बौद्ध भिक्षुओं के लिए भी विशेष महत्व का दिन होता है शरद पूर्णिमा, विदेशों से बोधगया पहुंचते हैं श्रद्धालु
इस वर्ष 31 अक्टूबर को विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर में महा कठिन चीवर दान समारोह आयोजित है। उसके बाद विभिन्न विदेशी मोनास्ट्री में चीवर दान होगा। थाइलैंड के बौद्ध भिक्षु चीवर दान समारोह में भाग लेने को चार्टर्ड प्लेन से आएंगे। जानिए बौद्ध भिक्षुओ के लिए शरद पूर्णिमा का महत्व।
बोधगया, जागरण संवाददाता। आज शरद पूर्णिमा है। इसे कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं। आमतौर पर शरद पूर्णिमा की शाम लोग मां लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करते हैं। कई जगहों पर आज से काली पूजा होती है। मिथिलांचल में पान, बताशा और मखाना बांटने की परंपरा है। तो मगध में बौद्ध भिक्षुओं के लिए शरद पूर्णिमा का दिन विशेष महत्व का होता है। खासकर वैसे बौद्ध भिक्षु जो वर्षावास काल व्यतीत करते है। वे इस दिन को पवरना दिवस के रूप में मनाते व विशेष पूजा अर्चना के साथ वर्षावास काल का विधिवत समापन करते हैं। उसके बाद शुरू होता है कठिन चीवर दान समारोह।
पवरना पूजा और चीवर दान का है महत्व
महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के भिक्षु प्रभारी भंते चालिंदा बताते हैं कि पवरना पूजा में वर्षावास काल व्यतीत करने वाले भिक्षु सभी के कल्याण और विश्व शांति की कामना पूजा के माध्यम से करते हैं। इसी दिन से एक माह तक यानी आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा के बीच बौद्ध भिक्षु को बौद्ध उपासक व उपसिकाओ द्वारा चीवर व दैनिक उपयोग का सामग्री दान दिया जाता है। उन्होंने कहा कि चीवर दान समारोह का शुभारंभ बीटीएमसी द्वारा हर वर्ष किया जाता है।
चीवर दान में चार्टर्ड प्लेन से आएंगे बौद्ध भिक्षु
इस वर्ष 31 अक्टूबर को विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर में महा कठिन चीवर दान समारोह आयोजित है। उसके बाद बोधगया स्थित महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया शाखा बोधगया में 7 और 8 नवंबर को उक्त समारोह का आयोजन किया जाएगा। उसके बाद थाईलैंड,कंबोडिया, बांग्लादेश, लाओ पीडीआर, म्यांमार सहित अन्य विदेशी बौद्ध मोनास्ट्री में चीवर दान का आयोजन किया जाएगा। वे कहते हैं कि थेरवादी परंपरा को मानने वाले बौद्ध श्रद्धालु और भिक्षु इस समारोह में हिस्सा लेंगे। बीटीएमसी द्वारा आयोजित महा कठिन चीवर दान समारोह में थाईलैंड के बौद्ध श्रद्धालुओं के हिस्सा लेने की संभावना है, जो एक चार्टर्ड विमान से बोधगया आएंगे।