अकेले पहाड़ काट सड़क बनाने में बीत गए जिंदगी के 27 साल, काम अब भी जारी है
गया के वजीरगंज में दशरथ मांझी ने करीब 22 वर्षो में पहाड़ तोड़कर सड़क बना दी थी। उन्होंने 1960 के आसपास इसकी शुरुआत की थी। हाल ही में चर्चा में आए गया के कोठिलवा के लौंगी भुइंया ने तीस वर्षो में तीन किलोमीटर लंबी पइन (नहर जैसा) खोदी डाली।
गौरव कुमार, गया। बिहार के मगध क्षेत्र से जुनून और पुरुषार्थ की एक और नई कहानी। 62 वर्षीय रामचंद्र दास। ट्रक उनके घर तक पहुंच जाए, इसलिए गइंता-खंती (पत्थर आदि तोड़ने को लोहे का उपकरण) लेकर चढ़ गए पहाड़ पर। 26-27 साल से अकेले पहाड़ तोड़ते-तोड़ते चौड़ी सड़क बना ही दी। काम अब भी जारी है। रामचंद्र गया जिले में अतरी प्रखंड के केवटी गांव के रहने वाले हैं। यहीं पर केवटी पहाड़ भी है। इसके एक ओर केवटी और दूसरी ओर कतलपुरा गांव बसा है। लोगों को प्रखंड मुख्यालय आने में सात किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी। पहाड़ काटकर करीब 30 फीट लंबी और 15 फीट चौड़ी सड़क बना देने से दूरी घटकर तीन किलोमीटर रह गई है। जहां पर रास्ता बनाया, वहां पहाड़ 15-20 फीट ऊंचा था।
जुनून ऐसा कि छोड़ दी ड्राइवरी: रामचंद्र दास ट्रक ड्राइवर थे। पत्नी चिंता देवी कहती हैं कि वह धुन के पक्के हैं। ठान लिया तो ठान लिया। एक बार ट्रक लेकर गांव आ रहे थे। इच्छा थी कि ट्रक गांव तक पहुंच जाए, पर सामने पहाड़ था। पता नहीं, कौन सी सनक सवार हुई कि ड्राइवरी छोड़ पहाड़ तोड़ने में लग गए। गांव में मजदूरी कर परिवार चलाते और जो समय मिलता, उसमें पहाड़ तोड़ते। काम नहीं मिलता तो दिन-दिन भर इसी में जुटे रहते। उनके चार बेटे हैं। सभी दिल्ली में एक कंपनी में काम करते हैं। इसलिए उन्हें अब मजदूरी से मुक्ति मिल गई है।
दशरथ मांझी ने कराई थी शुरुआत: क्यों सवार हुई यह सनक? रामचंद्र बताते हैं-1993 की बात है। मैं पर्वत पुरुष दशरथ बाबा से मिला था। उनसे पहाड़ तोड़ने का आग्रह किया, पर उन्होंने इन्कार कर दिया। कहा कि तुम खुद तोड़ो। मैंने कहा-हमसे नहीं होगा। तब उन्होंने एक दिन का समय देते हुए कहा कि शुरुआत करो। वह उस दिन घाटी में आकर बैठ गए। उनके पैर छू कर पहाड़ तोड़ना शुरू कर दिया। अब रास्ता बन गया है। कुछ और काम बाकी है।
संकल्प बड़ा, व्यवस्था पर सवाल भी: सवाल सिर्फ पहाड़ तोड़े जाने भर का नहीं, व्यवस्था का भी है। संकल्प बहुत बड़ा है, पर यह भी कि कहीं-न-कहीं शासन-प्रशासन से उम्मीद भी टूटी। रामचंद्र ने जिस समय यह बीड़ा उठाया, उस सुदूर क्षेत्र में लोगों की निगाहें भी पड़ीं, पर इसे सामान्य भाव से लिया गया और कहीं कोई चर्चा नहीं हुई।
ग्रामीणों की निगाह में हैं हीरो: अब उनकी मेहनत का फल केतलपुरा, गंगटी, बंचर पियार, रमदाना, बड़वाना आदि के ग्रामीणों को मिल रहा है। केतलपुरा गांव के धीरज यादव, धर्मेद्र कुमार निराला, मिथलेश यादव कहते हैं लोग उन्हें दशरथ मांझी की तरह याद रखेंगे। उन्होंने हम लोगों के लिए अपने जीवन के 26-27 साल दे दिए। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सड़क पक्कीकरण करा दे। रामचंद्र दास आसपास के गांवों के लोगों के लिए प्रेरणास्नेत बने हुए हैं।
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