की दिशा में कोई भी अपेक्षित कार्रवाई नहीं की गई है।

    छाड़ी नदी में ही डाला जाता है कचरा

    शहर के कई मोहल्लों से होकर गुजर रही छाड़ी नदी में ही नदी किनारे रहने वाले लोग कचरा फेंकते हैं। इसके कारण भी नदी की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। 

    नदी के आधा दर्जन स्थानों पर कचरा के कारण नदी भर चुकी है। इस जमीन पर भी अतिक्रमणकारी लगातार कब्जा कर रहे हैं। 

    शैवाल व गंदगी से पट गई छाड़ी नदी

    जिला मुख्यालय से होकर गुजरने वाली छाड़ी नदी में करीब ढाई दशक पूर्व तक सालों भर पानी रहता था। इसका कारण छाड़ी नदी व गंडक नदी का आपस में जुड़ना रहा। 

    वर्ष 1998-99 में गंडक नदी के कारण आयी बाढ़ में जिला मुख्यालय भी इसकी चपेट में आ गया था। इसके बाद छाड़ी नदी व गंडक नदी को आपस में जोड़ने वाले मुहाना को हीरापाकड़ में बंद कर दिया। 

    नदी का मुहाना बंद किए जाने के बाद छाड़ी नदी में पानी आना बंद हो गया। यहीं से नदी की बदहाली की कहानी प्रारंभ हुई। ढाई दशक की अवधि बीतने के बाद भी हीरापाकड़ स्लुईस गेट को नहीं खोले जाने से नदी के अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है। 

    यूपी से निकलने वाली सोना नदी की हालत भी खराब 

    सीमावर्ती यूपी से निकलने वाली सोना नदी अप्रैल माह से ही बेपानी हो जाती है। नदी की तलहटी की लंबे समय से सफाई नहीं होने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। 

    कई इलाकों में अतिक्रमण की शिकार नदी का पानी आज गंदगी, प्रदूषण तथा संरक्षण के अभाव के कारण दूषित हो गया है। पूर्व में इस नदी के पानी का उपयोग पीने, नहाने, मवेशियों को पिलाने और खेतों की सिंचाई करने के लिए किया जाता था, लेकिन वर्तमान समय में पानी दूषित हो जाने के कारण अनुपयोगी हो गया है।

    तीन नदियां लड़ रहीं अस्तित्व बचाने की जंग

    नदियों की गाद की सफाई का मामला जहां का तहां पड़ा हुआ है। नदियां गाद से भरी पड़ी हैं। ऐसे में जिले से होकर गुजरने वाली घोघारी, धमई व स्याही नदी अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहीं हैं। 

    इन नदियों की सफाई पिछले चार दशक में एक बार भी नहीं होने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। शासन की नजर इन नदियों पर नहीं पड़ने के कारण कई इलाकों में यह अतिक्रमण की शिकार भी हो गई हैं। 

    नदियों में गाद भर जाने के कारण बरसात के दिन में तीनों नदियां भारी तबाही मचाती हैं। तीन नदियों में से स्याही नदी के अधिकांश हिस्सा खेत में बदल गया है।