गया में एक भवन में दो स्कूल: बन रहे कमरे में चूल्हा, मिड-डे-मील बनाने में भी घोर लापरवाही
गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड के कुछ विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन व्यवस्था में भारी लापरवाही पाई गई। कहीं हाथ धोने के लिए साबुन नहीं है, तो कहीं रसोइया पानी के लिए तरसती हैं। एक विद्यालय में निर्माणाधीन कमरे में खाना बन रहा है। यह लापरवाही बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, और तत्काल सुधार की आवश्यकता है।

मिड-डे-मील की घोर लापरवाही
संवाद सूत्र, बाराचट्टी (गया)। दैनिक जागरण द्वारा बाराचट्टी प्रखंड के कुल 111 प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में से चार विद्यालयों—मध्य विद्यालय भगहर, प्राथमिक विद्यालय अदलपुर, प्राथमिक विद्यालय मौनियातरी और मध्य विद्यालय बांक की गहन पड़ताल सोमवार को की गई। सामने आया कि रसोईघर से लेकर पानी, स्वच्छता और खाद्य भंडारण तक, मध्यान्ह भोजन व्यवस्था में कई बुनियादी कमियां हैं, जो बच्चों के स्वास्थ्य पर सीधा खतरा पैदा कर रही हैं।
मध्य विद्यालय भगहर में 224 नामांकित बच्चों में 104 उपस्थित थे। पांच रसोइया सुशीला देवी सहित भोजन तैयार करती हैं। लेकिन हाथ धोने के लिए साबुन के स्थान पर सर्फ दिया जा रहा है। स्कूल का नल टूटा है, जिससे बच्चे साफ पानी से हाथ नहीं धो पाते।
थाली धोने के लिए चापानल पर भीड़ लग जाती है। प्रभारी प्रधानाध्यापक अफजल करीम खान बताते हैं कि पानी और स्वच्छता की मूलभूत व्यवस्था तत्काल सुधार की मांग करती है।
एक ही भवन में दो स्कूल
अदलपुर और मौनियातरी की स्थिति विशिष्ट और अधिक चुनौतीपूर्ण है। दोनों विद्यालय एक ही भवन से संचालित हो रहे हैं, क्योंकि प्राथमिक विद्यालय मौनियातरी का भवन पूरी तरह जर्जर होकर अनुपयोगी हो गया है।
मौनियातरी की रसोइया जूली कुमारी 55 बच्चों का भोजन बनाती हैं, जबकि अदलपुर के 35 बच्चों के लिए अंचल देवी और कांती देवी खाना तैयार करती हैं।
हालांकि यहां नल-जल कनेक्शन है, पर रसोइयों को पानी उपयोग की अनुमति नहीं है। वार्ड सचिव पानी भरने से रोकते हैं, जिसके कारण रसोइयों को चापानल से बाल्टी भर पानी ढोकर रसोई तक ले जाना पड़ता है। इससे भोजन की शुचिता और समय दोनों पर असर पड़ता है।
निर्माणाधीन भवन के कमरे में खाना
सबसे दयनीय तस्वीर मध्य विद्यालय बांक में देखने को मिली। यहां निर्माणाधीन भवन के कमरे में ही खाना बनाया जा रहा था। रसोइया सुनीता देवी, रिंकू देवी, मुनिया देवी और मंजू देवी क्लास रूम से गैस चूल्हा और बर्तन बाहर निकालकर भोजन पकाती हैं और फिर पढ़ाई के लिए वापस उसी कमरे में रखते हैं। चावल और खाद्यान्न कार्यालय में भंडारित है।
ग्रामीण अखिलेश पासवान और शिक्षा सेवक बिनोद मांझी बताते हैं कि कई वर्षों से रसोईघर के अभाव में यह परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। बच्चों की स्वच्छता भी चिंताजनक है।
हाथ धोने की सुविधा नहीं
कविता कुमारी, प्रिया कुमारी और सपना कुमारी कक्षा 6–7 बताती हैं कि उन्हें कई बार सही ढंग से हाथ धोने की सुविधा नहीं मिलती। कक्षा 4 की सोनाक्षी सर्फ से थाली साफ कर रही थी, जबकि संजनी कुमारी हाथ धोने की कतार में थी। नाखून कटे हों, 20 सेकंड तक साबुन से हाथ धोना ये नियम कागजों तक सीमित दिखे। चार विद्यालयों की यह पड़ताल यह साबित करती है कि मध्यान्ह भोजन योजना के क्रियान्वयन में गंभीर खामियाँ हैं।
रसोईघर की दशा, पानी की बाधा और स्वच्छता की लापरवाही बच्चों के स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रही है। प्रशासनिक स्तर पर त्वरित सुधार ही बच्चों को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण भोजन सुनिश्चित कर सकता है यही आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

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