'केरवा जे फरेला घवद से', बिहार चुनाव में अनोखा संगम; जनसभाओं में गूंज रहे छठ पूजा के गीत
बिहार चुनाव में एक अद्भुत दृश्य देखने को मिल रहा है। चुनावी रैलियों में छठ पूजा के प्रसिद्ध गीत 'केरवा जे फरेला घवद से' की गूंज सुनाई दे रही है। राजनीतिक दल इस गीत के माध्यम से मतदाताओं को आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे चुनावी माहौल भक्तिमय हो गया है। यह अनूठा संगम लोगों को संस्कृति से जोड़ रहा है।

बिहार विधानसभा चुनाव में छठ पूजा धुन का जलवा। फोटो जागरण
नीरज कुमार सिंह, गोपालगंज। बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार में इस बार एक अनोखा संगम देखने को मिल रहा है। आस्था की धुनें और सियासत की रौनकें एक साथ गूंज रही हैं।
चुनावी मंचों, रोड शो और जनसभाओं में इस बार छठ पूजा के पारंपरिक गीतों ने राजनीतिक माहौल को भक्ति रस से भर दिया है। जहां पहले चुनावी गाड़ियों से पार्टी गीत और नारे सुनाई देते थे, वहीं अब केलवा जे फरेला घवद से...” और सवा लाख के सारी भींगे” जैसी लोकप्रिय छठ धुनों पर मतदाता झूमते नजर आ रहे हैं।
आस्था और पहचान से जुड़ी इस लोक परंपरा का उपयोग अब सियासी संदेशों को भावनात्मक रंग देने के लिए किया जा रहा है। कई प्रत्याशी अपने प्रचार वाहन और सभाओं में छठ गीतों के साथ जनसंपर्क शुरू कर रहे हैं, ताकि लोगों से सीधा जुड़ाव बन सके।
गांवों और कस्बों में जब प्रचार गाड़ियां इन गीतों की गूंज के साथ निकलती हैं, तो महिलाएं द्वार पर थम जाती हैं और बच्चों के चेहरे खिल उठते हैं। सांस्कृतिक विश्लेषकों का कहना है कि छठ सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि बिहार की आत्मा है, और जब यह चुनावी माहौल में गूंजता है, तो लोगों के दिलों में अपनी जड़ें और परंपराएं जागृत हो जाती हैं।
इसीलिए कई राजनीतिक दलों ने अपने अभियान में छठ की धुनों को शामिल किया है, ताकि मतदाताओं से भावनात्मक जुड़ाव स्थापित किया जा सके। डीजे संचालक और स्थानीय कलाकार भी इस मौसम में खासे सक्रिय हैं।
उन्होंने छठ गीतों के रिमिक्स और सॉफ्ट टोन वर्जन तैयार किए हैं, जो युवाओं में भी लोकप्रिय हो रहे हैं। एक स्थानीय गायक ने कहा, “छठ मईया का गीत बजता है तो माहौल अपने आप पवित्र हो जाता है, चाहे मंच राजनीतिक ही क्यों न हो।”
इस तरह चुनावी नारों की भीड़ में इस बार छठ की भक्ति और लोकधुनों ने अपनी अलग जगह बना ली है। सियासी शोर में जब “मईया हे छठी” व "केलवा के पात पर" की मधुर तान गूंजती है, तो जनता भी भावनाओं से जुड़ जाती है और यही इस बार के चुनाव की सबसे अनोखी धुन बन गई है।
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