कालापानी समेत 22 साल जेल, दारोगा को बंधक बना फहरा दिया तिरंगा, पढ़िए औरंगाबाद के कुछ स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी
श्यामाचरण भर्तुआर जैसे लोग जिन्होंने जीवन के 22 वर्ष जेल में बिताए तो प्रियव्रत नारायण सिंह ने दारोगा को बंदी बनाकर थाने पर तिरंगा फहरा दिया। पति को ह ...और पढ़ें

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : श्यामाचरण भर्तुआर जैसे लोग जिन्होंने जीवन के 22 वर्ष जेल में बिताए, तो प्रियव्रत नारायण सिंह ने दारोगा को बंदी बनाकर थाने पर तिरंगा फहरा दिया। पति को हथकड़ी में देखा तो पत्नी की जान चली गई। बिहार का पहला नमक कानून यहीं तोड़ा गया। अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत में ऐसी कई कहानियां औरंगाबाद जिले के कोने-कोने में बिखरी पड़ी हैं। विशेष रिपोर्ट ताकि वर्तमान पीढ़ी जान सके कि स्वतंत्रता संग्राम कितना कठिन और कितनी कष्टदायक रहा है।
काला पानी की सजा काटते हुए लिखा-अंडमान के बंदियों के स्वर :
औरंगाबाद जिले के खरांटी गांव निवासी श्यामाचरण भर्तुआर क्रांति के सबसे बड़े योद्धा थे। उन्होंने अपने जीवन का 22 वर्ष जेल में बिता दिया। जिसमें 3 साल 1933 से लेकर 1936 तक काला पानी की सजा काटी। बंगाल के गवर्नर की हत्या के लिए चर्चित गया षड्यंत्र कांड में सजायाफ्ता हुए। काला पानी की सजा काटते हुए इन्होंने ''''अंडमान के बंदियों के स्वर'''' नामक पुस्तक लिख डाला। 1942 में सुभाष चंद्र बोस एवं जयप्रकाश नारायण के साथ हजारीबाग जेल में रहे। तीनों जेल की चारदीवारी फांद कर भाग निकले थे।
जंगलों में भटकते रहे और भूमिगत रहकर आजाद दस्ते का संचालन किया। जिले में इतने बरस तक जेल में रहने वाला दूसरा कोई स्वतंत्रा सेनानी नहीं है। गरीबी के कारण यह दाने-दाने के मोहताज रहे। जब जसलोक अस्पताल में भर्ती थे तब गरीबी के कारण इलाज नहीं करा पा रहे थे तो जय प्रकाश नारायण ने इन्हें 2000 रुपये मदद के लिए भेजा। लेकिन जैसे ही स्वस्थ हुए कदमकुआं स्थित जयप्रकाश नारायण के घर जाकर पैसे वापस कर दिया। जब देश आजाद हुआ और काला पानी की सजा भुगतने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को सरकार ने भरपूर पेंशन की राशि दी तो इन्होंने अपनी गरीबी और व्यक्तिगत तंगी को नजरअंदाज कर सारा पैसा अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल अस्पताल में ब्लड बैंक के लिए दान कर दिया।
कई बार जेल गए डा. अनुग्रह नारायण सिंह डा. अनुग्रह नारायण सिंह
औरंगाबाद के पोइवां में नामी पहलवान और जमींदार विश्वेश्वर दयाल सिंह के घर अनुग्रह नारायण सिंह का जन्म हुआ था। वह कई बार जेल गए। 1917 में गांधी के सत्याग्रह आंदोलन के साथ राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश की। नीलहा आंदोलन हो या अछूतोद्धार आंदोलन, उसमें अग्रणी भूमिका में रहे। गांव में वंदे मातरम का अलख जगाते रहे। 1928 में साइमन कमीशन का इन्होंने जोरदार विरोध किया था। सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय नमक कानून भंग किया।
26 जनवरी 1931 को पटना भवर पोखर पार्क में राष्ट्रीय झंडा फहराते समय कैद किए गए। फिर 1933 के 26 जनवरी को प्रतिज्ञा पत्र भरते समय कैद किए गए। वर्ष 1940 में महात्मा गांधी के आह्वान पर व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया और तीन दिसंबर को फिर कैद कर लिए गए। इस्लामिया पटना में छात्रों को संघर्ष के लिए आह्वान किया और आंदोलन का नेतृत्व किया। 9 अगस्त 1942 को फिर गिरफ्तार किए गए और 1945 तक जेल में रहे।
बिहार में सबसे पहले कर्मा भगवान में तोड़ा नमक कानून
कर्मा भगवान में जन्मे कुमार बद्री नारायण सिंह ऐसे शख्स रहे जिन्होंने बिहार में सबसे पहले नमक कानून तोड़ा। 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय कर्मा में ही सबसे पहले नोनी मिट्टी एवं जल से नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा गया था। इसके बाद उन्होंने एक टोली बना ली और आजादी का अलख जगाते चले। जमींदार होते हुए भी किसान आंदोलन का प्रवर्तक बने। हरिजन उद्धार कार्यक्रम चलाया।
1956 में संक्रांति के दिन इनकी हत्या कर दी गई
देव एवं जमुहार के मंदिरों में हरिजनों को प्रवेश दिलवाया। इनके घर पर प्रायः पुलिस की छापेमारी होती रहती थी, जिस कारण इन्हें भूमिगत रहना पड़ा। 1942 के आंदोलन में हजारीबाग से जेल से भागने वालों में यह भी शामिल थे। वर्ष 1956 में संक्रांति के दिन इनकी हत्या कर दी गई थी।
भूमिगत सेना को संदेश देने के लिए पटना से पैदल चले गए सैनिक आजाद हिंद फौज के सैनिक रहे पवई में जन्मे राम नारायण सैनिक अद्भुत योद्धा थे। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भूमिगत सेना को संदेश देने के लिए पटना से पैदल डाल्टेनगंज के लिए चले गए। आजाद हिंद फौज पर मुकदमे के दौरान यह दिल्ली में डटे रहे। नमक, सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रहे। गांव-गांव घूमकर लोगों को जगाया और नमक कानून भंग किया। भूमिगत रहकर पटना और पलामू जिला में क्रांतिकारियों के दल का संचालन करते थे।
दारोगा को बंदी बना थाने पर फहरा दिया तिरंगा
नवीनगर के सोनोरा गढ़ के कुमार प्रियव्रत नारायण सिंह ने अंग्रेजों भारत छोड़ो तथा करो मरो का आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। सहयोगियों के साथ चरण में शराब भट्टी जला दी। अंकोढ़ा में बी.डी रेलवे लाइन को उखाड़ फेंका और पैदल चलते हुए वहां से 22 अगस्त 1942 को दारोगा को बंदी बनाकर नवीनगर थाने पर तिरंगा फहरा दिया।
ब्रिटिश सरकार ने इनको आतंकवादी घोषित कर दिया। इनके गढ़ पर जुल्म ढाए गए। अपने साथियों के साथ लंबे समय तक भूमिगत रहे। सात जुलाई 1943 को औरंगाबाद कचहरी में हाजिर हुए। इनके हाथ में हथकड़ी देखते ही इनकी पत्नी रानी सोनपरी बेहोश होकर गिरी और सदा के लिए सो गई। 11 अगस्त 1943 को हजारीबाग जेल से स्वतंत्रा सेनानियों को छोड़ा गया था। तब वह वहां से गया पैदल आए थे और उनका भव्य स्वागत किया गया था।

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