नए-पुराने चेहरे देने लगे दरवाजे पर दस्तक
गया। घर के दरवाजे पर चुनाव दस्तक दे चुका है। सुबह-शाम। पांच-दस की टोलियां घर-घर पहुंच रह
गया। घर के दरवाजे पर चुनाव दस्तक दे चुका है। सुबह-शाम। पांच-दस की टोलियां घर-घर पहुंच रही है। इनके आने ही आहट से लगता है चुनाव निकट है। इनके आने की कदमों की आहट तो होली के वक्त से ही सुनाई देने लगी थी। होली मिलन के कई कार्यक्रमों में इसका अहसास कुछ अधिक ही हुआ। लोक आस्था के महापर्व चैती छठ में तो लगभग संभावित प्रत्याशियों के नाम व चेहरे सामने आ गए। छठ घाट से लेकर घर आंगन तक। चौक चौराहे से गलियों तक। बात फैल गई। ऐसे लोगों के लिए छठ पर्व प्रचार प्रसार के काम में काफी मददगार साबित हुआ। अब श्रीरामनवमी की शोभायात्रा में चेहरे को भुनाने की जुगत में लग गए हैं।
बदलते चेहरे का रंग
चुनाव आयोग ने नगर निकाय के 53 वार्डो में पिछले चुनाव की व्यवस्था में इस बार कुछ फेरबदल किया है। कई आरक्षित और अनारक्षित कर दिए गए हैं। महिला और पुरूष के सुरक्षित क्षेत्र भी कुछ ना कुछ बदल गए हैं। वैसे में पुराने दिग्गज या तो मैदान छोड़ चुके है। या फिर अपनों को लड़ाने की सोच बना ली है।
मुखौटा होगा आगे
पिछले चुनाव की तरह ही आधी आबादी फिर एक बार नगर निगम के चुनाव पर आरक्षण के दम पर हावी होंगी। लेकिन चुनावी मैदान में वे खुद आगे नहीं। उनके आगे का मुखौटा 'पतिदेव' या फिर कोई रिश्तेदार काही है। मुखौटा ही लोगों से वोट मांग रहे हैं। घर की कामकाज देखने वाली गृहिणी को समाजसेविका बताकर वोट मांगने की कवायद शुरू है। अभी वैसे प्रत्याशी खुद जनता के सामने पूरी तरह खुलकर नहीं आए हैं।
होडिंग व बैनर
वार्ड के लिए चेहरा पुराना हो या नया। चुनावी दंगल में भिड़ने के लिए प्रतिद्वंदी के सामने होडिंग और बैनर लगाने की होड़ सी मची है। लगभग सभी वार्डो में खुद को जीत का प्रत्याशी मानकर एक नहीं, दर्जन भर से अधिक होडिंग लग चुके हैं। जो बता रहा कि माहौल चुनाव का है। अब इसे भुनाने के लिए प्रत्याशियों में 'शह और मात' का खेल जारी है।
ऐसे भी प्रत्याशी
चुनाव में लगभग एक माह से अधिक का समय शेष रह गया है। तिथियों में बदलाव के कुछ संकेत दिखते हैं, लेकिन संभावित प्रत्याशी अपनी ताकत झोंकने में पीछे नहीं। 'जन संवाद,' 'जन जागरण,' 'हमसे मिलिए' 'विकास की बैठक' आदि-आदि नामों से जगह-जगह पर सभाएं हो रही है। रसूख वाले लोग इसमें शामिल भी हो रहे हैं। चूंकि कई प्रत्याशियों के पीछे बड़े-बड़े नेता, सांसद, विधायक, समाजसेवी, डॉक्टर, वकील और ऊंचे ओहदे वालों के नाम जुड़े हैं। वैसे में स्वाभाविक है, आने वाला नगर निकाय का चुनाव दिलचस्प होगा। जिसमें मुखौटों की राजनीति भी हावी रहेगा।
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