गौरवशाली रहा है जिले के खरवार राजवंश का इतिहास, चार सौ वर्ष तक रहा है शासन
रोहतास के खरवार राजवंश का दबदबा मध्यकाल में काफी प्रसिद्ध रहा है। 12 वीं से लेकर 16 वीं सदी यानि चार सौ वर्ष तक तक इस राजवंश ने बिहार के एक बड़े भूभाग पर अपना राज्य स्थापित किया।

गया: रोहतास के खरवार राजवंश का दबदबा मध्यकाल में काफी प्रसिद्ध रहा है। 12 वीं से लेकर 16 वीं सदी यानि चार सौ वर्ष तक तक इस राजवंश ने बिहार के एक बड़े भूभाग पर अपना राज्य स्थापित किया। इस राजवंश में प्रताप धवल देव ऐसे देदीप्यमान नक्षत्र की भांति उदीयमान हुए कि उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। कन्नौज के गहड़वाल शासनकाल में ये पहले नायक हुए और बाद में महानायक की पदवी प्राप्त की। इसकी पुष्टि प्रताप धवल देव द्वारा जिले के विभिन्न स्थानों पर कई लिखवाए गए शिलालेखों से भी होती है। अभी जमींदोज हैं कई शिलालेख :
इनका पहला शिलालेख है, तुतला भवानी या तुतराही शिलालेख। इसके कुछ अंशों को अंग्रेजी काल में पढ़ा गया था। हालांकि यहां के संपूर्ण शिलालेख अभी तक अपठित हैं, जिसके कारण हैं इनका मंदिर में दब जाना। प्रताप धवल देव का दूसरा शिलालेख मिला है ,तिलौथू प्रखंड के फुलवरिया में। इसकी खोज प्रोफेसर किल्हार्न ने की थी, कितु सुनिश्चित स्थान न बता पाने के चलते इसे गुम मान लिया गया था। फुलवरिया शिलालेख की खोज 2010 में दोबारा शोध अन्वेषक डा. श्याम सुंदर तिवारी ने की और इसे पढ़ा था। साहस धवल ने फैलाई कीर्ति :
इस राजवंश में साहस धवल देव सर्व प्रसिद्ध राजा हुए। उन्होंने महानृपति की उपाधि सर्वप्रथम धारण की। साहस धवल देव, महानायक प्रताप धवल देव के तीसरे पुत्र थे। साहस धवल देव के पुत्रों-पौत्रों के शिलालेख तथा ताम्रपत्र पहले मिल चुके हैं । शोध अन्वेषणण के दौरान साहस धवल देव के बड़े पुत्र विक्रम धवल देव के बांदू शिलालेख प्राप्त हुआ है। विक्रम धवल देव का एक ताम्रपत्र पहले मिला है। इसके अतिरिक्त एक और ताम्रपत्र है, जो विक्रम धवल देव द्वितीय का है। साहस धवल देव का ताम्रपत्र पहली बार शिवसागर प्रखंड के अदमापुर से मिला। यह एक भूमिदान अभिलेख है।खरवार राजवंश की प्रसिद्धि अंग्रेजी काल में भी बनी रही। इस राजवंश की शाखाएं पलामू के सोनपुरा से लेकर रामगढ़ तक फैली हुई हैं, जहां उनके वंशज मौजूद हैं।
कहते हैं शोध अन्वेषक :
खरवार राजवंश का इतिहास गौरवशाली रहा है। विभिन्न स्थानों से प्राप्त शिलालेखों को सहेजकर उस राजवंश के इतिहास को संजोया जा सकता है। 2019 में कैमूर पहाड़ी में इनके दो और छोटे शिलालेखों की हमनें खोज की थी। जपला में भी इनकी माता राल्हा देवी का भी शिलालेख है। डा. श्याम सुंदर तिवारी, पूर्व शोध अन्वेषक
केपी जायसवाल शोध संस्थान, पटना
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