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    धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल का संगम हैं वाणावर के पर्वत, इतिहास की याद दिलाती हैं ये पहाड़ियां

    Updated: Sun, 06 Jul 2025 03:39 PM (IST)

    गया के वाणावर पहाड़ अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए जाने जाते हैं। यहाँ विभिन्न धर्मों के प्राचीन स्थल हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। श्रावण मास में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। वाणावर पहाड़ पर रोप-वे का निर्माण हो रहा है और यहाँ अशोककालीन शिलालेख व गुफाएं भी हैं। कौआकोल में तीन धर्मों का संगम है।

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    धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल का संगम है वाणावर की पर्वत श्रृंखलाएं। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, बेलागंज (गया)। वाणावर पहाड़ की वादियों में अनेक पर्वत श्रृंखलाएं हैं, जो प्राकृतिक छटा बिखेर रही हैं। ये श्रृंखलाएं विभिन्न धर्मों के पौराणिक स्थलों को अपने में समेटे हैं, जो पर्यटन का केंद्र बना है।

    देशी एवं विदेशी पर्यटक आए दिन बड़ी संख्या में धार्मिक आस्था लिए आते हैं और प्राकृतिक धरोहरों का आनन्द लेते हैं। श्रावण माह में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ जाती है। पहाड़ों पर बिखरी हरियाली पर्यटकों के विशेष आकर्षित करती है।

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    वाणावर पहाड़ को मगध का हिमालय कहा जाता है। यह दर्जा स्थानीय लोगों ने दे रखा है। वाणावर पर्वत शृंखला के मुख्य शिखर पर द्वापर कालीन शिवलिंग स्थापित है, जो बाबा सिद्ध नाथ के नाम से विख्यात है। जिनके दर्शन को दूर-दूर से श्रद्धालु अपने मनोरथ को पूरा करने के लिए आते हैं।

    खासकर श्रावण मास में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। इनकी महत्ता को देखते हुए यहां सरकार के विकास की कई योजनाओं को मूर्त रूप दिया जा रहा है।

    इस पर्वत शृंखला पर 24 करोड़ की लागत से रोप-वे का निर्माण कराया जा रहा है। कार्य मंथर गति से चल रहा है।

    एक दूसरे पर्वत पर सम्राट अशोक काल के शिलालेख एवं सात मानव निर्मित गुफाएं हैं। इन गुफाओं का निर्माण आजीवक सम्प्रदाय के बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए करवाया गया था।

    बनावट ऐसी है कि हजारों साल उपरांत गुफा के दीवारों की चिकनाई जस का तस है। पूरा गुफा इको है। आज भी है। इन धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल पर एक म्यूजियम है। पर्यटक इसे देखना नहीं भूलते हैं।

    एक अन्य पर्वत शृंखला कौआकोल के नाम से प्रचलित है। इसके तलहटी में तीन धर्मों का समागम है। तलहटी के दक्षिणी भाग में पीपल वृक्ष के नीचे भूमि स्पर्श मुद्रा में काले पत्थर का विशाल भगवान बुद्ध की मूर्ति है। बीच में हर-हर गौरी है। इसके उत्तरी भाग में एक मजार अवस्थित है।

    ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों के अलावा प्राकृतिक धरोहरों के कारण लोग इसे प्रमुख पिकनिक स्पॉट बना चुके हैं। इन स्थलों के भ्रमण से लोग शांति की एक अनुभूति करते हैं।

    जिला प्रशासन एवं पर्यटन विभाग द्वारा यहां हर समुचित प्रबंध किया गया है। पर्यटक थाना, विश्राम गृह एवं जलपान गृह की व्यवस्था है।

    यहां पहुंचने के लिए मुख्यतः दो सड़क मार्ग है। डोभी-पटना सड़क मार्ग पर अवस्थित बेलागंज या मखदुमपुर से लगभग पंद्रह किलोमीटर पूरब जाना पड़ता है। गया-पटना रेलखंड के बेला स्टेशन पर पर्यटक यहां पहुंच सकते हैं।