पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन गया में उत्तम मार्दव की हुई पूजा, अहंकार के त्याग करने का दिया गया संदेश
दिगंबर जैन समाज में पर्वो के राजा कहे जाने वाले महापर्व पर्यूषण गया में चल रहा है। दस दिनों तक चलने वाला पर्यूषण पर्व सभी जैनियों के जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। दशलक्षण के इन दिनों में सभी आत्म कल्याण के मार्ग पर प्रशस्त हों यही प्रयास करेंगे।

गया, जागरण संवाददाता। दिगंबर जैन समाज में पर्वो के राजा कहे जाने वाले महापर्व पर्यूषण गया में चल रहा है। दस दिनों तक चलने वाला पर्यूषण पर्व सभी जैनियों के जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। दशलक्षण के इन दिनों में सभी आत्म कल्याण के मार्ग पर प्रशस्त हों यही प्रयास करेंगे। पर्यूषण पर्व को जैन धर्म में सभी पर्वो का राजा माना जाता है। इसलिए यह पर्व जैन धर्मावलंबियों के लिए बहुत महत्व रखता है। क्योंकि यह पर्व महावीर स्वामी के सिद्धांत जियो और जीने दो का संदेश देता है। गया जैन समाज के मीडिया प्रभारी मुन्ना सरकार जैन ने कहा कि दशलक्षण पर्व के तीसरे दिन रमना रोड स्थित दिगंबर जैन मंदिर एवं बहुआरचौरा स्थित अति प्राचीन जैन मंदिर में उत्तम मार्दव की पूजा श्रद्धा एवं भक्ति भाव से की गई।
भगवान पार्श्वनाथ जी का किया गया मस्ताभिषेक
जैन धर्मावलंबियों ने पारंपरिक वेशभूषा में सुसज्जित होकर भगवान पार्श्वनाथ जी का महा मस्ताभिषेक किया। विधान के तहत समाज की महिलाओं ने सामूहिक रूप से दशलक्षण विधान का पाठ कर जैन परंपरानुसार शांति धारा, नित्य नियम पूजन, प्रवचन तत्वार्थ सूत्र का वाचन, प्रतिक्रमण कर विशेष पूजा अर्चना की। इस बीच महिलाओं ने बादाम, नारियल, अक्षत, लौंग, इलायची सहित कई अन्य सूखे मेवे से पूजन कर अनुष्ठान किया। कई श्रद्धालुओं ने ध्यानमग्न होकर दशलक्षण विधान का जाप कर अपने आराध्य देवता के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। विधान के दौरान पूरा मंदिर प्रांगण मंत्रोच्चारण से गुंजायमान हो रहा है।
पतन का कारण बनता है अहंकार
मंदिर परिसर में एक अलौकिक छटा देखने को मिल रही है। ब्रह्मचारी पीयूष भैया जी के सानिध्य में पर्यूषण पर्व का विधान चल रहा है। इनके निर्देशन में मनुष्य के अंदर अहंकार की भावना दूर हो इसके लिए जैन धर्मावलंबियों ने अनुष्ठान कर अहंकार को त्याग करने का संकल्प लिया। उन्होंने बताया कि मानव अपने जीवन का कल्याण मार्दव धर्म को अंगिकार किए बिना नहीं रह सकता, क्योंकि जिसके जीवन में मार्दव धर्म का लोभ होगा उसके जीवन में अहंकार की बाहुल्यता होगी और अहंकार एक ऐसा गुण है जो आत्मा के मूल स्वभाव, गुणों को कभी भी अंगिकार नहीं करने देगा। अहंकार आधुनिक संसार में भी पतन का कारण बनता है। अहंकारी व्यक्ति समाज एवं परिवार सभी जगह उपेक्षित होता है। सत्ता, संपदा और शक्ति को पाकर भले हम अहंकार करने लगे, पर इसका स्थायित्व नहीं है।जीव को हमेशा जीवन में अहंकार छोड़कर भगवान की भक्ति में लीन रहना चाहिए।
जीवन को सार्थक बनाने के लिए अहंकार का त्याग जरूरी
जीवन को सार्थक बनाने के लिए अहंकार का त्याग जरूरी है। इसलिए हम सरल बने,विनम्र बने जिससे हमारा जीवन और उन्नत बन सके। दया मार्दव धर्म का मूल है। यदि जन्म कराना है तो मार्दव धर्म का पालन करना होगा। इस पुनीत अवसर पर समाज के अध्यक्ष पवन अजमेरा, उपाध्यक्ष सत्येंद्र अजमेरा, मंत्री मधुकांत काला, सह मंत्री संजय विनायका, कोषाध्यक्ष अमूल्य अजमेरा, हेमंत पाटनी सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।
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