Mountain Man दशरथ मांझी की बेटी तबीयत बिगड़ी, मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कराया गया भर्ती
पर्वत पुरुष के नाम से प्रसिद्ध गया जिले के रहने वाले दशरथ मांझी की बेटी लौंगिया देवी की शुक्रवार शाम अचानक तबीयत बिगड़ गई जिसके बाद उन्हें गया के अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।

गया, जेएनएन। पर्वत पुरुष के नाम से प्रसिद्ध दशरथ मांझी की बेटी लौंगिया देवी की शुक्रवार शाम अचानक तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें गया के अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। सूचना मिलने पर जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने सिविल सर्जन से बात की और उच्चस्तरीय चिकित्सीय सुविधा मुहैया कराने को कहा। फिलहाल, उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है।
इलाज का सारा खर्च उठाएगा प्रशासन
शुक्रवार की शाम में जिला प्रशासन को जानकारी मिली कि लौंगिया देवी की हालत बिगड़ गई है। इसके बाद सिविल सर्जन की अगुवाई में एक टीम को एंबुलेंस के साथ उनके घर भेजा गया। टीम उन्हें जेपीएन अस्पताल लेकर गई, जहां प्रारंभिक उपचार के बाद डॉक्टरों ने बेहतर इलाज के लिए अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल रेफर कर दिया। जिलाधिकारी ने सिविल सर्जन सह मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के अधीक्षक को कहा कि लौंगिया देवी के इलाज का पूरा खर्च प्रशासन वहन करेगा। उनके इलाज में किसी तरह की कोताही नहीं की जाए।
कुछ दिन पहले गिर गई थीं घर के आंगन में
बताया जाता है कि कुछ माह पहले लौंगिया देवी घर के आंगन में गिर गई थीं। उन्हें काफी चोटें आई थीं। उपचार कराने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें घर भेज दिया था। अंदेशा है कि उसी घटना के कारण दोबारा तबीयत बिगड़ गई। मस्तिष्क रोग चिकित्सक उनकी जांच कर रहे हैं। सिर में चोट लगने की आशंका है। अभी अस्पताल में उनके साथ पति और पुत्र हैं। जिला प्रशासन की टीम लगातार मॉनिटरिंग कर रही है।
दशरथ मांझी को क्यों कहा जाता है पर्वत पुरुष
मूलरूप से गया जिले के रहने वाले दशरथ मांझी ने 22 सालों तक एक हथौड़ी और छेनी की बदौलत पहाड़ चीरकर 360 फुट लंबा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता बना लिया। यह काम उन्होंने 1960 में शुरू किया था, जो 1982 में पूरा हुआ। इसके बाद से उन्हें पर्वत पुरुष का खिताब मिला। यह दृढ़ निश्चय उन्होंने पत्नी फल्गुनी की मौत से आहत होकर लिया। फल्गुनी उनके लिए खेत में खाना लेकर जा रही थीं और पहाड़ चढऩे के दौरान चट्टान से टकरा गईं। अगर उन्हें समय पर अस्पताल पहुंचाया जाता तो उनकी जान बच सकती थी। बस यही बात दशरथ मांझी के दिल-दिमाग में बैठ गई और उन्होंने अकेले ही पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाना शुरू कर दिया।

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