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    बालू और झाड़ी की कैद में गंडक नहर, तेजी से घट रही बहाव क्षमता, 2 लाख हेक्टेयर खेत प्यासे!

    Updated: Thu, 30 Oct 2025 01:26 PM (IST)

    गोपालगंज जिले में गंडक नहर की हालत जर्जर हो गई है, जिससे सिंचाई क्षमता में भारी कमी आई है। 1972 में बनी इस नहर की जल बहाव क्षमता घटकर आधी रह गई है, जिससे दो लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई प्रभावित हो रही है। नहरों की सफाई न होने और जलवाहों की कमी के कारण किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

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    बालू और झाड़ी की कैद में गंडक नहर

    मिथिलेश तिवारी, गोपालगंज। एक समय था कि जिले में खेती योग्य भूमि का अधिकांश हिस्सा नहरों से सिंचित होती थी। समय के साथ गंडक नहर में बहाव की क्षमता कम होती गईं। साथ ही पर्याप्त देखरेख के अभाव में गंडक नहर भी जवाब देने लगी है। 

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    आंकड़े गवाह हैं कि निर्माण के 50 साल बाद गंडक नहर में पानी के बहाव की क्षमता घटकर आधे से भी कम पर जा पहुंची है। रही सही कसर जलवाहों की कमी और नहर में जहां-तहां हो रहे रिसाव तथा बालू व झाड़ी से पटी नहरें पूरी कर दे रही हैं।

    जानकार बताते हैं कि 1972 में गंडक नहर का निर्माण कराया गया था। तब इस नहर में पानी के बहाव की क्षमता 8500 क्यूसेक (प्रति सेकेंड घनफुट) थी। लेकिन आज बहाव घटकर चार हजार क्यूसेक से भी कम हो गई है। तब इस नहर से संपूर्ण जिले में दो लाख हेक्टेयर से भी अधिक भूमि की सिंचाई का दावा किया गया था। 

    आज इसकी सिंचाई क्षमता कृषि कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार घटकर गोपालगंज डिविजन में केवल 55 हजार 400 हेक्टेयर तक सिमट गयी है। हालांकि धरातल पर नहरें 35 हजार हेक्टेयर खेतों की भी सिंचाई नहीं कर पाती हैं। 

    अब तो हालत ऐसी बन गयी है कि कुचायकोट सहित तीन-चार प्रखंड छोड़ कर अन्य प्रखंडों के लिए यह नहर बेईमानी होती जा रही है।

    सुखदेव पट्टी में होता है यूपी से जिले में नहर का प्रवेश

    कुचायकोट के सुखदेव पट्टी गांव के समीप उत्तर प्रदेश की ओर से मुख्य नहर का प्रवेश होता है। अकेले इसी प्रखंड में यह नहर 70 आरडी तक लंबी है। इसी क्षेत्र के जीरो आरडी से कटैया शाखा नहर, 9 आरडी से गोपालगंज वितरणी, 71 आरडी से विशुनपुर वितरणी, 30 आरडी से हथुआ शाखा नहर, 51.6 आरडी से सिधवलिया वितरणी निकली है। 

    इन्हीं नहरों से शाखा नहर, वितरणी, उप वितरणी तथा लघु वितरणी के सहारे जिले के 14 में से 12 प्रखंडों में नहरों का जाल बिछा हुआ है।

    900 गांवों में होती थी सिंचाई

    पहले पूरे जिले में छोटी-बड़ी नहरों को मिलाकर एक हजार किलोमीटर क्षेत्र में करीब नौ सौ गांवों के खेतों की सिंचाई की जाती थी। आज यह दूरी घट चुकी है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि सिंचाई के लिए पर्याप्त स्थानों पर जलवाहा नहीं बनने तथा कई शाखा नहर, वितरणी, उप वितरणी तथा लघु वितरणी में पानी नहीं छोड़े जाने के कारण नहरें खेतों की सिंचाई नहीं कर पा रहीं हैं। 

    इसके लिए गंडक एरिया विकास प्राधिकार नामक एक अलग विभाग भी बनाया गया है। लेकिन पर्याप्त राशि आवंटन के अभाव में यह प्राधिकार कागजी कार्रवाई तक ही सिमटता जा रहा है।

    सिंचाई नहीं होने का प्रमुख कारण नहरों की सफाई

    जानकार लोगों का कहना है कि नहरों से खेतों की सिंचाई कम होने का प्रमुख कारण नहरों की समय रहते सफाई नहीं होना है। कुचायकोट के रामेश्वर राय, मांझा के प्रमोद शर्मा, बरौली के प्रदीप कुमार आदि का कहना है कि सफाई के अभाव में नहरों में आने वाला पानी इसके दूसरे सिरे तक नहीं पहुंच पाता है। 

    नहरों में कुछ इलाकों में पानी जमा होने के कारण इसमें रिसाव होने के कारण भी सैकड़ों एकड़ में लगी फसलें भी बर्बाद होती है। इस संबंध में पूछे जाने पर गंडक प्रोजेक्ट के कार्यपालक अभियंता ने माना कि नहर में पानी का बहाव कम हुआ है लेकिन वे इस आरोप को सिरे से नकार देते हैं कि नहरों की पेटिकाओं की समय से सफाई नहीं की जाती है।