Yaas cyclone ने रामगढ़ में सब्जी की फसल को पहुंचाया नुकसान, खेतों में सड़ रहे तरबूज-खरबूज जैसे फल
कभी प्रकृति की मार तो कभी कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन की मार से भटौली गांव के ग्रामीण त्रस्त हैं। जिस सब्जी की खेती से यहां के लोग समृद्धशाली हो रहे थे अब वे लोग दो वर्षों से प्रकृति की मार से बेजार हो गए हैं।

संवाद सूत्र, रामगढ (कैमूर)। कभी प्रकृति की मार तो कभी कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन की मार से भटौली गांव के ग्रामीण त्रस्त हैं। जिस सब्जी की खेती से यहां के लोग समृद्धशाली हो रहे थे, अब वे लोग दो वर्षों से प्रकृति की मार से बेजार हो गए हैं। तकरीबन सौ एकड़ से अधिक खेतों में लगी सब्जी की फसल यास तूफान के आने से तहस नहस हो गई है।
तरबूज-खरबूज की तो ऐसी स्थिति हो गई है कि खेतों में लगे फल सड़ कर नष्ट हो गए हैं। दैतरा बाबा स्थान के समीप मोहनियां बक्सर पथ पर एक सप्ताह पहले गुलजार रहने वाली मंडी अब वीरान हो गई है। बेमौसम सब्जी के फसलों पर यास के प्रकोप पडऩे से किसान माथे पर हाथ धरकर किस्मत का रोना रो रहे हैं। तकरीबन एक करोड़ की सब्जी व तरबूज खरबूज भटौली के किसानों के नष्ट होने की बात बताई जा रही है। जिसकी भरपाई दो चार वर्षों में भी नहीं हो सकने की बात बताई जा रही है।
महंगे दाम पर मालगुजारी देकर खेतों में सब्जी की फसलों को लगाकर इलाके में सब्जी की खेती में मिसाल कायम करने वाले भटौली के किसानों पर इन दिनों मुसीबत की मार पड़ गई है। नेनुआ, लौकी, करैला, परवर, भिंडी, बैगन, खीरा आदि सब्जी की फसलें पूरे गर्मी से लेकर आषाढ़ माह तक निकलती थी। इससे सस्ता सब्जी बाजारों में उपलब्ध हो जाती थी। लेकिन अब सब्जी की महंगाई की मार लोगों पर पडऩे लगी है। पांच दिन पहले बाजार में बिकने वाली सब्जी नेनुआ, लौकी, करैला, भिंडी, की कीमत दो से चार रुपए किलो मिलती थी। लेकिन अब 25 से 30 रुपए किलो सब्जी बिकने लगी है।
भटौली के किसान राजेंद्र चौधरी, संजय कुशवाहा, बिग्गु कुशवाहा, चुन्नू कुशवाहा, महेंद्र कुशवाहा, रामदुलार पासवान, धर्मदेव चौधरी, रामाशीष पासवान आदि ने बताया कि पिछले वर्ष कोरोना के चलते लॉकडाउन होने के कारण सब्जी बाहर नहीं जा सकी। लेकिन सब्जी पर प्रकृति की मार नहीं पडऩे से पूंजी बरकरार थी। लेकिन, इस बार तो लॉकडाउन के साथ साथ यास तूफान से सारी सब्जी की फसलें नष्ट हो गई है। तरबूज खरबूज का तो और खराब हाल है। इसी तरह की स्थिति बनी रही तो हम जैसे किसान सब्जी की खेती से मुंह मोडऩे पर मजबूर होंगे।
सरकार द्वारा नहीं मिली सहायता
इन किसानों को केवल अनुदान के लिए आश्वासन ही मिला है। अंसी व डहरक मौजा के 100 एकड़ के खेतों में यहां के किसान सब्जी की खेती करते हैं। करीब तीस वर्ष से अधिक समय से यहां के किसान हाड़तोड़ मेहनत कर इस बंजर भूमि पर सोना उपजा दिए। लेकिन, इन किसानों को अभी तक अनुदान व किसी तरह की सहायता नहीं मिल सकी है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।