पश्चिमी संस्कृति के कारण लोगों की जीवन शैली में हो रहा बदलाव
गया। पिछले दो दशकों में देश के आम नागरिकों की जीवन शैली में निरंतर बदलाव आया है और कहीं-न-कहीं भारतीय संस्कृति भी पश्चिमी संस्कृति से व्यापक तौर पर प्रभावित हुई है। इसके पीछे कई कारक हैं।

गया। पिछले दो दशकों में देश के आम नागरिकों की जीवन शैली में निरंतर बदलाव आया है और कहीं-न-कहीं भारतीय संस्कृति भी पश्चिमी संस्कृति से व्यापक तौर पर प्रभावित हुई है। इसके पीछे कई कारक हैं। इनमें सूचना एवं तकनीक के क्षेत्र में होने वाले नए-नए आविष्कारों तथा गैजेट्स के साथ मीडिया की भूमिका अहम है। चुपचाप हमारे जीवन में पश्चिमी संस्कृति हावी होती जा रही है और जीवन शैली में आ रहे इस बदलाव के लिए मीडिया जिम्मेदार है। उक्त बातें दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के मीडिया विभाग द्वारा आयोजित वेबिनार में मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (मानू) के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद फरियाद ने कही। जन सम्पर्क पदाधिकारी मो. मुदस्सीर आलम ने बताया कि गुरुवार को मॉस कम्युनिकेशन एंड मीडिया विभाग द्वारा ''मीडिया ऐज ए कल्चरल मैन्युफैक्चरिग इंडस्ट्री'' विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया था। जिसमें मुख्य वक्ता प्रो. फरियाद के साथ प्रो. आतिश पराशर, डा. किशूक पाठक, डा. सुजीत कुमार, डा. रवि सूर्यवंशी, डा. अनिन्द्य देव आदि शामिल थे।
व्याख्यान के शुभारंभ में विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आतिश पाराशर ने कहा कि कोरोना की विषम परिस्थितियों से लड़कर हमारा विश्वविद्यालय अपनी शैक्षणिक गतिविधियों को सुचारु रूप से आफलाइन मोड पर संचालित कर रहा है। आज हमारे विश्वविद्यालय में शोधार्थियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। हमारे शोधार्थी कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर शोध कार्य कर रहे हैं जो काफी सराहनीय है ।
प्रो. फरीयाद ने कहा कि सीयूएसबी बहुत ही कम समय में अपनी संरचना और शैक्षणिक गतिविधियों से आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा जनसंचार का क्षेत्र देखने में भले ही छोटा है, परंतु इसका वृत्त बहुत ही बड़ा है। पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने के दौरान हम विभिन्न संस्कृतियों से परिचित होते हैं। समय के साथ-साथ लोगों की संस्कृतियों और लोगों की पसंद में समय-समय पर वक्त के हिसाब से बदलाव हुआ है। हम अपनी पुरानी संस्कृतियों को भुला कर नई नई संस्कृति और परंपरा को अपना रहे हैं। अब बड़ा सवाल है आखिर इसकी वजह क्या है? बहुराष्ट्रीय कंपनियां रोज नए-नए व्यंजनों या उत्पादों को बाजार में उतारते हैं और मीडिया के माध्यम से हमारे बीच परोसते हैं। वहीं दूसरी तरफ उपभोक्ता लगातार उसकी ओर आकर्षित होकर अपनी सांस्कृतिक परिधान हो या व्यंजन इसमें लगातार बदलाव कर रहे हैं। पश्चिम के देश सबसे पहले मीडिया से परिचित हुए और समाज के सच को दिखाया इसलिए पूरे विश्व में यह लोकप्रिय हुआ। परंतु आज पश्चिमी देशों से प्रेरित फिल्में देखने का असर यह है कि हमारे संस्कृति धीरे-धीरे पश्चिमी देशों से प्रेरित हो रही है और हम उन्हें अपनी संस्कृति में बड़ी आसानी से शामिल कर रहे हैं। संस्कृति एक बड़ा शब्द है, इसमें हमारा व्यवहार हमारे खान-पान हमारे पोशाक इन सभी चीजें आती हैं। आज मीडिया के माध्यम से हमारी संस्कृति और सभ्यता में लगातार बदलाव ला रही है। हम लगातार काल्पनिक चीजों में विश्वास करने लगे हैं जो समाज के लिए और मीडिया जगत के लिए काफी नकारात्मक है। आज मीडिया लिटरेसी बढ़ाने की आवश्यकता है। व्याख्यान कार्यक्रम में मंच का संचालन विभाग की छात्रा दिव्या ज्योति ने किया और धन्यवाद ज्ञापन विभाग के डीन एवं अध्यक्ष प्रो. पराशर ने किया।
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