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    Pitru Paksha: बोधगया में उमड़ी पिंडदानियों की भीड़, धर्मारण्य, मातंगवापी व महाबोधि मंदिर में किया पिंडदान

    पितृपक्ष महासंगम के पांचवें दिन तृतीया तिथि को बोधगया स्थित विभिन्न पिंडवेदियो पर कर्मकांड का विधान है। स्कंद पुराण के अनुसार महाभारत के युद्ध के दौरान जाने अनजाने में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था।

    By Prashant Kumar PandeyEdited By: Updated: Tue, 13 Sep 2022 02:33 PM (IST)
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    महाबोधि मंदिर में पिंडदान करते श्रद्धालु, जागरण

    जागरण संवाददाता, बोधगया। कालांतर से चली आ रही तर्पण व पिंडदान की प्रक्रिया बुद्ध की पावन भूमि बोधगया के आसपास स्थित पिंडवेदियों पर जारी है। पितृपक्ष महासंगम के पांचवें दिन तृतीया तिथि को बोधगया स्थित विभिन्न पिंडवेदियो पर कर्मकांड का विधान है। स्कंद पुराण के अनुसार महाभारत के युद्ध के दौरान जाने अनजाने में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था। 

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    तृतीया तिथि को त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व

    इस वेदी के पुजारी बताते हैं कि पितृपक्ष के तृतीया तिथि को यहां गया श्राद्ध के साथ पिंडदान का विधान है। लेकिन तृतीया तिथि को त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है। यही कारण है कि आस्थावान सनातन धर्मावलंबी श्रद्धालु प्रेत बाधा से मुक्ति हेतु पिंडदान कर अष्ट कमल आकार के कूप में नारियल छोड़कर अपनी आस्था को पूर्ण करते हैं। वही मातंग ऋषि का तपोस्थली मातंगवापी वेदी पर पिंडदान तर्पण और मातंगी सरोवर के दर्शन का विशेष महत्व मना जाता है। जिसका उल्लेख अग्नि पुराण में भी है। मातंगवापी परिसर में स्थित मातंगेश्वर शिव पर पिंड सामग्री को छोड़ पिंडदानी अपने कर्मकांड का इति श्री कर आगे बढ़ते हैं।

    बोधगया के मोहाने नदी में तर्पण करते लोग

    महाबोधि मंदिर में पिंडदान बाद बोधि वृक्ष का नमन जरूरी

    कोलाहल से दूर बिल्कुल शांत वातावरण सरस्वती वेदिका है। यहां तर्पण करने का विधान है। यहां पिंडदानियों की संख्या कम दिखी। यहां होने वाले तर्पण के विधान को पिंडदानी धर्मारण्य पास मोहने नदी में कर लेते हैं। विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर परिसर भी पिंडदानियों से भरा पड़ा है। वैदिक मंत्रोचार वातावरण में गुंजायमान हैं।मंदिर परिसर के मुचलिन्द सरोवर क्षेत्र में पिंडदानी अपने पूर्वजों की मोक्ष की कामना को लेकर कर्मकांड कर रहे हैं। मान्यता है कि महाबोधि मंदिर में पिंडदान के बाद मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध और मंदिर के पीछे स्थित बोधि वृक्ष का नमन जरूरी है। सब लोग पिंडदान के बाद प्रणाम ज़रूर करते हैं।