मकर संक्रांति तक जगह-जगह गया जिले के इन स्वदेसी मीलों से तैयार बासमती चूड़ा की रहेगी मांग
खरीफ सीजन समाप्त हो गया है। खलिहानों में धान की ढेर लगने लगी है। गांव-कस्बों में नई फसल के रूप में तैयार हुए धान से देशी चूड़ा बनाने की भी तैयारी हो गई है। बासमती चूड़ा सबसे अधिक पसंद की जाती है।

गया, जेएनएन। खरीफ सीजन समाप्त हो गया है। खलिहानों में धान की ढेर लगने लगी है। गांव-कस्बों में नई फसल के रूप में तैयार हुए धान से देशी चूड़ा बनाने की भी तैयारी हो गई है। बासमती चूड़ा सबसे अधिक पसंद की जाती है। मकर संक्रांति से पहले गांव के किसान अपने यहां उपजे बासमती धान को चूड़ा कुटवाने के लिए तैयार करते हैं। इसे लेकर जगह-जगह चूड़ा मील मालिक भी अपने यहां के मशीन व चूल्हे को तैयार करने में जुट गए हैं। हालांकि आधुनिकता की चकाचौंध में अब स्वदेशी चूल्हे व मशीन से चूड़ा बनाने में कमी आ गई है। यही कारण है कि अनेक गांव में जहां 5 से 6 साल पहले तक कई चूड़ा मील चूड़ा बनाते हुए दिखते थे अब उसमें कमी आ गई है। लेकिन जिन जगहों पर अब भी इस तरह के मील संचालित हैं उनकी खूब मांग है। इस तरह से यह चूड़ा मील कारोबारी पीएम मोदी के वोकल फ़ॉर लोकल की अपील को मजबूती दे रहे हैं। आज के युवा भी गांव में तैयार किए गए देशी चूड़े को अधिक स्वादिष्ट बताते हैं। दूर-दराज से किसान अपने से चूड़ा बनाने के लिए तैयार धान को लेकर इन स्वदेशी मील तक पहुंचते हैं।
देसी चूड़ा खाने के लिए किसानों को करनी पड़ती है अधिक मेहनत
देसी चूड़ा मील से बने चूड़ा की स्वाद सामान्य मीलों की तुलना में कहीं अधिक अच्छी होती है। इसके स्वाद लोगों को अधिक पसंद आते हैं। यह और बात है कि देसी चूड़ा खाने के लिए किसानों को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। बाजार में बहुत ही कम जगहों पर देशी चूड़ा की बिक्री होती है। कंडी नवादा से सटे कुकरा प्राचीन देवी स्थान के समीप देवानंद प्रसाद पिछले 5 सालों से चूड़ा मिल से देसी चूड़ा तैयार करते हैं। वह कहते हैं कि चूड़ा कुटाई का काम शुरू हो रहा है। बाजार में 160 रुपये प्रति मन की हिसाब से चूड़ा तैयार किया जाता है। वह बताते हैं कि बाजार में अनेक तरह के ब्रांड वाले चूड़ा के बाद भी देसी चूड़ा की खूब मांग है। गांव देहात से बड़ी संख्या में किसान उनके यहां धान की बोरियां लेकर आते हैं। किसान खुद अपने घर से पानी में भिंगोकर रखे हुए धान लेकर आते हैं।
72 घंटे तक धान को पानी में भिंगोकर रखने के बाद चूल्हे में भूंजा जाता है
देसी चूड़ा बनाने की खास तकनीक है। 72 घंटे तक धान को भिंगोकर रखा जाता है। इसके बाद उस धान को सुखाकर देशी चूड़ा मिल तक लाया जाता है। यहां कारीगर लोग पहले से तैयार चूल्हे की भी में धान को गर्म करते हैं। इसके बाद गोल चकरीनुमा घुमने वाले मशीन में गर्म धान को डाला जाता है। जिसके बाद चूड़ा और भूसा प्राप्त होता है। किसान अपने घरों में लाकर भूसा को अलग करके इस देशी चूड़ा का स्वाद लेते हैं। यह चूड़ा अपने कुटूंब-स्वजनों के यहां भी भेजा जाता है।
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