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दीप प्रज्‍ज्‍वलित कर बुद्ध की आराधना, महाबोधि मंदिर के बटर लैंप हाउस में सालोंभर जलती तैलीय ज्‍योत

बौद्ध धर्म में पूजा अर्चना के कई तरीके हैं। कोई ध्यान साधना कर भगवान बुद्ध की आराधना करता है तो कोई मूर्ति की पूजा अर्चना करता। लेकिन यहां एक तरह की और आराधना देखने को मिलती है वह है दीप प्रज्वलित कर।

By Prashant KumarEdited By: Published: Tue, 19 Jan 2021 01:37 PM (IST)Updated: Tue, 19 Jan 2021 01:37 PM (IST)
दीप प्रज्‍ज्‍वलित कर बुद्ध की आराधना, महाबोधि मंदिर के बटर लैंप हाउस में सालोंभर जलती तैलीय ज्‍योत
महाबोधि मंदिर में सालोंभर जलती है ज्‍योत। जागरण।

जागरण संवाददाता, बोधगया (गया)। बौद्ध धर्म में पूजा अर्चना के कई तरीके हैं। कोई ध्यान साधना कर भगवान बुद्ध की आराधना करता है तो कोई मूर्ति की पूजा अर्चना करता। लेकिन, यहां एक तरह की और आराधना देखने को मिलती है, वह है दीप प्रज्‍ज्वलित कर। इस आराधना के लिए महाबोधि प्रबंधन समिति ने मंदिर परिसर में आठ बटर लैंप हाउस बनाए हैं। वहां सालों भर तैलीय दीप प्रज्‍ज्वलित होता है।

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पर्यटन मौसम में तो विदेशी बौद्ध श्रद्धालुओं द्वारा दीप प्रज्‍ज्वलित किया और कराया जाता है। पर्यटन मौसम समापन के बाद दीप प्रज्‍ज्वलित करने व कराने की जिम्मेवारी समिति के ऊपर होती है। दीप प्रज्‍ज्वलित कर आराधना के पीछे मान्यता है कि जीवन को प्रकाशमय बनाए रखने के लिए ज्‍योत जलाना जरूरी है। समिति के भिक्षु प्रभारी भंते चलिन्दा ने बताया कि मन्नत पूरी होने पर या फिर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धालु यहां दीप जलाते हैं। वे कहते हैं कि कई ऐसे भी श्रद्धालु हैं जो मंदिर परिसर को इलेक्ट्रॉनिक बल्ब से सजाते हैं। वैसे बटर लैंप हाउस में दो बड़ा सा टब रखा है। जिसमें श्रद्धालु तेल डालते हैं। उस तेल से समिति के लोग दीप जलाते हैं। यह व्‍यवस्‍था लंबे समय से चली आ रही है।

महाबोधि मंदिर के दक्षिण पश्चिमी छोर पर निर्मित आठ में से दो बटर लैंप हाउस महाबोधि मंदिर प्रबंधन समिति और प्राचीन तिब्बत मंदिर के लिए सुरक्षित है। शेष बटर लैंप हाउस में बौद्ध श्रद्धालु या फिर मंदिर परिसर में वार्षिक धार्मिक कृत्य कराने वाले आयोजनों के जिम्मे है। यह बता दें कि बटर लैंप हाउस का निर्माण 90 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा दीप प्रज्‍ज्वलित करने पर रोक लगाने के बाद हुआ था। पहले बौद्ध श्रद्धालु मंदिर परिसर में यत्र तत्र दीप व मोमबत्ती जलाया करते थे। जिससे मंदिर पर काली परत जम जाती थी। साथ ही बोधिवृक्ष को भी क्षति पहुंच रही थी।


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