जीवनदायिनी ढाढर को संरक्षण की दरकार, अतिक्रमण से सिमट रहा दायरा
फोटो- -लंबे-चौड़े पाट के लिए काफी प्रसिद्ध रही ढाढर के दोनों किनारे अतिक्रमण से सिमटे -गया व नालंदा के साथ झारखंड की भी सैकड़ों एकड़ खेतों की सिंचाई करती है ढाढर नदी -इसी से जुड़ी है तिलैया-ढाढर परियोजना बरसात में कई आहर व पईन भी होते हैं लबालब -----------
हिमांशु गौतम, टनकुप्पा
मगध क्षेत्र की अति प्राचीन ढाढर नदी सदियों से इलाके के लोगों के लिए जीवनदायिनी साबित होती आ रही। कभी अपने लंबे-चौड़े पाट के लिए प्रसिद्ध रही इस नदी में अब गंदगी व अतिक्रमण का साम्राज्य है। इससे नदी के दोनों किनारे सिमटते चले जा रहे हैं। संरक्षण की दरकार कर रही नदी पर फिलहाल सरकार की नजर-ए-इनायत नहीं है। इलाके के जनप्रतिनिधियों को इसकी हालत से रूबरू कराने की जरूरत है, लेकिन उनमें इच्छाशक्ति का अभाव है। झारखंड के पहाड़ों व जंगलों से निकली है ढाढर नदी :
ढाढर का उद्गम झारखंड राज्य के पहाड़ों व जंगलों से हुआ है। हालांकि वहा यह छोटे से जलस्रोत के रूप में ही है। आगे के सफर में यह काफी लंबी-चौड़ी हो गई है। ढाढर नदी कई प्रखंड क्षेत्रों से होते हुए पटना के बाढ़ व मोकामा के पास दूसरी नदी में मिलकर पावन सलिला गंगा में मिल गई है। बरसात के दिनों में यह पहाड़ व जंगल का पानी अपने साथ लेकर आती है, इसलिए उस वक्त यह उफान पर रहती है। झारखंड, गया व नालंदा की सैकड़ों एकड़ भूमि होती हैं तृप्त :
ढाढर के पानी से झारखंड के चौपारण क्षेत्र का कुछ हिस्सा और जिले के फतेहपुर, वजीरगंज, हिसुआ व मोहड़ा होते हुए नालंदा के राजगीर से आगे कई क्षेत्रों की सैकड़ों एकड़ भूमि की सिंचाई करती है। इसी के पानी से रबी व खरीफ सीजन की फसलों की अच्छी उपज होती है। ढाढर के ही पानी से कई पईन व आहर पानी से लबालब रहते हैं। इसके अलावा सिंचाई की एक बड़ी परियोजना तिलैया-ढाढर सिंचाई परियोजना इसी नदी के गर्भ से जुड़ी है। इससे गया व नवादा जिले की सैकड़ों एकड़ जमीन को नहर द्वारा बरसात में दिया जाने लगा है। बराज स्थल पर पानी रोकने के लिए कैनाल बना है। बरसात में पानी को उसी के जरिए नहर में छोड़ा जाता है। बराज स्थल पर पानी जमा होने से नदी में गाद जमने लगी है, जो नदी के जीवन के लिए ठीक नहीं है। बरसात के दिनों में पानी से लबालब रहती है ढाढर :
नदी के संरक्षण के लिए कोई कार्य नहीं होने से इसमें फेंकी जाने वाली गंदगी व अतिक्रमण इसे तिल-तिलकर मार रहा है। इसका दायरा सिमटता जा रहा है। गंदगी से नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है। बरसात के दिनों में इसमें लबालब पानी भरा रहता है, लेकिन अतिक्रमण से वह निरर्थक बहता है। कारण यह कि इसके किनारे की रेतीली जमीन पर ही खेती होने लगी है। बारिश में पानी इधर-उधर फैलने से कभी-कभार बाढ़ भी आ जाती है। हालांकि बरसात के बाद नदी पूरी तरह से सूख जाती है। ढाढर के संरक्षण के लिए गठित हो कमेटी, कराया जाए विकास :
डुमरीचट्टी गाव के वयोवृद्ध समाजसेवी 95 वर्षीय विश्वम्भर प्रसाद यादव, संडेश्वर निवासी प्रसादी प्रसाद यादव, रघुनाथपुर के बद्री नरायण सिंह और तिलैया-ढाढर सिंचाई परियोजना संघर्ष समिति के सदस्य टनकुप्पा निवासी विजय यादव कहते हैं, ढाढर काफी पुरानी व पवित्र नदी है। इस नदी के घाट पर लोग पितृ तर्पण भी करते हैं, इसीलिए इसे जीवनदायिनी के साथ मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। इसके अलावा कई प्रखंडों में इसी के सहारे सिंचाई भी होती है। इसी की बदौलत सदियों से क्षेत्र की खेती ढाढर पर निर्भर है। सरकार को चाहिए कि प्रखंड की नदियों के संरक्षण के लिए कोई कमेटी गठित कर देखरेख व विकास कराया जाए। प्रमुख जगहों पर श्मशान घाट, स्नान व पूजा-पाठ के लिए घाट बनाया जाए। संरक्षण के लिए सरकार को पत्र भेज मांगा जाएगा मार्गदर्शन :
नदी के संरक्षण व घाट निर्माण के लिए फिलहाल कोई योजना नहीं है। सरकार को प्रखंड की नदियों की स्थिति से अवगत करा संरक्षण के लिए मार्गदर्शन मांगा जाएगा। स्थानीय विधायक से भी जनहित के लिए चर्चा करेंगे। जल संरक्षण को ध्यान में रखते हुए सिंचाई विभाग का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराएंगे।
- कुमुद रंजन, प्रखंड विकास पदाधिकारी, फतेहपुर
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