चले थे विधायक बनने, नामांकन तक नहीं बचा पाए, शेरघाटी में तीनों प्रखंड प्रमुखों का पर्चा रद
शेरघाटी विधानसभा क्षेत्र में इस बार राजनीति में एक अनोखा मोड़ आया है। डोभी, शेरघाटी और आमस के तीनों प्रखंड प्रमुखों का नामांकन रद्द हो गया है। आमस प्रखंड प्रमुख मसीहजमा खान, शेरघाटी के नरेश कुमार और डोभी की सुनीता देवी के नामांकन पत्रों में कमियों के चलते रद्द कर दिए गए। अब यह मामला क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है।

चले थे विधायक बनने, नामांकन तक नहीं बचा पाए
संवाद सूत्र, डोभी। शेरघाटी विधानसभा की राजनीति इस बार कुछ अलग ही रंग दिखा रही है। चुनावी मैदान में उतरे तीनों प्रखंड प्रमुखों का नामांकन रद हो जाना पूरे इलाके में चर्चा का मुख्य विषय बन गया है। डोभी, शेरघाटी और आमस—तीनों प्रखंडों के प्रमुखों ने बड़े जोश और तामझाम के साथ विधायक बनने की मंशा जताई थी, लेकिन मंगलवार को हुए नामांकन पत्रों की स्क्रूटनी ने उनके सारे अरमानों पर पानी फेर दिया।
आमस प्रखंड प्रमुख मसीहजमा खान उर्फ लड्डन खान ने तेजप्रताप यादव की पार्टी जन शक्ति जनता दल से नामांकन किया था। उधर शेरघाटी प्रमुख नरेश कुमार ने स्वराज्य पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय मैदान में उतरने की ठानी। वहीं डोभी प्रखंड प्रमुख सुनीता देवी, जिनके पति और राजद के कद्दावर नेता भगत यादव उर्फ सुरेंद्र कुमार सुमन हैं, उन्होंने भी निर्दलीय नामांकन दाखिल कर सबको चौंका दिया था।
तैयारी के बावजूद इतनी बड़ी चूक
मगर मंगलवार को हुई जांच में तीनों के नामांकन पत्रों में कई खामियां पाई गईं, जिसके चलते निर्वाची पदाधिकारी ने सभी के नामांकन रद्द कर दिए। अब यह मामला पूरे क्षेत्र में “तीन प्रमुख, तीन फेल” के रूप में चर्चा का विषय बन गया है। लोगों के बीच सवाल उठ रहा है कि आखिर इतनी तैयारी के बावजूद इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई?
राजद खेमे में भी इस घटनाक्रम से बड़ा राजनीतिक उलटफेर देखने को मिला। भगत यादव को पार्टी टिकट से वंचित कर दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता देवी को चुनावी मैदान में उतार दिया। पर नामांकन रद्द होते ही विरोधी खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई। हालांकि जब यह जानकारी सामने आई कि भगत यादव ने खुद भी नामांकन कर रखा है, तो राजद प्रत्याशी के समर्थकों के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई।
अब सारा समीकरण फिर से बदलता दिख रहा है। डोभी में भगत यादव की सक्रियता और उनके समर्थकों की जुटान से राजनीतिक तापमान बढ़ गया है। उधर आमस प्रमुख के नामांकन रद्द होने के बाद अल्पसंख्यक समाज के बीच एकता और रणनीति बनाने की हलचल तेज हो गई है।
शेरघाटी की यह चुनावी कहानी अब “नामांकन के रद्दीकरण से बनी राजनीतिक पहेली” बन गई है। लोग कह रहे हैं — “चले थे विधायक बनने, पर स्क्रूटनी ने सबको सिखा दिया चुनावी गणित का असली सबक।”
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।