जब हार मानने को मजबूर हुआ था पाकिस्तान, जानें तब 19 साल के रहे महेश को क्या-क्या है याद
साल 1971 में दस दिनों तक चले इस युद्ध में आखिर में पाकिस्तान को हार माननी पड़ी। पूर्वी पाकिस्तान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने ढाका में भारतीय सेना के पूर्वी कमान जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा की मौजदूगी में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिया था।
संजय कुमार, गया। वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कर बांग्लादेश बनाने में भारत की आज भी चर्चा की जाती है। जब मात्र दस दिन तीन दिसंबर से 13 दिसंबर तक चली लड़ाई में पाकिस्तान को नाकों चने चबा अपने अधिकार में ले लिया। तब पूर्वी पाकिस्तान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने ढाका में भारतीय सेना के पूर्वी कमान जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा की मौजदूगी में 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिया था।
मुक्ति वाहनी सेना थी सक्रिय
उक्त बातें शहर के गयापाल पंडा सह विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के पूर्व सदस्य 73 वर्षीय महेश लाल ने दैनिक जागरण को बातचीत के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के युद्ध समय मेरी उम्र 19 वर्ष का थी। पूर्वी पाकिस्तान को आजादी को लेकर मुक्ति वाहनी सेना पूरी तरह से सक्रिय थी। आजादी दिलाने को लेकर भारत ने पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी दोनों तरह से चढ़ाई कर दी थी। ऐसे में दस दिनों तक चले युद्ध में पाकिस्तान के 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिया था। भारत ने सभी सैनिकों को बंदी बना लिया था।
युद्ध में पाकिस्तान ने मानी हार
उन्होंने कहा कि दस दिनों तक चले इस युद्ध में आखिर में पाकिस्तान को हार माननी पड़ी। साथ ही पाकिस्तानी सैनिकों को भारत बंदी बनाकर गया शहर स्थित सैनिक छावनी में रखने काम किया गया है। जहां पाकिस्तानी सैनिकों को कई माह तक शहर में स्थित सैनिक छावनी में रहा था। पूरी कड़ी सुरक्षा के बीच पाकिस्तानी सैनिकों को रखा जाता था। कई माह में दोनों देश के समझाैता के बाद पाकिस्तानी सैनिकों को रिहा कर दिया था।
समाचार का मुख्य साधन था रेडियो
1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच चले युद्ध में समाचार का मुख्य साधन रेडियो था। शहरी क्षेत्र के लोगों के युद्ध के बारे में अखबार से जानकारी मिल जाता था। उसके बाद भी लोग रेडियो लोग हाथ में लेकर चलते थे। युद्ध को लेकर आकाशवाणी प्रत्येक आधा एक घंटे पर पर विशेष समाचार देते रहता था। लोगों रेडियो का कान से सटा कर रखते थे।
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