गर्मी में घर को नखलिस्तान बना शिक्षक ने दिखाई जल संरक्षण की राह, औरंगाबाद में सोख्ता से दूर किया पेयजल संकट
औरंगाबाद जिले में हर साल गर्मी के मौसम में पेयजल संकट बड़ा मुद्दा बन गया है। जून माह में हर साल औसत भूजल स्तर 30 से 35 फीट तक नीचे चला जाता है। ऐसे में एक शिक्षक ने बेहतरी के लिए राह दिखाई है।
विद्यासागर, पटना : एक तरफ राज्य के अधिकांश जिलों में मानसून विदाई के पहले जमकर वर्षा हो रही है, दूसरी ओर औरंगाबाद जिले में हर साल गर्मी के मौसम में पेयजल संकट बड़ा मुद्दा बन गया है। शहर से गांवों तक गर्मी के मौसम में पेयजल के लिए लोगों को जद्दोजहद करनी पड़ती है। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) की रिपोर्ट बताती है कि जून माह में हर साल औसत भूजल स्तर 30 से 35 फीट तक नीचे चला जाता है। अच्छे वर्षापात के बावजूद लोग जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं हुए तो अगली गर्मी में फिर मुसीबत झेलनी होगी। औरंगाबाद जिले के पिछले तीन वर्षों के आंकड़े को देखें तो जिले का औसत भू-जल स्तर जून, वर्ष 2020 में 26.7 फीट, वर्ष 2021 में 25.3 फीट व वर्ष 2022 में 30.2 फीट तक नीचे चला गया था।
छोटे प्रयोग से दिखी बड़ी राह
जल संरक्षण के लिए केंद्र व राज्य सरकार प्रयास कर रही है। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग लोगों को भूजल स्तर को मेंटेन करने के लिए घरों में सोख्ता का निर्माण कराने के लिए जागरूक कर रहा। औरंगाबाद शहर में श्रीकृष्ण नगर ऐसा मोहल्ला है, जहां भू-जल स्तर हर साल लगातार नीचे जा रहा है। इसी मोहल्ला के पेशे से शिक्षक राकेश कुमार पेयजल को लेकर कई वर्षों से परेशान थे। पिछले वर्ष उन्होंने अपने घर में सोख्ता का निर्माण कराया और इस वर्ष उनके घर में पेयजल का संकट नहीं हुआ। जबकि मोहल्ले में सैकड़ों घरों में लगाए गए मोटर पंप फेल हो गए थे। पड़ोसी उन्हीं के घर से पानी ले गए। इस साल गर्मी में उनका घर रेगिस्तान में आबाद बस्ती नखलिस्तान की तरह नजर आई। प्रयास छोटा है परंतु इसने आस-पड़ोस को जल संरक्षण की राह दिखाई है। राकेश ने सोख्ता का निर्माण करा घर में रसोई, बाथरूम और वर्षाजल को जमीन के अंदर भेजने के लिए एक अलग पाइप लगाया। जिससे पानी सीधे सोख्ता में पहुंच रहा है।
- मानसून (एक जून से 30 सितंबर) औरंगाबाद 612 859 -29
- पोस्ट मानसून औरंगाबाद (एक से 11 अक्टूबर) 37 27.2 36
मात्र छह हजार रुपये हुए खर्च
शिक्षक राकेश कुमार ने बताया कि पिछले चार-पांच वर्ष से उनके घर का मोटर पंप पूरे गर्मी के मौसम में बंद हो जाता था। लोग नई बोरिंग कराने का सलाह दे रहे थे। कोरोना के दौरान बोरिंग के लिए मिस्त्री नहीं मिला। फिर सोख्ता निर्माण की सुझी। अपने आवासीय परिसर में ही सोख्ता का निर्माण करवाया। सोख्ता के निर्माण में मात्र छह हजार रुपये खर्च आया और इस वर्ष गर्मी में राहत मिली। घर का मोटर पंप फेल नहीं हुआ। पेयजल के लिए कोई परेशानी नहीं हुई। नई बोरिंग कराने में जो 80 से 90 हजार रुपये खर्च आता वह भी बच गया।
मिट्टी में कार्बन की मात्रा का कम होना एक प्रमुख
अविरल नदी अभियान के संयोजक संजय सज्जन सिंह ने कहा कि भू-जल स्तर के नीचे जाने में मिट्टी में कार्बन की मात्रा का कम होना एक प्रमुख वजह है। मिट्टी में कार्बन की मात्रा कम होने का कारण खेतों में रासायनिक खाद का अधिक प्रयोग है। भू-जल स्तर को मेंटेन करने के लिए वर्षा जल का संरक्षण जरूरी है। इसके लिए अधिक से अधिक सरोवर का निर्माण कराना चाहिए। जिससे वर्षा के बाद जल को संरक्षित किया जा सके। नदी, नाले, आहर, पोखर को भी अतिक्रमण मुक्त कराना होगा।
गर्मी में होती है अधिक समस्या
टिकरी के कलीम अहमद ने कहा कि औरंगाबाद शहर में सबसे अधिक पीने के पानी को लेकर समस्या गर्मी के मौसम में होती है। शहर में पेयजल आपूर्ति को लेकर कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। पानी के लिए लोग परेशान रहते हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि पूरे शहर के पेयजल आपूर्ति के लिए मास्टर प्लान बनाकर हर घर पेयजल की आपूर्ति करे।
भूजल का दोहन हो रहा
श्रीकृष्ण नगर के सोनू कुमार ने कहा कि शहर में औद्योगिकीरण के कारण भी भूजल का दोहन हो रहा है। औरंगाबाद में भूजल दोहन को रोकने के लिए प्रशासन को पहल करनी चाहिए। नहीं तो हर वर्ष पेयजल संकट होगा और लोग परेशान होंगे।
पेयजल का दुरुपयोग रोकना होगा
पीएचईडी के कार्यपालक पदाधिकारी अभय कुमार सिंह ने कहा कि भू-जल स्तर को मेंटेन करने के लिए लोगों को पेयजल का दुरुपयोग रोकना होगा। औरंगाबाद में लगातार भू-जल स्तर नीचे जा रहा है। पेयजल की समस्या न हो इसके लिए विभाग के द्वारा लगाए गए चापाकलों की मरम्मत हर वर्ष की जाती है। लेकिन लोगों को जागरूक होना होगा। पेयजल संकट की स्थिति तो ये है कि पीएचईडी विभाग के कार्यालय के आवासीय परिसर का भी पंप फेल हो गया था लेकिन पिछले वर्ष सोख्ता का निर्माण कराने के बाद इस वर्ष पेयजल की समस्या नहीं आई।
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