जिस थाने पर नक्सलियों ने मार डाले थे जमादार-चौकीदार, आज वही टनकुप्पा बना विकास की मिसाल
दो दशक पहले नक्सली हिंसा से त्रस्त टनकुप्पा प्रखंड आज विकास की मिसाल बन गया है। शिक्षा, कृषि और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में प्रगति हुई है। कभी आतंक का केंद्र रहे इस क्षेत्र में अब अस्पताल, विद्यालय और अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं। बंजर धरती अब सब्जियों से लहलहा रही है, जो ग्रामीण आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। टनकुप्पा, जो कभी बंदूकों की आवाज से गूंजता था, अब विकास की राह पर है।

टनकुप्पा बना विकास की मिसाल
संवाद सूत्र, फतेहपुर (गया)। दो दशक पूर्व माओवादी हिंसा से दहशत में डूबा रहने वाला टनकुप्पा प्रखंड आज विकास की नई पहचान बनकर उभरा है। एक समय था जब इस क्षेत्र का नाम सुनते ही लोगों में भय समा जाता था, लेकिन आज यही टनकुप्पा गांव शिक्षा, खेती, हरियाली और आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुका है।
दो दशक पहले, 03 जुलाई 2006 की रात नक्सलियों ने इस इलाके के थाना भवन पर हमला कर एक जमादार और चौकीदार की हत्या कर दी थी, जबकि तीन पुलिसकर्मी घायल हुए थे। वह समय बंदूक की गूंज और आतंक का प्रतीक था। परंतु वक्त, संघर्ष, जागरूकता और शिक्षा ने इस भूमि की नियति बदल दी।
आज टनकुप्पा नक्सल भय से मुक्त होकर प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गया है। यहां प्रखंड मुख्यालय, थाना, अस्पताल, डाकघर, बैंक, रेलवे स्टेशन, विद्यालय, गोदाम और जनप्रतिनिधि भवन जैसी सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। अब यह क्षेत्र न केवल सुरक्षित है, बल्कि विकास की परिभाषा भी लिख रहा है।
बंजर जमीन से हरियाली की कहानी
टनकुप्पा की पहचान इसके मेहनती किसानों से है। कभी बंजर कही जाने वाली धरती आज सब्जियों की हरियाली से लहलहा रही है। यहां की सब्जियां जिले ही नहीं, आसपास के शहरों तक भेजी जाती हैं।
आधुनिक तकनीक और परिश्रम ने इस क्षेत्र को सब्जी उत्पादन में अग्रणी बना दिया है। यह परिवर्तन ग्रामीण आत्मनिर्भरता का बेहतरीन उदाहरण है।
ऐतिहासिक विरासत और आधुनिकता का संगम
टनकुप्पा अपनी कृषि के साथ साथ ऐतिहासिक धरोहरों के लिए भी जाना जाता है। टिकारी राजा का किला, प्राचीन मंदिर और सुल्तानपुर पहाड़ी गांव के गौरवशाली अतीत की याद दिलाता हैं।
आज मुख्य सड़कें पक्की है, गलियों का कायाकल्प हो चुका है, जलमीनार, आधुनिक अस्पताल, थाना, प्रखंड मुख्यालय और अन्य सार्वजनिक सुविधाएं आधुनिक गांव की तस्वीर पेश करती हैं।
हालांकि विकास के इस सफर में कुछ कदम अभी अधूरे हैं। गांव में डिग्री कॉलेज और गर्ल्स हाई स्कूल की कमी महसूस की जाती है। खेल मैदान न होने से युवाओं की प्रतिभा को मंच नहीं मिल पा रहा। वहीं पेयजलापूर्ति योजना 20 वर्षों से अधूरी पड़ी है, जो विभागीय उदासीनता को उजागर करती है।
टनकुप्पा का जनगणना ग्राफ
7780 की आबादी वाले इस क्षेत्र में 4006 पुरुष और 3774 महिलाएं हैं। साक्षरता दर 65.25% है, जिसमें पुरुष साक्षरता 75.08% और महिला साक्षरता 54.85% है। कुल 2273 मजदूरों में 1789 पुरुष और 484 महिलाएं शामिल हैं।
टनकुप्पा अब उम्मीदों का प्रतीक
कभी बंदूकों की आवाज से दहशत में रहने वाला टनकुप्पा आज ट्रैक्टर की गड़गड़ाहट और बच्चों की हंसी से गुलज़ार है। मिट्टी अब बारूद नहीं, तरक्की की खुशबू देती है। टनकुप्पा वह बदलते बिहार का चेहरा है, जो संघर्ष से उठकर विकास की राह पर मजबूती से कदम बढ़ा रहा है।

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