Coronavirus: मगध मेडिकल बना कोविड डेडिकेटेड अस्पताल, अब सामान्य मरीजों पर आएगी आफत
कोविड डेडिकेटेड अस्पताल बनाए गए मगध मेडिकल अस्पताल संक्रमित मरीजों के लिए अतिरिक्त बेड लगेंगे। सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी। लेकिन सामान्य मरीजों को बेहतर ...और पढ़ें

गया, जागरण संवाददाता। जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल (Anugrah Narayan Magadh Medical College and Hospital) को कोरोना के बढ़ते संक्रमण के मद्देनजर कोविड डेडिकेटेड अस्पताल (Covid Dedicated Hospital) बनाया गया है। इसके मायने यह हैं कि अब यहां सिर्फ कोरोना संक्रमित या कोरोना के लक्षण वाले मरीजों को ही भर्ती कर इलाज किया जाएगा। ऐसे में अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीजों खासकर दुर्घटना ग्रस्त मरीजों के लिए परेशानियां बढ़ सकती हैं।
पिछले वर्ष भी बना था कोविड डेडिकेटेड अस्पताल
गौरतलब है कि साल 2020 में भी कोरोना की पहली लहर में मगध मेडिकल अस्पताल को कई महीनों तक कोविड डेडिकेटेड अस्पताल के रूप में चलाया गया था। उस दौरान जयप्रकाश नारायण अस्पताल को सामान्य मरीजों के लिए रखा गया था। जबकि शहर की एकमात्र महिला अस्पताल प्रभावती में महिलाओं से संबंधित बीमारियों का इलाज खासकर प्रसव, आपरेशन आदि की सुविधा दी गई थी। पेडियाट्रिक डिपार्टमेंट बच्चों का वार्ड भी यही शिफ्ट कर दिया गया था। मेडिकल अस्पताल के बहुत सारे डॉक्टरों और दूसरे स्वास्थ्य कर्मियों की प्रतिनियुक्ति जयप्रकाश नारायण अस्पताल और प्रभावती में की गई थी।
आने वाले दिन हो सकते हैं मुसीबत भरे
एक तरफ जहां कोविड डेडिकेटेड अस्पताल बनने से मेडिकल में भर्ती होने वाले मरीजों की सुविधाएं बढ़ेगी। तो वहीं दूसरी ओर गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीज और उनके परिजनों के लिए आने वाले दिन मुश्किलों भरे हो सकते हैं। मेडिकल अस्पताल में कोरोना संक्रमित मरीजों को भर्ती करने के लिए पिछली बार 352 बेड लगाए गए थे। फिलहाल अभी यहां 100 बेड का आइसोलेशन वार्ड चल रहा है।
छोटे अस्पतालों में काम करने से हिचकते हैं सीनियर डॉक्टर
वैसे तो चिकित्सा क्षेत्र को सेवा भाव की संज्ञा दी जाती है। लेकिन मौजूदा बाजारवाद के स्वरूप ने इस चिकित्सा व्यवस्था की कार्यशैली को प्रभावित किया है। पिछली बार जब मेडिकल अस्पताल के कई सीनियर डॉक्टरों की ड्यूटी जेपीएन अस्पताल और प्रभावती में लगाई गई थी उस वक्त ऐसा देखा गया था कि कईयों को अपनी ड्यूटी करने में परेशानी हो रही थी। ऐसे डॉक्टरों का तर्क होता था कि यहां बुनियादी सुविधाएं नहीं है। इसके चलते अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों के बीच कई बार नोकझोंक की भी स्थिति बनी थी। उस समय जिला पदाधिकारी और प्रमंडलीय आयुक्त को बार-बार हस्तक्षेप करना पड़ा था। ऐसे में मरीजों का इलाज किस हद तक होता है यह समझा जा सकता है। बड़े स्तर पर मेडिकल की पढ़ाई कर मेडिकल कॉलेज जैसे संस्थानों में अपनी सेवा दे रहे डॉक्टर इस तरह की स्थिति में छोटे जगहों पर आकर ड्यूटी करने से हिचकते हैं। अपने से कम पढ़े लिखे डॉक्टरों की बात मानने से साफ इंकार करते हैं।
रहते थे पटना में लेकिन रजिस्टर पर ऑन ड्यूटी
पिछले बार कई डॉक्टर पटना में रहकर ही गया के अस्पताल की रजिस्टर में ऑन ड्यूटी दिखाए गए। खामियाजा दर्द और तकलीफ से कराहते मरीज और उनके परिजनों को उठानी पड़ी थी। रोस्टर में एक साथ 10 से 12 डॉक्टरों की ड्यूटी दिखाई जाती थी, जबकि अस्पताल के डॉक्टर कक्ष में बमुश्किल 2 से 3 डॉक्टर ही दिखाई पड़ते थे। इस स्थिति से निबटने के लिए जिला प्रशासन और स्वास्थ्य महकमा को अभी से ही सख्त होना होगा।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।