काव्य संध्या में कवियों ने स्वरचित कविताओं का किया पाठ
गया जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन भवन में शनिवार को काव्य संध्या का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता सुरेन्द्र सिंह सुरेन्द्र व संचालन खालिक हुसैन परदेसी ने किया।

गया : जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन भवन में शनिवार को काव्य संध्या का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता सुरेन्द्र सिंह सुरेन्द्र व संचालन खालिक हुसैन परदेसी ने किया। इस अवसर पर उपस्थित कवियों ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया। काव्य संध्या का शुभारंभ कवियित्री पल्लवी जोशी ने अपनी कविता से की। कहा- उस पल तुम आना साथी, अपनी बाहों का हार पहनाना। पुणे से आई विद्या कुमारी ने अपनी कविता इतना आसान नहीं था में बेटियों के दर्द को पिरोया। चन्द्रदेव प्रसाद केशरी ने अपनी कविता ओ रही! तू चलता चल हर पल। क्या होगा यह कोई न जाने, इस जीवन का कल। सुधीर कुमार सिंह ने गीत में गाया - कसम से तेरी याद में जब जग कर, लगे लिखने तो लिखते रहे रातभर। डा राम परिखा सिंह ने किसान गीत गाया। नंद किशोर सिंह ने अपनी तारक कविता में कहा- आकाश गंगा में अनगिनत तारे, तारे पुंज दिखते बहुत प्यारे। गजेंद्र लाल अधीर ने गीत में गाया- बढ़ो पथ अकेले निराशा को छोड़ो। उठो शौर्य बल को हृदय में सम्भालो। विषधर शंकर ने कोरोना पर गजल पढ़ी। कहा- कोरोना की जब मार पड़ी तो रोटी हो गई छोटी। मुद्रिका सिंह ने मगही रचना पढ़ी, जिसमे अंग्रेजी के शब्दों का नया प्रयोग किया। कहा- पानी आउ बिजली ला आज तो दुनिया हे हलकान। आंख खोल के देख सामने, केतना हे एकर मिसयूज। बिन्देशरी सिंह ने गजल में गाया- खेत बिके तो बेटी व्यहा मत हिसाब मांगो तुम। अजित कुमार ने कोरोना पर गीत गाया- अदमी अब ले सबके सतौलक एकरा न कोए, कोरोना के आगे राजा-रंक सभे जा रोए। अभ्यनन्द मिश्र ने कहा- दुर्जन की टोली से निकले हैं नेताजी, सज्जन की कौन यहां सुनता फरियाद है।
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