बोधगया शांति और अहिसा का प्रतीक स्थल
भगवान बुद्ध की 2563 वीं त्रिविध जयंती के अवसर पर महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के अनागारिक धम्मपाल सभागार में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार शुक्रवार को संपन्न हुआ। बौद्ध धर्म अंतर धार्मिक सौहार्द का संदेशवाहक विषय पर आयोजित सेमिनार के दूसरे दिन दो अलग-अलग सत्र का संचालन किया गया। इसमें आठ विद्वानों ने अपने-अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए।
गया । भगवान बुद्ध की 2563 वीं त्रिविध जयंती के अवसर पर महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के अनागारिक धम्मपाल सभागार में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार शुक्रवार को संपन्न हुआ। 'बौद्ध धर्म : अंतर धार्मिक सौहार्द का संदेशवाहक' विषय पर आयोजित सेमिनार के दूसरे दिन दो अलग-अलग सत्र का संचालन किया गया। इसमें आठ विद्वानों ने अपने-अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए। केंद्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय सारनाथ के लामा ग्यात्सेन नामडोल व लामा नवांग ग्यात्सेन ने शास्त्र को उद्धृत करते हुए कहा कि बौद्ध धर्म में कर्मफल की व्यवस्था है तथा उपाय कौशल्य के द्वारा सभी समस्याओं का समाधान संभव है। बौद्ध धर्म कर्म प्रधान है। अर्थात पंचशील के समयक आचरण से जीवन में दुख कम होता जाता है। सत्र में ऋषिकेश शरण, मुंगेर विवि के प्रतिकुलपति कुसुम कुमारी, डॉ. शैलेन्द्र कुमार, लाओस के भिक्षु साइसाना बोंनवांग एवं अन्य विद्वानों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। समापन सत्र के मुख्य अतिथि जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि अंतर धार्मिक सौहार्द हेतु मानवता की समझ का विकसित होना आवश्यक है। केवल अपने धर्म के प्रति आस्था का होना और दूसरे धर्म के प्रति अवहेलना की भाव से सौहार्द पूरा नहीं होता। संपूर्ण जगत के प्राणियों के प्रति सद्भाव जरूरी है। बोधगया शांति और अहिसा का प्रतीक स्थल है। यहां शांति बनाए रखना एक चुनौती है। समापन सत्र में प्रो. राणा प्रताप सिंह, राय मदन किशोर, एन दोरजे ने संबोधित किया। महाबोधि सोसाइटी के इंचार्ज भिक्षु सदातिस्स ने आयोजन पर संतोष व्यक्त किया। समापन भिक्षु चालिंदा के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। सेमिनार के संचालन में किरण लामा और डॉ. कैलाश प्रसाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
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