नवादा में सीतामढ़ी के मेले में उत्सवी माहौल, माता सीता की निर्वासन स्थली के रूप में जानते हैं लोग, गुफा में है माँ की प्रतिमा
यह मेला किसानों की समृद्धि से जुड़ा है। खेतों से फसल घर आने पर किसानों में खुशियों का संचार होता है। कई दिनों की मेहनत के बाद फसल घर आती है तो खुशियां परवान चढ़ जाती है और उसी उपलक्ष्य में मेले का आयोजन किया जाता है।

कुमार गोपी कृष्ण, नवादा : मेसकौर प्रखंड का सीतामढ़ी गांव, मां सीता के निर्वासन स्थली के रूप में चर्चित है। अगहन पूर्णिमा के अवसर पर मेले का शुभारंभ हो गया है, जिसमें ग्रामीण संस्कृति झलक रही है। महिलाएं मां सीता के मंदिर पहुंच कर पूजा-अर्चना में तल्लीन हैं तो बच्चों की धमाचौकड़ी से एक अलग ही माहौल बना है। कोई झूला झूलने को जिद कर रहा तो कोई झिल्ली (गुड़ की मिठाई) और जिलेबी खिलाने की, तो कोई खिलौने खरीदने की जिद में रोए जा रहा। ठेला-खोमचा के पास चाट-फोकचा खाने के लिए भी भीड़ जुट रही है। वहीं कुछ लोग खाट-पलंग समेत अन्य जरूरी सामानों की खरीदारी में व्यस्त हैं। एक दुकान से दूसरे दुकान जाकर मोल भाव भी कर रहे हैं। बच्चों की किलकारियां, युवाओं की हंसी-ठिठोली से माहौल खुशनुमा बना है। बुजुर्गों का गंवई अंदाज दिख रहा है। महिलाएं भी पीछे नहीं हैं, आपस में हंसी-मजाक, हाल चाल लेने का दौर चल रहा है। एक-दूसरे का कुल मिलाकर आधुनिकता की दौड़ में भाग रहे लोगों के बीच आज भी यह मेला ग्रामीण परिवेश की सुखद अनुभूति करा रहा है। कई दशकों से यहां अगहन पूर्णिमा पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जा रहा है।
किसानों की समृद्धि से जुड़ा है यह मेला
- गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यह मेला किसानों की समृद्धि से जुड़ा है। खेतों से फसल घर आने पर किसानों में खुशियों का संचार होता है। कई दिनों की मेहनत के बाद फसल घर आती है तो खुशियां परवान चढ़ जाती है और उसी उपलक्ष्य में मेले का आयोजन किया जाता है। हर साल अगहन पूर्णिमा को तीन दिनी मेले का आगाज होता है, जिससे इलाके की छटा देखते ही बनती है। सीतामढ़ी गांव के आसपास के दस कोस के गांव से लोगों का मेले में आना होता है। अब तो दूसरे जिले से भी लोग मेले का लुत्फ उठाने आने लगे हैं।
विभिन्न जातियों का होता है मिलन
- वैसे तो सीतामढ़ी को माता सीता की निर्वासन स्थली के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि अयोध्या से निष्कासित होने के बाद माता सीता ने यहीं निवास किया था। पहाड़ी की गुफा में एक मंदिर है, जहां माता की प्रतिमा विराजमान है। इसके अलावा यह एक ऐसा धर्म स्थल है, जहां अलग -अलग जातियों के अलग-अलग मंदिर भी हैं। मेला में आस्था के साथ ही जातीय चौपाल भी लगता है। बैठकों और मिलन समारोह का दौर चलता है।
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